

तिलका छंद “युद्ध”
तिलका छंद “युद्ध” गज अश्व सजे।रण-भेरि बजे।।रथ गर्ज हिले।सब वीर खिले।। ध्वज को फहरा।रथ रौंद धरा।।बढ़ते जब ही।सिमटे
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
तिलका छंद “युद्ध” गज अश्व सजे।रण-भेरि बजे।।रथ गर्ज हिले।सब वीर खिले।। ध्वज को फहरा।रथ रौंद धरा।।बढ़ते जब ही।सिमटे
मानव छंद “नारी की व्यथा” आडंबर में नित्य घिरा।नारी का सम्मान गिरा।।सत्ता के बुलडोजर से।उन्मादी के लश्कर से।।
तिलका छंद “युद्ध” गज अश्व सजे।रण-भेरि बजे।।रथ गर्ज हिले।सब वीर खिले।। ध्वज को फहरा।रथ रौंद धरा।।बढ़ते जब ही।सिमटे
(रोला छंद) रवि को छिपता देख, शाम ने ली अँगड़ाई।रक्ताम्बर को धार, गगन में सजधज आई।।नृत्य करे उन्मुक्त,
ताटन्क छंद “भ्रष्टाचारी सेठों ने” (मुक्तक शैली की रचना) अर्थव्यवस्था चौपट कर दी, भ्रष्टाचारी सेठों ने।छीन निवाला दीन
सुन ओ भारतवासी अबोध,कहाँ गया सच्चा प्रतिरोध? आये दिन करता हड़ताल,ट्रेनें फूँके हो विकराल,धरने दे कर रोके चाल,सड़कों