जिज्ञासा धींगरा की कविता “एक पागल सी लड़की”
छोटा सा सपना, गहरी सी आंखें, मासूम सी बातें, पागल सी लड़की। कहीं उसके सपनों की लड़ी खो गई, वो पागल सी लड़की कहीं गुम हो गई।
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
छोटा सा सपना, गहरी सी आंखें, मासूम सी बातें, पागल सी लड़की। कहीं उसके सपनों की लड़ी खो गई, वो पागल सी लड़की कहीं गुम हो गई।
उत्कृष्ट रचनाकार भारतेंदु ने ‘स्वर्ग में विचार सभा का आयोजन‘ लिखा था और निकृष्ट कोटि का रचनाकार मैं, जनमेजय ‘ स्वर्ग के शौचालय में हिंदी ’ लिखता हूं। शौचालय के
अख़बार का इक पन्ना सारा सच बतलाता है। देश-विदेश की सारी खबरें चुटकी में पहुंचाता है। घर-आंगन में जब आता सब का मन हर्षाता है। सुबह की सब की चाय
हिंदी दिवस पर बहुत सारे नारे लगते हैं । और अगर कहा जाए कि हिंदी – दिवस है ही नारों का दिवस तो ये बात आपको वैसे ही हजम होगी
श्रीमती ज्योति मिश्रा की नई कविता ‘ भारत के कवियों की गाथा’ नई कविता, सम्पादन: रेखा रानी, हिसार
सुशील कुमार ‘नवीन’ न्यूं कै दीदे पाड़कै देखण लाग रहया सै, इसा मारूंगी दोनूं आंख बोतल के ढक्कन ज्यूं लिकड़कै पड़ ज्यांगी। आया म्हारा गाम्म का …ला। किसे मामलै ने
उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव की रहने वाली थी मन्नत। मन्नत अपनेमाता-पिता की इकलौती संतान थी। शादी के लगभग 8 वर्ष बाद ईश्वर से बहुत मन्नतें मांगने के बाद
विदेशो मे हिन्दी शिक्षण सन 1998 के पूर्व, मातृभाषियो की संख्य की दृष्टि से विश्व मे सर्वाधिक बोली जानेवाली भाषओ के जो आँकडे मिलते है, उनमे हिन्दी को तीसरा
मम्मी मुझे दिलवा दो कंप्यूटर,मिलता सारा ज्ञान इसके अंदर। ये स्पेलिंग भी सिखलाता है,डिक्शनरी भी दिखलाता है। पूछो इससे जब कोई सवाल,गूगल अंकल झट लाते जवाब। गणित, विज्ञान सब पढ़ाता,मिनटों
अभी कुछ ही महीनों पहले कोविड-19 महामारी के कारण उद्योग-धंधों के बंद होने की वजह से दिल्ली, मुम्बई, बेंगलुरू, सूरत, पुणे आदि महानगरों में काम करने वाले प्रवासी कामगारों की
सुशील कुमार ‘नवीन’ गांव के पूर्व मुखिया बसेशर लाल और उनकी पत्नी राधा के कदम जमीन पर नहीं पड़ रहे। शहर जा बसे दोनों बेटे अपने परिवार के साथ गांव
• आसिया फ़ारूकी हमारा देश भारत त्योहारों का देश है। तमाम सामाजिक एवं सांस्कृतिक विविधता होने के बावजूद सभी सुंदर सुवासित सुमनों की भांति एक सूत्र में गुंजे हुए हैं।
सुशील कुमार ‘नवीन’ प्रकृति का नियम है हर बड़ी मछली छोटी को खा जाती है। जंगल में वही शेर राजा कहलाएगा,जिसके आने भर की आहट से दूसरे शेर रास्ता बदल
पर्वतराज हिमालय रक्षक, ऋषियों की संतान हूँवेद पुराण ऋचाएँ मुझमें,मानव संस्कृति की पहचान हूँहांँ, मैं हिंदुस्तान हूँ ,,,,,,,, मस्तक केसर तिलक लगायेकश्मीर घाटी स्वर्ग बसायेदेवो की तपोभूमि मैंअगणित रत्नों की
रीजनल इस्पेक्टर को धर्म का उपदेश दिया,प्रकाशनार्थ:- 29 नवम्वर पुण्यतिथि पर विशेष प्रख्यात वेद विदुषी डा सावित्री देवी शर्मा वेदाचार्या के जीवन की प्रेरणास्पद अमूल्य घटना”जब रीजनल इंस्पेक्टर को धर्म
