ग़ज़ल (छेड़ाछाड़ी कर जब कोई)
बह्र:- 2222 2222 2222 222
छेड़ाछाड़ी कर जब कोई सोया शेर जगाए तो,
वह कैसे खामोश रहे जब दुश्मन आँख दिखाए तो।
चोट सदा उल्फ़त में खायी अब तो ये अंदेशा है,
उसने दिल में कभी न भरने वाले जख्म लगाए तो।
जनता ये आखिर कब तक चुप बैठेगी मज़बूरी में,
रोज हुक़ूमत झूठे वादों से इसको बहलाए तो।
अच्छे और बुरे दिन के बारे में सोचें, वक़्त कहाँ,
दिन भर की मिहनत भी जब दो रोटी तक न जुटाए तो।
उसके हुस्न की आग में जलते दिल को चैन की साँस मिले,
होश को खो के जोश में जब भी वह आगोश में आए तो।
हाय मुहब्बत की मजबूरी जोर नहीं इसके आगे,
रूठ रूठ कोई जब हमसे बातें सब मनवाए तो।
दुनिया के नक्शे पर लाये जिसको जिस्म तोड़ अपना,
टीस ‘नमन’ दिल में उठती जब खंजर वही चुभाए तो।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया
Last Updated on November 27, 2020 by basudeo
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2 thoughts on “ग़ज़ल (छेड़ाछाड़ी कर)”
सभी रचनाएं पढ़ी, बहुत ही समसामयिक हैं
स्तरीय हैऔर सभी समय के अनुकूल है।।
बृंदावन राय सरल सागर एमपी मोबाइल नंबर 786 92 18 525।।
आदरणीय आपका बहुत बहुत आभार