न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

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गीतिका छंद “चातक पक्षी”

(गीतिका छंद) मास सावन की छटा सारी दिशा में छा गयी।मेघ छाये हैं गगन में यह धरा हर्षित भयी।।देख मेघों को सभी चातक विहग उल्लास में।बूँद पाने स्वाति की पक्षी

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दोस्त

दोस्त अब  मत  सुनाओ हमे  दर्दभरे  अफसाने ।हमने  तो  गमों  से रिश्ता  ही  तोड  दिया । अब  जमाने  की  हमे कोई  परवाह  नही ।हमने  तो  भगवान  कोदोस्त  बना  दिया । भगवान  से  दोस्ती कियी 

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भटकती आत्मा

भटकती आत्मा! चौबीसों घण्टे,नकारात्मकता से युक्तरोज़ाना ख़बरों में कोरोना वायरस के संक्रमण के बढ़ते मामलों और मृत्यु-दर के साथ-साथ असंख्य कहानियों को सुनते-देखते,ज़िंदगी अग्रसर है। मार्च में लॉक-डाउन के बावजूद,तबलीगी

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गधों की चिंता करना छोड़ें, अपने बारे में ही सोचें कुरड़ी पर लौटे बिना, उन्हें स्वाद थोड़े न आएगा..

सुशील कुमार ‘नवीन’ दो दिन पहले सोशल मीडिया पर पढ़े एक प्रसंग ने मन को काफी गुदगुदाया। आप भी जानें कि आखिर उसमें ऐसा क्या था कि उक्त प्रसंग, लेखन

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प्री-बोर्ड

प्री-बोर्ड उर्मिला काफी देर से चम्मच को उल्टा सीधा करके देख रही थी और उसकी माँ सुधा उसे।उर्मिला अमूमन अल्हड़ स्वभाव का वर्ताव किया करती थी और सुधा को उसी

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रोला छंद “शाम’

(रोला छंद) रवि को छिपता देख, शाम ने ली अँगड़ाई।रक्ताम्बर को धार, गगन में सजधज आई।।नृत्य करे उन्मुक्त, तपन को देत विदाई।गा कर स्वागत गीत, करे रजनी अगुवाई।। सांध्य-जलद हो

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अरमानों की गाँठ

  अरमानों की गाँठ (एक स्त्री का सामाजिक जीवन परिवार की जिम्मेदारियों के सान्निध्य में घिरा होता है, स्त्री अपने पारिवारिक सदस्यों के अरमानों  को सजाने के लिए निस्वार्थ लाभार्थी

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प्रिय मैं तुमसे भिन्न हूँ कहाँ

प्रिय मैं तुमसे भिन्न हूँ कहाँ (प्रत्येक प्रियतमा अपने प्रियतम की छवि होती है, अपने प्रियतम में सागर की जल धारा बनकर संग -संग चलती है, इसी संदर्भ में प्रस्तुत

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ख़ुद को भी जानो

ख़ुद को भी जानो दुनिया की इस भाग दौड़ में खुद को भी कुछ समय दो ।क्या कर रहे हो क्यों कर रहे हो कैसे जी रहे हो क्या वाकई

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कौन दिसा के वासी तुम?

कौन दिसा के वासी तुम? [प्रियतम के दूर होने से मन की उत्कंठा भिन्न भिन्न रूपों में प्रियतम की कल्पना करता हुआ उदास है अर्थात् जीवन में जीवनसाथी की निकटता

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ईश्वरः एक रूप अनेक …

ईश्वरः एक रूप अनेक … (अध्यात्म में ईश्वर के अनेक स्वरूप है और उन्हीं में ईश्वर का एक रूप कृष्ण के रूप में चर अचर जीव जंतु जड़ चेतन सभी

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आँगन में खेलते बच्चे

आँगन में खेलते बच्चे आँगन में खेलते रंग-बिरंगे बच्चे,लगते कितने प्यारे कितने अच्छे !फूलों-सी मुस्कान है-चेहरों परऔर आँखों में भरे-सपने सच्चे । खेलते छुपन-छुपाई, पकड़म-पकड़ाई,गोपी चंदर ने इनकी ख़ुशी बढ़ाई;भले