*वृद्ध जनों की सामाजिक एवं पारिवारिक समस्यायें* डा० असफिया मज़हर(शिक्षिका)वर्तमान युग मे समय एवं धन दो वस्तुएं हैं, जो समस्त मानवीय एवं सामाजिक संबंधों एवं व्यवहारों का निर्धारण करती है।
“हम हैं भारतवासी” विपत्ति आने पर जो डर जाते हैं ,हम नही वो कायर कहलाते हैंहर मुश्किल को यू हराते हैं ,सही मायने में तब हम भारतवासी कहलाते हैंजब जब
शब्दशब्द स्वर भरे कभी मुस्कुराहट में तो कभी आंसुओं में ढले कुछ मन से टकराये और भिगो गए पर कुछ कानों की ओट में ही छिपकर रह गए. कभी अधरों
सुशील कुमार ‘नवीन’ आप सोच रहे होंगे कि आज सूरज कौन सी दिशा में जा रहा है। गलत दिशा तो नहीं पकड़ ली है। घबराइए मत। सूरज भी अपनी सही
आजादी के दीवाने जो आजादी के दीवानों जो सर पर बांधे कफ़न निकले थे लहू में मिला के अपने जो आजादी वतन निकले थे सरफरोशी की थी जिनकी तमन्ना दिलों
साहब ने घर के भीतर से लाकर उसका वेतन और एक मिठाई का पैकेट पकड़ा दिया। वेतन में से तीन हजार रूपया काट लिए थे, जो हरी ने महीने के शुरू में ही एडवांस लिया था, पत्नी के दवाई के लिए।
“एकान्त का प्रलाप” विचार किया है मैंनेकई बार एकान्त मेंकि हमें आसपास जोलोग दिखते हैं शान्त सेहँसते हुए, मुस्कुराते हुए,कुछ कहते हुए, गुनगुनाते हुएसामने जो अपने से लगते हैंक्यों अब
कुछ समय पूर्व फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह की आत्महत्या के मामले की जाँच में नए तथ्यों के सामने आने से सारे देश को झकझोर दिया है।कल्पना लोक,सपनो के संसार मे
सामयिक व्यंग्य: अर्णब की गिरफ्तारी सुशील कुमार ‘नवीन’ देशहित सर्वोपरि। राष्ट्रहित सर्वोपरि। मुल्क का भला। आपका भला। उंगली उठाने वाले खबरदार..क्योंकि पूछता है भारत। नमस्कार दोस्तों ! मैं हूं आपका
*शिक्षक और समाज*माधव पटेलवर्तमान समय मे शिक्षक की भूमिका अत्याधिक महत्वपूर्ण है आज शिक्षक केवल पुस्तकीय ज्ञान का प्रदाता न होकर पथ प्रदर्शक भी है जीवन का मार्गदर्शन करने वाला
वर्तमान संदर्भ में मीडिया और राष्ट्रीय साँस्कृतिक जागरण डाॕ पद्मप्रिया असोसिएट प्रोफेसर हिन्दी विभाग, पाँडिच्चेरी विश्वविद्यालय आधुनिक युग में राष्ट्रों के चरित्र निर्माण में समाचार पत्र, रोडियो, टी.वी. तथा
04-11-2020आज सौभाग्य-पर्व के उपलक्ष्य पर सच्ची में .. आज आप बहुत याद आ रहे हैं ..यूँ तो हम प्रतिदिन बात करते हैंघण्टों मोबाइल से पर आज की बात कुछ अलग
सुशील कुमार ‘नवीन’ मॉर्निंग वॉक में मेरे साथ अजीब किस्से घटते ही रहते हैं। कोशिश करता हूं कि बचा रहूं पर हालात ही ऐसे बन जाते हैं कि बोले और
भाषा विज्ञान और अनुवाद विज्ञान की समस्या प्रस्तावना –अनुवाद एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक भाषा के विचार, भावों, बिंबो, और अर्थच्छवियों को दूसरी भाषा में व्यक्त किया जाता है।
आओ मेघा डॉ. पोपट भावराव बिरारी (सहायक प्राध्यापक) कर्मवीर शांतारामबापू कोंडाजी वावरे कला, विज्ञान व वाणिज्य महाविद्यालय सिडको, नासिक मो. नं. – 9850391121 ईमेल – [email protected] आओ मेघा आओ मेघा,
