(गीतिका छंद)
मास सावन की छटा सारी दिशा में छा गयी।
मेघ छाये हैं गगन में यह धरा हर्षित भयी।।
देख मेघों को सभी चातक विहग उल्लास में।
बूँद पाने स्वाति की पक्षी हृदय हैं आस में।।
पूर्ण दिन किल्लोल करता संग जोड़े के रहे।
भोर की करता प्रतीक्षा रात भर बिछुड़न सहे।।
‘पी कहाँ’ है ‘पी कहाँ’ की तान में ये बोलता।
जो विरह से हैं व्यथित उनका हृदय सुन डोलता।।
नीर बरखा बूँद का सीधा ग्रहण मुख में करे।
धुन बड़ी पक्की विहग की अन्यथा प्यासा मरे।।
एक टक नभ नीड़ से लख धैर्य धारण कर रखे।
खोल के मुख पूर्ण अपना बाट बरखा की लखे।।
धैर्य की प्रतिमूर्ति है यह सीख इससे लें सभी।
प्रीत जिससे है लगी छाँड़ै नहीं उसको कभी।।
चातकों सी धार धीरज दुख धरा के हम हरें।
लक्ष्य पाने की प्रतीक्षा पूर्ण निष्ठा से करें।।
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*गीतिका छंद* विधान:-
गीतिका:- ये चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है। प्रति पंक्ति 26 मात्राएँ होती हैं तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा 12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होता है.
इसका वर्ण विन्यास निम्न है।
2122 2122 2122 212
चूँकि गीतिका एक मात्रिक छंद है अतः गुरु को आवश्यकतानुसार 2 लघु किया जा सकता है परंतु 3 री, 10 वीं, 17 वीं और 24 वीं मात्रा सदैव लघु होगी। अंत सदैव गुरु वर्ण से होता है। इसे 2 लघु नहीं किया जा सकता।
चारों पद समतुकांत या 2-2 पद समतुकांत।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
Last Updated on June 11, 2021 by basudeo
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