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माँ- मातृ दिवस पर ब्रह्म रूपी जननी माताओं को समर्पित कविता

    माँ [इस संसार में ब्रह्म का दूसरा स्वरूप स्त्री हैं, स्त्री का माता का स्वरूप स्वयं ब्रह्म हैं। जगत जननी माताओं को समर्पित कविता]          

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देखो मेरे नाम सखी

देखो मेरे नाम सखी “   प्रियतम की चिट्ठी आई है देखो मेरे नाम सखी विरह वेदना अगन प्रेम की लिक्खी मेरे नाम सखी ।   आसमान में काले बादल

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विलुप्ति की कगार पर खड़ी प्राचीन नाट्य परंपरा और हमारी चिंता

विलुप्ति की कगार पर खड़ी प्राचीन लोकनाट्य परम्पराएं और हमारी चिंता ……… —————————- हमारा देश विविध कला और संस्कृति प्रधान देश रहा है जहाँ हर पचास और सौ किलोमीटर की

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विस्मृति

सुनहरी सजीली भोर, सुहानी नहीं आई, तरुणों में उत्साह की, रवानी नहीं आई। नवयुवक को नभ देख रहा है आशा से, जिंदगी चलने लगी, जिंदगानी नहीं आई।। लिखनी तुम्हें अपनी,

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कहां है सोने की चिड़िया?

    कहां है की चिड़िया?   इतिहास ही नहीं पढ़ा देखा है, दूर देशाटन यात्रा में गड़े शव जहां मैं खड़ा था पग पग पर वहीं पश्चिम में राजपूत

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हालात

राहें सूनी, गलियाँ सब वीरान हो गए हैं जिंदा लाशों से देखो अब इंसान हो गए हैं।।                    *****      खून

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ताटंक छंद “भ्रष्टाचारी सेठों ने”

ताटन्क छंद “भ्रष्टाचारी सेठों ने” (मुक्तक शैली की रचना) अर्थव्यवस्था चौपट कर दी, भ्रष्टाचारी सेठों ने।छीन निवाला दीन दुखी का, बड़ी तौंद की सेठों ने।केवल अपना ही घर भरते, घर

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सरसी छंद “राजनाथजी”

सरसी छंद “राजनाथजी” भंभौरा में जन्म लिया है, यू पी का यक गाँव।रामबदन खेतीहर के घर, अपने रक्खे पाँव।।सन इक्यावन की शुभ बेला, गुजरातीजी मात।राजनाथजी जन्म लिये जब, सबके पुलके

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मुझको देखोगे जहां तक, मुझको पाओगे वहां तक, मैं ही मैं हूं, मैं ही मैं हूं दूसरा कोई नहीं…

सुशील कुमार ‘नवीन’ कोरोना की दूसरी लहर में देश के हालात दिनों-दिन बद से बदतर होते जा रहे हैं। सरकारी दावे और चिकित्सा व्यवस्था की धज्जियां उड़ रही है। हर

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निजाम फतेहपुरी की गज़लें

1. ग़ज़ल- 122 122 122 122 अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन ग़ज़ल नक्ल हो अच्छी आदत नहीं है। कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।। है  आसान  इतना 

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मोहन राकेश के नाटकों में अभिनेयता

मोहन राकेश ने नाटकों में ‘रंगमंच संप्रेषण’ का पूरा ध्यान रखा है। नाट्य लेखन में राकेश ने नए-नए प्रयोग किए है। जैसे- दृश्यबंध, अभिनेयता, ध्वनियोजना, प्रकाश योजना, गीत योजना, रंग-निर्देश के साथ-साथ भाषा के स्तर पर परिवर्तन के कारण नाटक को सजीव रूप मिला है। इसी कारण नाटकों में अभिनेयता अधिक रूप में फली फुली है। राकेश ने उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, निबंध, एकांकी आदि विधाओं में कलम चलाई है। लेकिन नाट्य साहित्य में जो प्रसिद्धि मिली शायद किसी नाटककारों को मिली होगी। इसमें ‘आषाढ़ का एक दिन’ (1958), ‘लहरों के राजहंस’ (1963) और ‘आधे अधूरे’ (1969) में अभिनेयता को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

