1. भारत वंदना
आतंकित पीड़ित है आज गौरवमयी भारत माँ
अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन
धानी के अंचल में तरुणाई सोती है
सावन के झूलों को डाली अब रोती है
दिग्भ्रमित हैं युवा जन दिखला दे राहें वतन
अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन
नहीं भाषा में अब भेद, है धर्म हमारा एक
हम सब भारतवासी सबकी नियत है नेक
गौरवमयी वाणी में करते हैं राष्ट्र अर्चन
अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन
हम सबका यह सन्देश अब नहीं बंटेगा देश
सबके सद्कर्मों से जन जन के मिटेंगे क्लेश
मानव के मिटे कृन्दन सर्वत्र हो चैन अमन
अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन
आतंकित पीड़ित है आज गौरवमयी भारत माँ
अर्पित कर दे तेरी सेवा में तन-मन-धन
*****
सतीश आचार्य
‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001
मो. 94142 19618
Email : [email protected]
व्हाट्सएप नंबर 94142 19618
2. अमन के रखवाले
हम है अमन के रखवाले, युद्धों को अब कैसे टाले
ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी
बिना दीन वंदन के कैसे मिटेगा
धानि के अंचल का अविरल ये कृन्दन
सफर की डगर पे टिकी है निगाहें
कहो अब कटेगी विषमता की राहे
समर्पित हो समभाव के लक्ष्य लेकर,जागी है अब ये जवानी
ग़म से नहीं दोस्ताना हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी
,
वतन के हम राही समर्पित सिपाही
न कोई पराया सभी भाई भाई
वतन के लिए ही सदा हम जियें है
अमन की फ़िज़ा में करें क्यूँ लड़ाई
उठाई वतन पर किसी ने जो आँखे, याद आयेगी उनकों नानी
ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी
वसुधा पुकारे लड़े मिलके सारे
है संकट में दुनिया सभी मिलके तारे
ज़माना करे मान हर उस मनुज का
जो निज प्राण देकर जगत को बचाएं
अगर अब ना समझे ना संभले तो समझो, सबकों कीमत पड़ेगी चुकानी
ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी
हम है अमन के रखवाले, युद्धों को अब कैसे टाले
ग़म से नहीं दोस्ताना, हमारा खुशियाँ है अब जिंदगानी
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सतीश आचार्य
‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001
मो. 94142 19618
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3. मातृभूमि
ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन
आंच ना आयेगी तेरी शान पर खाते कसम
ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन
नफरतों के बीज बोकर, अमन की क्यों आस पाले
इस विषम आतंक वेला में कहो अब क्या बचाले
वेदना के इन क्षणों में शांति का आव्हान करलें
देशहित निकले हमारे प्राण, यह संकल्प कर ले
सरहदों की शान में मिटना हमारा है धरम
ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन
आज अरि को खटकता है, मेरे गुलशन का अमन
उस चमन को कौन लूटे जिसके रखवाले है हम
धूल में मिल जाए ना जो शान की भारत की रही
वक्त का दस्तूर कहता, ये शहादत की घड़ी।
आखिरी मौका है वापस खिंच ले बढ़ते कदम
ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन
मन जले जब देश में अलगाव की बातें चले
देश को बर्बाद करने सांड छूटे क्यूँ करें
जंग की वेला वतन में और हम वीतराग गाये,
देशहित जन्मे है सारे देश पर सब जान लुटाये।
आज जग भी जान ले मां के जायों का ये जतन
ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन
ऐ वतन तेरी ज़मी को करते हम सौ-सौ नमन
आंच ना आयेगी तेरी शान पर खाते कसम
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सतीश आचार्य
‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001
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4. राष्ट्रहित
राष्ट्रहित बलिदान अब पीढियां कैसे मिलेगी
देशद्रोही की समर्पित भावना कैसे फलेगी
जबतलक मुझको यहाँ मिलता नहीं परिणाम है
आ मृत्युतक जीवन में देखो अब कहाँ विश्राम है
विश्रामहिन जीवन बने निज राष्ट्र के खातिर यहां
संग्राम गृह संघर्ष आभूषण बनेंगे अब यहां
विश्रामहिन जीवन को अब तरुणाई ने ललकारा है
निज राष्ट्र गौरव से कहें हिन्दुस्थान हमारा है
ऐसा न हो ये राष्ट्र योय कल तुम्हारें कर्म पर
ऐसा न हो कि जग हँसे कल राष्ट्र के इस मर्म पर
निज कार्य को तुम राष्ट्र हित साधक समझ बढ़ते चलो
निज स्वार्थ को तुम राष्ट्र हित बाधक समझ चलते चलो
इस राष्ट्र के अस्तित्व से ही अब हमारा मान हैं
जो राष्ट्र गौरव को तजे वो नर पशु सामान है
राष्ट्र गौरव के लिए जसने तजे निज प्राण है
उस राष्ट्रभक्त पुरुष का ही स्वप्न हिन्दुस्थान है
अब ही अगर कुछ शेष है दिखलादो मेरे साथियों
अब भी अगर कुछ गर्म है उठ जाओं मेरे साथियों
संग्रामहिन जीवन को अब इस राष्ट्र ने पुकारा है
समवेत स्वर में सब कहें हिन्दुस्थान हमारा है
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सतीश आचार्य
‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001
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5. मत लाशों का व्यापार करो
जीवन संघर्षों का सागर तुम हंसते – हंसते पार करो।
अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।
आतंकवाद-अलगाववाद घाटी में आज चले गोली।
केसर की क्यारी हुई लाल क्यूं खेले हम खूनी होली।
गैरों के बहकावें में तुम मत अपनों का संहार करो।
अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।
हादसें हो गये जो सारे हमें उनको आज भुलाना है।
भूले-भटके भारतवासी को आज राह पर लाना है।
मत भूलो देश सभी का है मिलकर के सब हुंकार भरो।
अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।
ये वतनपरस्ती का जज़्बा हर दिल आज जगाना है।
जो द्रोह की बात करे हमें उसको सबक सिखाना है।
जो मिटे देा की खातिर उन बलिदानों का सम्मान करो।
अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।
परहित के सारे काम करें जीवन मर्यादित हो अपना।
खुशहाल जींदगी हो सबकी ये देश बने सुंदर सपना।
हिरे से मनख़ जमारे को मत सडकों पर निलाम करो।
अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।
जीवन संघर्षों का सागर तुम हंसते – हंसते पार करो।
अपने स्वार्थ के कारण तुम मत लाशों का व्यापार करो।
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सतीश आचार्य
‘सुभद्रा सदन’ 4/59-प्रगति नगर, कोलेज रोड़, बांसवाडा (राजस्थान) 327 001
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Last Updated on January 10, 2021 by satish.acharya26
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