बस रंगों का त्योहार हैं होली
और ढंगों का त्योहार हैं होली
मिलजुल जाए आपस में सारे
ऐसा यहीं ईक़ त्योहार हैं होली
करती फिज़ा ज़वान हैं होली
बदलतीं हिज़ा इंसान की होली
धरती अम्बर एक सा करती
करती खिज़ा मानसून की होली
खाते सब क्यूँ हैं भाँग की गोली
करतें उलटी सीधी बात बोली
बेढंगे करतूत से अब अपने
बना दिये त्योहार को बम गोली
ना मत इसको बदनाम करो
बस रंग अबीर के नाम खेलो
ये पर्व हैं प्यार और उन्नति का
बोली जुआ में ना बरबाद करो।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश
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Last Updated on March 26, 2021 by bmltwr
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