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हालात क्यों बिगड़े ये न पूछें, ये बताएं कि हमने इसके लिए क्या किया…

सुशील कुमार ‘नवीन’ कोरोना ने फिलहाल देश के हालात खराब करके रख दिए हैं। समाज का हर वर्ग पटरी पर है। व्यापार-कारोबार सब प्रभावित। अस्पतालों में न वेंटीलेटर मिल पा

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आत्मबल

      आत्मबल (जब जीवन में और निराशा घेर लेती है तब हमारे अपने भी हम से विमुख हो जाते हैं परंतु किसी भी स्थिति में मनुष्य को अपना

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कोरोना संकट में भारतीय संस्कृति का पुनरोदय 

    कोरोना संकट में भारतीय संस्कृति का पुनरोदय  हेतराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”   कोरोना आज वैश्विक बड़ी महामारी है। इस संदर्भ में विश्व स्तर पर इस महामारी को रोकने

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कोरोना संकट में कार्यरत योद्ध़ाओं का संघर्ष

कोरोना संकट में कार्यरत योद्ध़ाओं का संघर्ष       हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”                     कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण आज हम अपने- अपने घरों में बंद हैं

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माँ

  माँ (माँ, स्वयं विधाता का प्रतिरूप है और इस संसार में  नारी शक्ति – माँ पर दुनियाभर में अनंत काव्य सृजन किए  गए  हैं, किए जा रहे हैं। उन्हीं

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पृथ्वी दिवस विशेष – प्रकृति को “अनर्थ” से बचाने का संकल्प है “अर्थ डे”

सम्पूर्ण विश्व में पृथ्वी ही एकमात्र गृह है, जिस पर जीवन जीने के लिए सभी महत्वपूर्ण और आवश्यक परिस्थितियां उपयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं | यही कारण है कि

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कविता का काम स्मृतियों को बचाना भी है – अशोक वाजपेयी

हिन्दू कालेज में हमारे समय की कविता पर व्याख्यान दिल्ली। कविता का सच दरअसल अधूरा सच होता है। कोई भी कविता पूरी तब होती है अपने अर्थ में जब पढ़ने

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मैं स्त्री हूं

  मैं स्त्री हूं मैं स्त्री हूं, मैं संसार से नहीं                                                                    संसार मुझसे है,                                                                             जीवन का सार मुझसे है                                                                       मनुष्य का आधार मुझसे है

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वैश्विक हिंदी की चुनौतियां: कुछ भाषाई समाधान

विभिन्न समय ज़ोन में आप सभी को मेरा यथोचित अभिवादन। मैं आज आप सभी को एक अत्यन्‍त  महत्वपूर्ण मुद्दे पर संबोधित करने में सम्मानित महसूस कर रहा हूं । हिंदी का भूमंडलीकरण  एक ऐसा मुद्दा है,

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कुछ कोलाब- खास रिश्ते

कुछ कोलाब- खास रिश्ते (काेलाब मन के वो भाव हैं जो मन मस्तिष्क से होते हुए हमें उत्साहित करते हुए, नई खुशियों के साथ परिवर्तन की चेतना प्रदान करते हैं।)

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*नवरात्रि पर्व दुर्गा पूजा हिन्दू/सनातन धर्म का त्योहार है*

*नवरात्रि पर्व दुर्गा पूजा हिन्दू/सनातन धर्म का त्योहार है***************************************** लेखक : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.     पौराणिक महत्व का माँ दुर्गा की शक्ति की पूजा अर्थात

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*डॉ.भीम राव अम्बेडकर जयन्ती पर-विशेष काव्य*

*डॉ.भीमराव अम्बेडकर जयंती पर-विशेष काव्य*(जन्म,कर्म,शिक्षा,संघर्ष,उपलब्धि,मृत्यु व सम्मान) रचियता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   बाबा साहब अम्बेडकर,जी की आज जयंती है।समाजसुधारक काम किये,उसका रंग वसंती है। जन्मे14अप्रैल1891में,महू

