शापित अभिवादन
शापित अभिवादन गुरु मैं सामने खड़ा हूँ ठीक आपके आँखों के बीच आईने के अश्क में चेहरे के भीतर चेहरों को देखता हुआ हाथों से छीन लिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
शापित अभिवादन गुरु मैं सामने खड़ा हूँ ठीक आपके आँखों के बीच आईने के अश्क में चेहरे के भीतर चेहरों को देखता हुआ हाथों से छीन लिया
पहली बार छूकर उसे अनछुवा कर दिया और अब मैं लिख रहा हूँ अपनी भाषा धीरे –धीरे उसके चेहरे पर कल फिर से
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर रचनाभाग दो स्वर साधना की आत्माममता ममत्व का आँचलकला काल भाव नारीदुर्गा ज्वाला।।इंदिरा लक्ष्मीबाई सरोजनीकल्पना मरियम यशोदासती शीतल अंगार।।चंचल चितवन शोख अदा अंदाज़ प्रेम घृणाकोमल कठोर
*सैनिक दिवस पर विशेष* *सीमाओं पर डटें, जो देश की रखवाली करतें हैं**बिना स्वार्थ हित लाभ के जो पहरेदारी करतें हैं**सर्दी शीत धूप ताप से लड़ते जो प्रतिक्षण हैं**उनकें त्याग
नारी आज खोजतीखुद को राष्ट्र समाज केहर पल प्रहर में करती सवालकौन हूँ मैं ?क्या अस्तित्व है मेराक्यों हूँ मैं बेहालसभ्य समाज कीसभ्यता से गलीचौराहों हाट बाज़ारोंपर सवाल?मैँ माँ
सृष्टि युग की गौरव प्रकृति प्रवृति की अनिवार्यतापरम् शक्ति की सत्तानारी शक्ति आधार।।ब्रह्म ,विष्णु ,शंकरशिवा ,वैष्णवी ,सरस्वतीपरम् शक्ति सत्ता ईश्वरकी भागीदार।।सृष्टि पूर्ण तभी होतीजब नारी लेती प्रथमअवतार।।नर नारायण कीशक्ति
Last Updated on January 15, 2021 by bindravnrais रचनाकार का नाम: बृंदावन राय पदनाम: सरल संगठन: बृंदावन राय सरल सागर एमपी मोबाइल नंबर 786 92 18 525 सागर मध्य प्रदेश
“वीरों को नमन” नमन करे उन वीरों को तुम जो प्राणों का किये न मोह मातृभूमि के लिये सदा जो अंग्रेजों पर करि के कोह प्रतिधा की पावक में जलकर
दोहे ,,, 1,,, इच्छाएं घर से चलीं,कर सोलह श्रृंगार।। लौटी हैं बेआबरू, हो घायल हर बार।। 2,,, आंधी से अनुबंध कर, चुप हैं पीपल आम।। पौधों को सहना पड़े,इस छल
जिंदगी एक मधुरस का, भरा प्याला है, पीना जिसको भी यहाँ, वही सयाना है।। लोग चलते हैं कि, प्याले भी झलक, जाते हैं, तुमको चलना है, तो संभल-संभल के चलो,
“महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता मुझे नहीं बनना है अब देवी कोई मुझे नहीं बनना है अब देवी कोई, मुझे तुम साधारण ही रहने दो, तुम
विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई- पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन दिनांक:17 जनवरी 2021, समय :- सुबह
उत्तरायण हो चले प्रभाकरअंधेरो की लंबी रात गयीचाहूं ओर फैला उजियाराउत्साह उत्सव की गूंज युग मधुवन सा सारा।।खेतों में हरियाली झूमतीधान- गेहूँ की बाली कलियों का खिलना भौरों का गुंजन
मम वेदना का एक अंश, सम्भाल लो तो जान लूं। संतप्त मरु दृग नीर बिन्दु, खंगाल लो तो जान लूं। मेैं निरा निर्धन
पतंग सी लहराए दिल ऊंची जीवन की उड़ान हो,तील और गुड़ जैसा मीठा बनेंसबके होठों पर मुस्कान हो!!पावन पर्व संक्रांति की,प्रकाशित सबके जीवन को करेनई ऊर्जा, नया उल्लास,प्रेम और विश्वासहर
