क्षणिकाएँ (विडम्बना)
(1)झबुआ की झोंपड़ी परबुलडोजर चल रहे हैंसेठ जी कीनई कोठी जोबन रही है।** (2)बयान, नारे, वादेदेने को तोसारे
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
(1)झबुआ की झोंपड़ी परबुलडोजर चल रहे हैंसेठ जी कीनई कोठी जोबन रही है।** (2)बयान, नारे, वादेदेने को तोसारे
मौक्तिका (रोती मानवता)2*14 (मात्रिक बहर)(पदांत ‘मानवता’, समांत ‘ओती’) खून बहानेवालों को पड़ जाता खून दिखाई,जो उनके हृदयों में
मौक्तिका (जो सत्यता ना पहचानी)2*9 (मात्रिक बहर)(पदांत ‘ना पहचानी’, समांत ‘आ’ स्वर) दूजों के गुण भारत तुम गाते,अपनों
गीत (देश हमारा न्यारा प्यारा) देश हमारा न्यारा प्यारा,देश हमारा न्यारा प्यारा।सब देशों से है यह प्यारा,देश हमारा
काव्य-मंच (मापनी:- 2122 2122 212) काव्य मंचों की अवस्था देख के,लग रहा कविता ही अब तो खो गयी;आज फूहड़ता का ऐसा जोर है,कल्पना कवियों की जैसे सो गयी। काव्य-रचना की जो प्रचलित मान्यता,तोड़ उनको जो रचें वे श्रेष्ठ हैं;नव-विचारों के वे संवाहक बनें,कवि गणों में आज वे ही ज्येष्ठ हैं। वासनाएँ मन की जो अतृप्त हैं,वे बहें तो काव्य में रस-धार है;हो अनावृत काव्य में सौंदर्य तो,आज की भाषा में वो शृंगार है। रूप की प्रतिमा अगर है मंच पर,गौण फिर तो काव्य का सौंदर्य है;फब्तियों की बाढ़ में खो कर रहे,काव्य का ही पाठ ये आश्चर्य है! चुटकलों में आज के श्रोता सभी,काव्य का पावन रसामृत ढूंढते;बिन समझ की वाहवाही करके वे,प्राण फूहड़ काव्य में भी फूंकते। मूक कवि, वाचाल सब लफ्फाज हैं,काव्य के सच्चे उपासक खो रहे;दुर्दशा मंचों की ऐसी देख कर,काव्य-प्रेमी आज सारे रो रहे। बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’तिनसुकिया रचनाकार का नाम: नमन पदनाम: बासुदेव संगठन: अग्रवाल ईमेल पता:
हाइकु (ये बालक कैसा) अस्थिपिंजरकफ़न में लिपटाएक ठूँठ सा। पूर्ण उपेक्ष्यमानवी जीवन काकटु घूँट सा। स्लेटी बदनउसपे भाग्य