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*जय माता दी बोलें-नवरात्रि व राम नवमी है*

*”जय माता दी बोलें-नवरात्रि व राम नवमी है* **************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. आया है देखो यह माँ का त्योहार,सजने लगा देवी मैय्या का दरबार।

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*समाज सुधारक बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर*

*समाज सुधारक बाबा साहब डॉ.भीम राव अम्बेडकर***************************************** लेखक : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   भीम राव अम्बेडकर जी (बचपन में इनका नाम भीम सकपाल था) का जन्म

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बिशन

किशन सुबह ब्रह्म मुहूर्त की बेला में उठा और शाम के दिये बापू के आदेशों को याद कर बेचैन हो गया बापू ने शाम को किशन को समझाते हुए कहा

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नवगीत (कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध)

सुन ओ भारतवासी अबोध,कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध? आये दिन करता हड़ताल,ट्रेनें फूँके हो विकराल,धरने दे कर रोके चाल,सड़कों पर लाता भूचाल,करे देश को तू बदहाल,और बजाता झूठे गाल,क्या ये ही

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क्षणिकाएँ (विडम्बना)

(1)झबुआ की झोंपड़ी परबुलडोजर चल रहे हैंसेठ जी कीनई कोठी जोबन रही है।** (2)बयान, नारे, वादेदेने को तोसारे तैयारपर दुखियों की सेवा,देश के लिये जानसे सबको है इनकार।** (3)पुराना मित्रपहली

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वज़ूद

#वज़ूद इस कायनात में अगर कुछ हैतो वो सिर्फ “वज़ूद”अगर वो है तो ये सारी दुनियाँ तुम्हारे पक्ष में है । इसलिए ,,,,स्वयं को पढ़ो, लिखो, सँवारो,निखारो,अपने लिए भी,कुछ वक़्त

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कृष्णकलि

तुम एक कृष्णकलि हो, क्यों तुम सिमटी हुई, शरमाई हुई हो ? बागों में खिले फूल तुम्हारे साथी है फिर क्यों शरमाई हुई हो ?तितलियों की उड़ान तुम्हारे लिए है,

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*अमर शहीदों को नमन हमारा-श्रद्धा सुमन समर्पित*

*अमर शहीदों को नमन हमारा-श्रद्धा सुमन समर्पित***************************************** रचनाकार : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   नक्सलवाद आतंकवाद,ही भारत के दुश्मन हैं।नक्सलवादी आतंकवादी,सभी हमारे दुश्मन हैं। वीर एवं जांबाज़

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*”विश्व स्वास्थ्य दिवस-2021″पुनः बढ़ते कोरोना से जंग*

*”विश्व स्वास्थ्य दिवस-2021″ पुनः बढ़ते कोरोना से जंग* **************************************** लेखक: *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   विश्व स्वास्थ्य दिवस पर आज हमारा भारत ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व

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गरिमा से रहो

गरीमा से रहो जब  कोई दे रही है बिंदियाॅ ,  हरे कांच की चुडियाॅकोई लगा रही है कुंकुंमतो  परहेज क्यों ?महिलाओंका यह बचपन का हक  है ।अपना हक अदा करना है

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हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए एकजुट आंदोलन की आवश्यकता : प्रो आशा शुक्ला

भारत के सभी हिंदी सवियों, हिंदी सेवी संस्थाओं विश्वविद्यालयों को एकजुट होकर हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए आंदोलन करने की आवश्यकता है। यह बात डॉ. बी.आर. अम्बेडकर सामाजिक विज्ञान विश्वविद्यालय

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मेरे हमसफ़र

मेरे हमसफ़र मैं तेरी जीवनसंगिनी तू मेरे सिर का ताज कल की विपदा सोच क्यों खोये हो आज साथी हूँ‌ तेरे पथ की हरपल चलूं तेरे संग कौन झूठलाए प्रेम

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आत्मा की परमयात्रा का परमात्मा जीजस