मन ही मन..—————————मेरे मन के ख्याल….!मौन साक्षी हैंकितने ही बारतेरे मनआगमन पर आने परमनाई है मन ही मन दीपावली कितनी बार ही कोसा हैजब कोई भंग किया है ख्यालउस पर
मन ले चल.. डॉ.प्रदीप शिंदेसुबह सुरज की किरन नींद से जगाती आंगनगांव पाठशाला शिक्षकशिक्षा मिली अनमोलसमान इतवार सोमवार मन ले चल मेरे बचपन,आज उदास है आलम पनघट घड़े लेकर दुल्हन
मन ले चल.. डॉ.प्रदीप शिंदेसुबह सुरज की किरन नींद से जगाती आंगनगांव पाठशाला शिक्षकशिक्षा मिली अनमोलसमान इतवार सोमवार मन ले चल मेरे बचपन,आज उदास है आलम पनघट घड़े लेकर दुल्हन
मकर संक्रांति आई हैं मकर संक्रांति आई हैंएक नई क्रांति लाई हैंनिकलेंगे घरों से हमतोड़ बंधनों को सबजकड़ें हैं जिसमें सर्दी सेबर्फ़ शीत की गर्दी सेहटा तन से रजाई हैंमकर
*मेरा* *वतन* वतन है या तन है मेराप्राण न्योछावर इस पर कर जाऊं मैंसांस है या लहू है मेराभारत पर न्योछावर हो जाऊं मैं फूल है या है कोमल हृदयइस
लोहड़ी आई ,लोहड़ी आईसौगात खुशियो का है लायी।।तिलकुटिया रेवड़ी मिलेजले ज्वाला की तेज अलाव।सर्दी का मौसम उल्लास की गर्मी उत्साह।।लोहड़ी आई ,लोहड़ी आई।।सौगात खुशियो का है लायी।।भांगड़ा गिद्दा डोल नगाड़ो
घर डॉ. नानासाहेब जावळे घर प्रिय नहीं होता, केवल मनुष्य को ही होता है, पशु-पंछियों को भी अपना घर प्यारा हड़कंप मचने के बावजूद, दुनिया में होती है कामना,
ग़ज़ल,,,,, फूलों की खुशबुओं से महकता जिगर रहा।। जब तक किसी हसीन का कांधे पर सर रहा।। देखा जो उसे दूर से अहसास हुआ यूं। जैसे फलक से चांद
बैंक के रोकड़िए काकैसा नसीब हैंदिन भर दोनों हाथसने रहते रोकड़ मेंफिर भी रोकड़ कीपहुँच से दूर हैं मौलिक एवं स्वरचित जगदीश गोकलानी “जग ग्वालियरी” Last Updated on January 13,
प्रेम का रंग चढ़ रहा है धीरे-धीरे बसंत आ रहा हैकोयल कूक ने वाली हैसंंग हम सब नर-नारी हैजोर जोर से बोलने कीसब कर लिए तैयारी हैतन का मन भंग
सीढ़ी छत की दीवार से लगी सीढ़ीखड़ी दो पाँव परऊपर जाती नीचे आतीसीढ़ी चढ़नासीढ़ी उतरनाकरता निर्भरकहाँ खड़े हम। कुछ लोग सीढी के सहारेचढ़ जाते ऊपरवहीं बस जातेबहरे हो जातेअंधे बन
हरियाणा गौरव गान (देशोsस्ति हरयाणाख्य: पृथ्व्यां स्वर्गसन्निभ:) कवि – जितेन्द्र सिंह वीर धरा म्हारा हरियाणा………….… कर्मठ निष्ठावान सारे पासे हम छाये…….…….खेल खेत हो जंग मैदान सभी जिलों की गौरव
बदलाव नए साल पर,कुछ तो नया पन लाओ।हो सके तो,कुछ आदतों में ही सुधार लाओ।कोई कब तक कहेगातुम सुधर जाओकभी तुम हीस्वयं को बदल कर,लोगों को अचंभित कर जाओ।चुन चुन
प्रातःकाल में जो प्रतिदिन,प्रेरित कर हमें जगाता है।जिस सूरज के उग जाने से,अंधियारा दूर हो जाता है।।सब उत्साहित हो-होकर,आगे बढ़ने को मचलते हैं।नीड़ छोड़कर डालों पर,पक्षी भी कलरव करते हैं।।
लोहड़ी का त्यौहार आया आज लोहड़ी का त्यौहार हैसबके दिलों में खिली कैसी बहार हैढोल नगाड़े पर थिरक रहा है कोईकोई गा रहा मधुर गीतों के गान है तिल में
त्योहार परम्परा… “अरे! यहाँ तो आज सुबह से बच्चे लोहड़ी मांगने ही नहीं आए| मैं तो बच्चों को पंजाब में लोहड़ी कैसे मनाते हैं, दिखाने लाई थी” सिमरन बोली| “इंग्लैंड