यूं नहीं युग मे कोई भी स्वर सा गूंजता बन ईश्वर सत्यार्थ ।।जाने कितनी ही दुःखपीड़ा से पड़ता जिसका पालायुग वर्तमान स्वर की सत्यसाधना अवतार आत्मा की परम यात्रा करना

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बसंत और फाग

आई आई बसंत बहार लहलहाते खेत खलिहानपीले फूल सरसों के खेतों मेंबाली झूमें खुशियों की बान हज़ार।।आई आई बसंत बाहरलाहलाते खेत खलिहान। बजते बीना पाणि केसारंगी सितार माँ की अर्घ्यआराधना

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बासंती बयार रफ्ता रफ्ता

बासंती बयार रफ्ता रफ्ताफागुन की फुहार रस्ता रस्ताहोरी की गोरी का इंतजार लम्हा लम्हा।।आम के बौर मधुवन की खुशबू ख़ासकली फूल गुल गुलशन गुलज़ाररफ्ता रफ्ता।।माथे पर बिंदिया आंखों में काजल

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किस रंग खेलू होली

दिल दुनियां के रंग अनेकोंकिस रंग खेलूं होलीमईया ओढे चुनरी रंग लालकेशरिया बैराग किस रंग खेलूं होली।।रंग हरा है खुशहाली हरियाली पहचानखुशियों का अब रंग नही हैजीवन है बदहाल किस

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थाने वाला गांव

  विल्लोर गांव का एकात्म स्वरूप बदल चुका था गांव छोटे छोटे टोलो में जातिगत आधार में बंट एक अविकसित कस्बाई रूप ले चुका था जहाँ हर व्यक्ति गांव के

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होलिका दहन

*होलिका दहन* हर साल मुझकों जलाने का अर्थ क्या हुआ ? सोच से अपनें मेरें जैसे सामर्थ सा हुआँ हाथ में मशाल वालों से पूछतीं हैं होलिका जलाने का प्रयास

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*प्रेम के सतरंगी रंगों से भरा गंगा जमुनी संस्कृति व भाईचारे का प्यारा रंगपर्व होली*

*प्रेम के सतरंगी रंगों से भरा गंगा जमुनी संस्कृति व भाईचारे का प्यारा रंगपर्व होली* लेखक :*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   भारतीय विभिन्न ऋतुओं के समय समय

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*विश्व रंगमंच दिवस की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं*

*”विश्व रंगमंच दिवस” की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं***************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   यह सुन्दर संसार ही,जीवन का एक रंगमंच है।दुनिया में आने वाला,हर शख़्स

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*अयोध्या में संतो संग हिन्दू-मुस्लिम खेलें रंग होली*

*अयोध्या में संतों संग हिन्दू-मुस्लिम खेलें रंग होली**************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   खेलें हिन्दू मुस्लिम मिल कर होली,अयोध्या में राम लला के घर होली।

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होली

बस रंगों का त्योहार हैं होली और ढंगों का त्योहार हैं होली मिलजुल जाए आपस में सारे ऐसा यहीं ईक़ त्योहार हैं होली   करती फिज़ा ज़वान हैं होली बदलतीं

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मनहरण घनाक्षरी “होली के रंग”

मनहरण घनाक्षरी “होली के रंग” (1) होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है। हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,मुख से अजीब

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मौक्तिका (रोती मानवता)

मौक्तिका (रोती मानवता)2*14 (मात्रिक बहर)(पदांत ‘मानवता’, समांत ‘ओती’) खून बहानेवालों को पड़ जाता खून दिखाई,जो उनके हृदयों में थोड़ी भी होती मानवता।पोंछे होते आँसू जीवन में कभी गरीबों के,भीतर छिपी

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चाहत का इश्क

लव है पैमाना ,नज़रे है मैख़ाना तेरी चाहत दुनियां कि तकदीर दीदार बीन पिए वहक जाना।। सावन की घटायें तेरी जुल्फे चाल है मस्ताना ।। गज गामिनी अंदाज़ अशिकाना हुस्न

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शराब कहते है

हलक को जलाती ,उतरती हलक में शराब कहते है।।लाख काँटों की खुशबू गुलाब कहते है।।छुपा हो चाँद जिसके दामन मेंहिज़ाब कहते है।।ठंडी हवा के झोंके उड़ती जुल्फोंमें छुपा चाँद सा

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अल्फ़ाज़

  जुबां तोल, मोल , बेमोल,अनमोल, बहारों के फूलों कि बारिश अल्फ़ाज़। तनहा इंसान का अफसोस हुजूम के कारवां कि जिंदगी का साथ अल्फाज़।।वापस नही आते कभी जुबां से निकले

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पानी

  मर जाता आँख का पानीइंशा शर्म से पानी पानी।आँखों से बहता नीर नज़र काआँसू पानी ही पानी।। ख़ुशी के जज्बे जज्बात मेंछलकता आँसू जिंदगी का मीठापानी ही पानी जिंदगानी।।

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बलिदान दिवस और आज का युवा

युवा आम सभी होतेकुछ कर गुजरने की अभिलाषावाले विरले ही होते।।राष्ट्र समाज की चेतना जागरणपर मर मिटते वाले दुनियां के इतिहासोंमें अमर होते।।सिंह भगत की गर्जना अनवरतगूंज रही है आज

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मयंक श्रीवास्तव से प्रो. अवनीश सिंह चौहान की बातचीत

हिन्दी की प्रतिष्ठित साप्ताहिक पत्रिका— ‘धर्मयुग’ और इसके यशस्वी सम्पादक आ. धर्मवीर भारती से साहित्य जगत भलीभाँति परिचित है। कहते हैं कि इस पत्रिका में रचनाओं के प्रकाशित होते ही

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अनुवाद : संकल्पना एवं स्वरूप

‘अनुवाद’ शब्द अंग्रेजी के ‘Transalation’ शब्द के लिए हिंदी पर्याय के रूप में चर्चित है| इसका अर्थ है एक भाषा से दूसरी भाषा में भाव-विचार को ले जाना होता है|

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ए मेरे प्यारे वतन तुझ पे जल कुर्बान

22 मार्च विश्व जल दिवस ,जल संकट और कुछ चिंतन– / ‘ए मेरे प्यारे वतन तुझ पे जल कुर्बान’    “जल संरक्षणम् अनिवार्यम्। विना जलं तु सर्वं हि नश्येत्। दाहं

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गंगा

  जय गंगे माता ,निश दिन जो तुझेधता सुख संपत्ति पाता ।। मईया जय गंगे माता ।।ब्रह्मा के कर कमण्डल से शिव शंकर जटाओं प्रवाह तेरा प्रवाह है आता।गो मुख

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विश्व पर्यावरण

—– – विश्व पर्यावरण — पर्यावरण प्रदूषण प्राणी प्राण कि आफत ब्रह्ममाण्ड के दुश्मन।नदियां ,झरने ,तालाब ,ताल तलइया सुख गए धरती बंजर रेगिस्तान।। श्रोत जल का चला गया पाताल जल

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प्रकृति प्रदुषण का यथार्थ

  पेड़, पौधे ,जंगल कट रहे नए, नए नगर, शहर बस रहे। प्रकिति कुपित मानव पुलकित ब्रह्मांड के मानक बदल रहे।।जहर हवा ,दूषित जल है जीवन कितना मुश्किल है नदियां,

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बिना तेरे

तेरा हो जाऊँ तेरा हो जाऊँ तेरी बाहों के सिरहाने पे, सर रख कर सो जाऊँ ।तेरे हसीं खाबों में हमेशा के लिए गुम हो जाऊँ ।। हम भी बड़े

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वक्त की कद्र

वक्त को जान इंसानमत जाया होने दे कर वक्त की कद्र बन कद्रदानवक्त के इम्तेहान सेना हो परेशान।।वक्त को जो जानता पहचानतावक्त के लम्हो को संजीदगीसे जीता गुजरता वक्त उसको

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वक्त की क्या बात

वक्त की क्या बातअच्छों अच्छो कीदिखा देता औकातपल भर में रजा रंकफकीर वक्त की तस्वीर।।वक्त किसी का गुलाम नहीवक्त संग या साथ नहीवक्त किसी का शत्रु मित्र नहीवक्त तो भाग्य