कविता – 1 सास-ससुर-माँ-बाप रखने की चीज हैं? एक दिन मेरी शादी शुदा सहेली ने बातों-बातों में मुझसे कहा कि मैं अपने सास-ससुर को रखे हूँ इतनी बड़ी जिम्मेदारी उठा
जीवन और मौत का अंतर मैंने मौत को बहुत पास देखा, हिल गई मेरे जीवन की रेखा, वह अद्भुत विलक्षण क्षण , सचमुच प्रलयंकारी था, मुझे
भाषा जब से मानव तब से मैंवन आदिवास में थी मैं गुफाओं के चित्र की रेखा हर देश विविध रुप मेरा मन बुद्धि सिंचित करतीविचारों को मैं जन्म देती मुल
“हे नारी! हे सदा सबल!” (शीर्षक) हे नारी!अब रूप धरोदुर्गा, काली, शतचंडी का,जग के असुरों का नाश करोसंहार करो पाखंडी का।तुम बन महिषासुरमर्दिनी,विनाशिनी हे कपिर्दिनी।जग में असंख्य हैं रक्तबीजव शुम्भ
जो जन्म लिया इस धरती पर तो प्राण यहीं न्योछावर होसीचकर धरती लहु से अपना हर वीर यहाँ बख्तावर हो । गंगा जमुना तहजीब धरे,स्वर्णिम भारत ललकार रहा संस्कृतियों का
“महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता मुझे नहीं बनना है अब देवी कोई मुझे नहीं बनना है अब देवी कोई, मुझे तुम साधारण ही रहने दो, तुम तो
मेरे नसीब के हर एक पन्ने परमेरे जीते जी या मेरे मरने के बादमेरे हर इक पल हर इक लम्हे मेंतू लिख दे मेरा उसे बस,हर कहानी में सारे क़िस्सों
महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुति- नन्हीं का प्रश्न। मैं तेरी नन्हीं सी गुड़िया मैं झप्पी जादू की पुड़िया कोख तिहारे मैं आई हूँ लाखों
प्रेम आधारित काव्य प्रतियोगिता हेतु अंतिम तिथि-20 जनवरी प्रीत के आँगन में। शीतल चंचल मधुर चाँदनी भावों को महकाती है जब जब देखूँ रूप सुनहरा हिय में
– विश्व लाड़ली विश्व कि तुम लाड़ली हो!जगत कि कल्याणी हो!!इस जगत में सताई हो! फिर भी समाज को बचाई हो!! अपने ही जगत में लाड़ली!प्रेम व्यावहार कि पराई हो!!फिर
कविता – विश्व लाड़ली विश्व कि तुम लाड़ली हो!जगत कि कल्याणी हो!!इस जगत में सताई हो! फिर भी समाज को बचाई हो!! अपने ही जगत में लाड़ली!प्रेम व्यावहार कि पराई
ऐ मेरे वतन ——|| मैं आजाद हूँ, मगर आज भी, वक्त की तलहटी पर, नजरें टिकाए बैठा हूँ ऐ वतन तुझको मैं, अपनी दुनिया बनाएं बैठा हूँ अब
जन्मदात्री शक्ति दायनी मां जीवन की झंकार है, मां जीवन की आधार मां में सिमटा सारा संसार है। जीवन की मां पहली मूरत निस्वार्थ भाव की संदर्भ है, पालन-पोषण करने
सशक्तिकरण की जयकारों से गूंजेगी मां वसुंधरा, दुर्गा स्वरूपा शक्ति दायनी की चर्चाओं से अंर्तमन मेरा पूछ पड़ा, वेदों में पुराणों में महिमा नारी की गाते हो, गर्भ में कन्या
कविता*जय भारत , जय भारती* खाते हैं जिस देश कागाते है उसी देश काक्योंकि यह धरती हमारी माता हैजय भारत , जय भारतीसिवा मुझे नहीं कुछ आता है कल-कल बहती
अरुण कमल वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन मुख्यालय डीआरडीओ भवन राजाजी मार्ग नई दिल्ली-110011 मो -9811015727 [email protected] देश भक्ति काव्य प्रतियोगिता के लिए दो कविताएँ
तन वतन के लियेमन वतन के लिएभाव भावनाए वतन का प्रवाहवतन ही जिंदगी वतन ही पहचान ।।वतन पर जीना मरना ही ख्वाब हकीकत अरमान वतन सलामत रहे वतन से ही
मां,,,,, 1,,, मां चंदा की चांदनी ,मां सूरज की धूप।। वक़्त पड़े ज्वालामुखी ,वक्त़ पड़े जल रूप।। 2,,,, सरिता मां की नम्रता, इसमें इतना प्यार।। जीवन भर टूटे नहीं, जिसकी
“देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु साष्टांग नमन तुमको करती, शत बार नमन तुमको करती। मिट्टी से इसकी तिलक करूं, मैं देश नमन तुमको करती ।।
हिन्दी हमारी आन हैहिन्दी हमारी शानहिन्दी से बना हिन्द हमाराहिन्दी से जिंदा है हिन्दुस्तान हिन्दी से हमारी जय जयकारप्रगति का यहीं आधारशब्द सरिताएं समाती इसमेंसागर सा है विशाल आकर आओ
-सृजन आस्ट्रेलिया ई पत्रिका(प्रेम कविताएँ)-यही आस अंतिम बाक़ी-प्यार किया जाता है कैसे,मिले जो तुमसे सीख गए मोहनी मूरत साँवली सूरत,पर हम तेरी रीझ गए बच्चों जैसी बातें तेरी,मीठी-मीठी सी मुस्कान
देशभक्ति कविता जय जवान – जय किसान यह देश है वीर जवानों का, यह देश है वीर किसानों का। उनके ही कन्धों पर भार है पूरे हिन्दुस्तान का।
नन्हे मुन्ने बनो महान…तुम सब हो भारत की संतान..कोयल जैसी बोली बोलो..शीतल मंद पवन से डोलो…तरु की घनी छांव सी छाया ..उपकारी हो तेरी काया..फूलों की खुशबू से महको..नन्ही गौरैया
श्रद्धांजलि आज मेरा दिल उन वीरों को श्रद्धांजलि देने के लिए, अपने आप ही नतमस्तक है, जिन्होंने अपने प्राणों की बाज़ी लगाने में तनिक भी संकोच नहीं किया, पलटकर सूनी
शहीद की माँ इक बुढ़िया आँसुओं से आँगन लीप रही थी, आसमान रो रहा था धरती काँप रही थी। बेजान लाश बनी वह खुद को ढो रही थी, न जाने
-सृजन आस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई पत्रिका(देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता)-ओज की रसधार-माँ वाणी से राष्ट्रहित उपहार माँगता हूँशब्द-शब्द में ओज की रसधार माँगता हूँ बात जब-जब भारत स्वाभिमान की उठेगीदेश ख़ातिर प्राणों के
“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता –देश की मिट्टी देश की मिट्टी अपने देश की मिट्टी की, बात ही कुछ और हैं| खेत खलिहानों में दमकते, सरसों की फूलगियों पर
अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन हेतु,प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु मनु–कुल का सृजन- श्रृंगार अधूरा है जीवन जिए बिन श्रृंगार, रसिकता ही जीवन का नित आधार। भावानंद है प्रणय का
प्यार के शब्द की अनकही सी वही अपने दिल की ग़ज़ल गुनगुना दीजिए दर्द देता है मायूस चेहरा सनम मेरी खातिर जरा मुस्कुरा दीजिए लाखों की भीड़ में गुमशुदा मैं
भारत के वीर सपूतों की गाऊँ मैं गाथा नित्य प्रति, हर- हर महादेव के बोलों को दोहराऊंगी मैं नित्य प्रति| आकाश पे पड़ती रेखाएँ करे उनके शौर्य का गुणगान, जल
कविता ……( 1 ) ” वीर सपूतों की गाथाएं “ वीर सपूतों की गाथाएं हमने तुम्हे सुनाई हैबैरी को जिसने सीमा पर जमकर धूल चटाई हैखड़ा हुआ सरहद पर प्रहरी
बेचारी बन्नी की मम्मी ————————-सुबह से रात हो जाती है,लगी रहती है,अपने घर को सजाने में,बच्चे जो है बिगड़ैल,उन्हे सँवारने में।वह रोज अपने दो कमरे के घर में,सेण्ट छिटकती है,कोने-कोने-
वो हार कहां मानती है! सुबह की मीठी धूप सी सुकून भरी गीत वो वोअरुणिमा है शाम की हर सुख -दुख की मीत वो!!वो शक्ति की प्रतीक हैवो सृष्टि का