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वादे और वक्त

वादे तो वादे वादों का क्या वक्त से मोहलत मिलीनिभा दिया।।निभा नहीं पाये तो हालतवयां किया।हालत तो हलात का क्याकभी माकूल कभीदुश्मन ,नामाकूल सा होता।।हालत ,हालात बदल सकतेगर वादा जुबान

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इश्क का चांद

[2/2, 8:49 PM] Pitamber: खुद खड़े कतार अपने वक्त काकरते इंतज़ार फिर भी वक्त नही है।। भीड़ का मेला चहुँ और सिर्फमुङो का झमेला एक दूजे को धरती का धुल

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तराने ज़िंदगी के

जिंदगी के तरानो में तेरा अंदाज है शामिल जिंदगी के तरानो में तेरा अंदाज है शामिल!!धड़कतै दिल कि धड़कन में तेरा एहसास है शामिल!जिंदगी के तरानो तेरा एहसास हैं शमिल!!जिंदगी

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शिवोहं

शिवोहं शिवोहं शिवोहंचिता भस्म भूषित श्मसाना बसे हंमशिवोहं शिवोहं शिवोहं।।अशुभ देवता मृत्यु उत्सव हमाराशुभोंह शुभोंह शुभोंह शुभोंह शिवोहं शिवोहं शिवोहं ।।भूत पिचास स्वान सृगाल कपाली कपाल संग साथ हमारे स्वरों

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ख्वाबों का इश्क

लव है पैमाना ,नज़रे है मैख़ाना तेरी चाहत दुनियां कि तकदीर दीदार बीन पिए वहक जाना।। सावन की घटायें तेरी जुल्फे चाल है मस्ताना ।। गज गामिनी अंदाज़ अशिकाना हुस्न

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*ॐ नमः शिवाय-हर हर बम बम-जय शिव शंकर शम्भू*

*ओम नमः शिवाय,हर-हर बम-बम,जय शिव शंकर शम्भू*(जटा जूट धारी शिव शंकर जय हो शम्भू)*************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   हर हर महादेव जय काशी शम्भू,घट-2

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*”राम मानस” पर 108 बन्दों का सूक्ष्म मानस काव्य*

*”राम मानस” पर 108 बन्दों का एक सूक्ष्म मानस काव्य***************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम,हैं त्रेता युग के अवतारी।जन्मे

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*गजब बयार बह रही बा ग्राम प्रधानी का*

*गजब बयार बह रही बा ग्राम प्रधानी का**************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.   देखा कैसेन हवा चल रही बा,आवाबा इ चुनाव प्रधानी का। कुर्ता जैकेट

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मौक्तिका (जो सत्यता ना पहचानी)

मौक्तिका (जो सत्यता ना पहचानी)2*9 (मात्रिक बहर)(पदांत ‘ना पहचानी’, समांत ‘आ’ स्वर) दूजों के गुण भारत तुम गाते,अपनों की प्रतिभा ना पहचानी।तुम मुख अन्यों का रहे ताकते,पर स्वावलम्बिता ना पहचानी।।

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गीत (देश हमारा न्यारा प्यारा)

गीत (देश हमारा न्यारा प्यारा) देश हमारा न्यारा प्यारा,देश हमारा न्यारा प्यारा।सब देशों से है यह प्यारा,देश हमारा न्यारा प्यारा।। उत्तर में गिरिराज हिमालय,इसका मुकुट सँवारे।दक्षिण में पावन रत्नाकर,इसके चरण

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मूल निवासी – आस्ट्रेलिया के

कहा जाता है कि ऑस्ट्रेलिया में चार में से एक व्यक्ति प्रवासी है या विदेश से आकर बसा है । अगर इतिहास की घड़ी की सुइयों को १८वी शताब्दी तक

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पूछते हो मैं कौन हूं….