वीरों को देश का वन्दन उन वीरों को देश का वन्दन, जो प्राणों को वारे हुए हैं, अपनी खुशबू दे के वतन को, आज वो चाँद-सितारे हुए हैं । हम
वीरों का वंदन होना चाहिए इस देश का अम्बर रोता है, इस देश की धरती रोती है, जब-जब वीर जवानों को, भारत माता खोती है । अलगाववाद के नाम पर,
जल उठे दीप जल उठे दीप दोऊ ,आरती तो सजाने दे भावना का भोग , इस देवी को चढ़ाने दे | हँसी की तरंगिणी को ,कान घुल जाने दे मिश्री
जाग वीर जाग वीर वीरता भर ,निंद्रा का तू त्याग कर दे भारती के आन पर तू, प्राण का बलिदान कर दे प्रस्थान कर सीमाओं पर, अरि को तू
प्रेम की परिभाषा प्रेम की पवित्रता परखना हो तो भगवान की सूरत से परखों प्रेम छोडने के लिए नहीं
1****** “मातृ वन्दना” ***** हे जन्मभूमि, हे कर्मभूमि, हे धर्मभूमि है तुझे प्रणाम! ऐ रंगभूमि, ऐ युद्वभूमि, ऐ तपोभूमि है तुझे प्रणाम!! सम्प्रदायों की सरिताएँ हैं, बहु धर्मों का संगम
गुलाम 3 – रेत रेत खेलती लङकियों ने फैसला कियाअब नहीं खेलेंगे रेत रेतऔर कुछ हाथों ने अचानक बन्दूक थाम लियानेस्तोनाबूत कर दिए गयेकितनी गुङियों के घरतोङ दी गई कलमेंफाङ डाले
Last Updated on January 11, 2021 by ashokpainter27 रचनाकार का नाम: अशोक धीवर पदनाम: जलक्षत्री संगठन: राष्ट्रवादी लेखक संघ सदस्य ईमेल पता: [email protected] पूरा डाक पता: ग्राम तुलसी (तिल्दा-नेवरा) जिला-रायपुर
यादें [“हरिश्चंदा” (प्रेम की अनन्य गाथा) प्रेम काव्य कविता का नायक हरि अपनी चंदा का स्मरण करते हुए लेखक “हिंदी जुड़वाँ”] मैं पलट रहा हूं पन्ना पन्ना, यादों की परछाई
मै हू एक नारी सबला होकर भी क्यों पुकारते है अबला हर वक्त हर कदम ये सवाल रहता साये की तरह पीछे सोच सोच कर हार जाती हू जवाब ढूड
राष्ट्र की ये दुखियारी धरती स्वर्ग बना दे भारत माँ,अपनी ममता के अमृत से इसे सजा दे भारत माँ। देश के कपटी भ्रष्टाचारी तुझसे धोखा करते हैं,तेरे ही आँचल में
आज हमें भारत को स्वर्ग बनाना है,अपने श्रम की बूंदों से सजाना है। चलें राष्ट्र के गौरव को बढ़ाने हम,आओ तोड़ दें सभी स्थूलता का ये भ्रम,नहीं रहेगा भारत अब
शहीदों के खून की खुशबू मिटने नही देगे, हम अपने परचम को कभी झुकने नही देगे | हमे लुटने के दर्द का अहसास हो चुका है, बमुश्किल सम्हले है आबरू
1. भारत वंदना आतंकित पीड़ित है आज गौरवमयी भारत माँ अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन धानी के अंचल में तरुणाई सोती है सावन के झूलों को
गणतन्त्र दिवस छब्बीस जनवरी उन्नीस सौ पचास कोमेरा भारत घोषित हुआ गणतन्त्रसंविधान लागू हो गया और भारत बन गया पूर्ण गणतन्त्र । पर यह मुकाम हासिल करने में,कितनों ने जान
शहीद देश की आन पर कुर्बान हो गए सरहदों पर जो अड़े मेरी जान हो गए हूँकारते रहे वो सिहं सी दहाड़ से मात दे वो मौत को हिंदुस्तान होगए
मिलन प्रिय जब से सुनी है मेरे कानों में तेरे कदमों की आहट।दिल धड़कने लगा है, बैचेनी बढ़ी, बढ़ गयी घबराहट। थम गई है सांसे तुमसे तुम्हारा प्रेम छुपाना चाहती
देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता के लिए प्रेषित कविताएं 1.कविता का शीर्षक :- लोकततंत्र लोकतंत्र की राजनीति में, ‘लोक’ खो गया ‘तंत्र’ बाकी हैं।