मैं अर्पण हूं,समर्पण हूं, श्रद्धा हूं,विश्वास हूं। जीवन का आधार, प्रीत का पारावार, प्रेम की पराकाष्ठा, वात्सल्य की बहार हूं। तुम पूछते हो मैं कौन हूं?   मैं ही मंदिर,

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वर्तमान में मर्यादा और राम

  कहते भगवान राम कोकरते शर्मशार भगवान को।।त्रेता में रावण ने सीता का हरण किया।बहन सूपनखा की नाक कान कटीनारी अपमान में नारी का हरण किया।।ना काटी नाक कान नारी

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नारी तू न्यारी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता हेतु

नारी है तू नारी है तू नारी हैदुनियाँ तुझ पे वारी है वारी है।।तुझसे दुनियाँ सारी है दुनियां सारी हैशक्ति की देवी ममता की माता है जननी नारी है।।प्रेम सरोवर

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बेटी और नारी अंतराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता हेतु

1–बेटी और नारी नन्ही परी की किलकारीगूंजे घर मन आँगना।।कहता कोई गृहलक्ष्मीआयी घर आँगन की गहना।।बेटी आज बराबर बेटों केफर्क कभी ना करना।।बेटी बेटा एक सामानबेटी बेटों की परिवरिशदो आँखों

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नारी के रुप अनेको अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस प्रतियोगिता हेतु

नारी के रुप अनेकों नारी से नश्वर संसारनारी शक्ति से अर्धनारीश्वर भगवान।। नारी की महिमा अपरंपारदेव ना पावे पार मानव कीक्या बिसात।। बेटी बढती पढ़ती नारी काबचपन बेटी ही बहन

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अनुवाद : स्वरूप आणि संकल्पना

जागतिक दृष्टीकोनातून विचार केला तर आपल्या असे लक्षात येते कि, वेगवेगळ्या देशात राहणा-या लोकांची ऐतिहासिक पार्श्वभूमी, भौगोलिक परिस्थिती भिन्न असते. सांस्कृतिक, सामाजिक जीवन भिन्न असते. माणसाला परस्परांचे जीवन, संस्कृती, परंपरा,

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अनुवाद के प्रकार

अनुवाद शब्द का संबंध ‘वद ‘धातु से है, जिसका अर्थ होता है ‘बोलना’ या ‘कहना’। वद् में  धत्र प्रत्यय लगने से वाद शब्द बनता है। अनुवाद का मूल अर्थ है

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महिला दिवस पर विशेष

*नारी दिवस विशेष*महाभारत होता है औरत सेसिख अभी इस बात को सुनकरगर अपमान किया औरत काहर चौराहा महाभारत होगा , बचा नही कोई दुनिया मेंऔरत के अपमानों सेऔरत की सम्मान

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महिला दिवस शिर्षक: लोग तो कहेंगे, लोगों का क्या? ‘

महिला दिवस शिर्षक: लोग तो कहेंगे, लोगों का क्या? कल पापा की सायकिल की सीट पर बैठ कर तो गई थी,आज़ दोस्त की मोटरसाइकिल पर बैठ कर आई तो क्या

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महिला दिवस शिर्षक: लोग तो कहेंगे, लोगों का क्या? ‘

महिला दिवस शिर्षक: लोग तो कहेंगे, लोगों का क्या? कल पापा की सायकिल की सीट पर बैठ कर तो गई थी,आज़ दोस्त की मोटरसाइकिल पर बैठ कर आई तो क्या

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सूफी काव्य में पर्यावरण चेतना (‘पद्मावत’ के विशेष संदर्भ में)

शोध सार हिन्दी साहित्य में काव्य की विभिन्न धाराएँ देखने को मिलती हैं। हिन्दी साहित्य की शुरुआत से ही इन धाराओं का विकास साहित्य में देखा जा सकता है। हिन्दी

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भारत के उद्योग पुरुष जमशेद जी टाटा

——-जमशेद जी टाटा——- कभी कभी कोई लम्हा युग प्रेरणा का इतिहासबनाता है ।।इन लम्हों के कदमों केसंग युग चलता जाता है।।दिन महीने साल दशकगुजरता जाता है प्रेरकपरिवर्तन का लम्हा खासयुग

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