परिचय: नाम – डॉ . पद्मावती जन्म स्थान -दिल्ली, मातृ भाषा- तेलुगु शैक्षिक योग्यता – एम ए ,एम फ़िल , पी.एच डी , स्लेट. (हिंदी) अध्यापन कार्य
वक्त की चादर ओढ़े बैठा खुदको ढूंढता रहता हूँ मैं।दुनियां बहुत बड़ी है लेकिनमैं उस चादर में ही सिमटा रहता। डर से भाग रहा हूँ खुदकेऔर मैं खुद में ही
वक़्त Last Updated on January 10, 2021 by dr.satyamitra रचनाकार का नाम: सत्यमित्र पदनाम: डॉ संगठन: सृजन ईमेल पता: [email protected] पूरा डाक पता: सितारगंज ऊधम सिंह नगर उत्तराखंड 262405
परधानी का चुनाव——————————चुनाव प्रचार पर आएमचमचाती गाड़ी से लखदख उजलेलिबास वाले प्रधानजी नेएक युवा से पूछा –गांव में अब कितने आदमी होंगे?युवा मोबाइल में देखते हुए बोला – एक भी
मेरा देश कश्मीर से कन्याकुमारी फैला जिसका रूप है, प्यारा अपना देश है वो प्यारा अपना देश है, गंगा जी की निर्मल धारा हिमालय की कोख़ है, सागर से मिलकर
देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता –शहीदों के बूँद-बूँद रक्त का कर्जदार हुआ हूँ मैं ———————————————- ये जिंदगी तेरे नाम कर दी मैंनेहम-वतन शहीदों के नाम कर दी मैंनेशहीदों के बूँद-बूँद
अन्तरराष्ट्रीय देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित मेरी प्रविष्टि-स्वरचित, मौलिक,सर्वथा अप्रकाशित एवं अप्रसारित देशभक्ति गीत—शीर्षक-“हमरा तिरंगा” हमरा तिरंगा गगन में लहराए रेहमरा तिरंगा..हमरा तिरंगाइस झंडे में तीन रंग साजें
अन्तरराष्ट्रीय देशभक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता में प्रेषित मेरी प्रविष्टि-स्वरचित, मौलिक,सर्वथा अप्रकाशित एवं अप्रसारित देशभक्ति गीत—शीर्षक-“हमरा तिरंगा” हमरा तिरंगा गगन में लहराए रेहमरा तिरंगा..हमरा तिरंगाइस झंडे में तीन रंग साजें
भारत अपना देश भारत अपना देश आज यह सोच न क्यों इठलाएँ यही हमारी मातृभूमि ले नाम न क्यों इतराएँ ।। खिले यहीं राणा प्रताप, शिवा- से फूल निराले आजादी
युवा पीढ़ी के नाम…. नव जवानों देश का संदेश चाहता कुछ आज हमसे है हमारा देश ।। आज इसको चाहिए स्वर्णिम रसा का प्राण चाहिए इसको अभी कर्मठ युवा की
वीरों की कहानी आओ एक कहानी देश के वीरों के नाम लिखते हैं आओ वीर शहीदों के जीवन से हम कुछ सीखते हैं
*राष्ट्र की भाषा*१४+१४भारत की सारी भाषाएं!हिंदी से सबकी निष्ठाएं! अंग्रेजी ने दास बनाया;कैसे उससे प्यार निभाएं? हिंदी मां के पथ में उर्दू;नित नित खड़ी करे बाधाएं! एक हाथ से बजे
भारत के पूत धन्य भारत के वीर सपूतधन्य भारत की माताएँ।मातृभूमि की रक्षा के हित,निज जीवन कुर्बान किए। कारगिल की जंग हो चाहेआपदा से लड़ने की बारी।भारत भू की ललनाओं
भारत के पूत कारागार के कोने में, बंधे हुए थे वीर जंजीरों में सुने नहीं कोई वीर ऐसे, अब तक हमने वीरों मेंवे सहिष्णु विवश नहीं, उनसा कोई महान नहीं
छोडो जी अंग्रेजी भाषा अंग्रेजी की बात पुरानी भारतवासी सब मिलकर हम सिखेंगे हिंदी भाषा हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी, हम हिंदुस्तानी ।। 1 ।। बापु जी की