महाराष्ट्रीय लोककला : तमाशा और लावनी बिरारी पोपट भावराव (सहायक प्राध्यापक )
विश्व भाषा के रूप में हिंदी पोपट भावराव बिरारी सहायक प्राध्यापक कर्मवीर शांतारामबापू कोंडाजी वावरे कला, विज्ञान व वाणिज्य महाविदयालय सिडको, नाशिक ईमेल – [email protected] मो. 9850391121 प्रस्तावना विश्व
बाल साहित्य और मनोविज्ञान पोपट भावराव बिरारी सहायक प्राध्यापक कर्मवीर शांतारामबापू कोंडाजी वावरे कला, विज्ञान व वाणिज्य महाविद्यालय सिडको, नासिक ईमेल – [email protected] मो.-9850391121 प्रस्तावना बाल साहित्य का आधार
अनुवाद कला पोपट भावराव बिरारी सहायक प्राध्यापक कर्मवीर शांतारामबापू कोंडाजी वावरे कला, विज्ञान वाणिज्य महाविदयालय सिडको, नासिक ईमेल – [email protected] मो. 9850391121 प्रस्तावना अनुवाद का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बहुत
अनन्य है रात के आगोश में जब छिपा चला जाता है मन तो धीरे से हवा का झोंका बन यूँ जगा जाना अनन्य है। अश्कों के झरनों से जब लबालब हो
आज की सच्चाई जो ‘था’ कभी, वो अब ‘ है ‘ नहीं, वक़्त बदला मगर वक्त पे नहीं, चाल बदनाम है या नाम की चाल बद है, रूह मेरी है
युवाशक्ति ना सूरज की तपन से जल पाए, ना मारुत कहीं उड़ा ले जाए, ना सरिता कभी बहा सके, ना सागर इसको डूबा पाए, ना रोक सकेगा तूफां कोई, ना
कभी-कभी यूं ही हमें याद कर लिया करोहमें अच्छा लगता है,झूठा ही सही हमारी तसल्ली के लिए प्यार जता दिया करोहमें अच्छा लगता है कभी दोस्ती दोस्ती का हक भी
शीर्षक:- समझौता…. क्या कहूं क्या न कहूं, जिंदगी कुछ ऐसे ही चलती है। हर तरफ़ बस समझौते की, एक डोर ही मिलती है।। अपनो के साथ सपने जो
भारत की बेटी हम भारत की बेटी हैं समझो न किसी से कम पर्वत से ऊंची उड़ान हमारी… हम नहीं घबराती राहें चाहे कितनी भी
प्रेम माँ-बाप का प्रेम जग में सबसे अनमोल बच्चों की छोटी छोटी खुशियों में ढूँढें जो अपनी ख़ुशी उनकी खुशियों के लिए छोड़ दें जो अपनी सारी खुशियां।
‘मैं वही तुम्हारा मित्र हूं’
डॉ अरुण कुमार शास्त्री //एक अबोध बालक // अरुण अतृप्त टूट कर बिखरी थी तभी तो निखरी थी न टूटती न बिखरती और न ही निखरती नारी है वो बिना
सुशील कुमार ‘नवीन’ शहर का एक बड़ा मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल। रोजाना की तरह मरीजों की आवाजाही जारी थी। प्रसिद्ध ह्रदयरोग विशेषज्ञ डॉ.रामावतार रामभरोसे ओपीडी में रोजाना की तरह मरीजों को देखने
न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन के सहयोग से सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका एवं राजमाता जिजाऊ शिक्षा प्रसारक मंडल के कला वाणिज्य एवं विज्ञान महाविद्यालय, भोसरी, पुणे के संयुक्त तत्वावधान
तुम्हेंसाथ लेकर चलता हूँ (दिल्ली की वर्धमान कवयित्री मीनाक्षी डबास के काव्य के संदर्भ में) एक वार्ता में मीनाक्षी डबास ने कहा – “काव्य को साथ लेकर चलने से हम
दृष्टि विहीन हुआ, मनुज संताप की वेदना भारी है, देव,देव न रहे, निर्विवाद है विध्वंस की भावना जारी है, किस ओर दृष्टि डालूँ ,कृतघ्नता चहूँ ओर, विनिर्माण या निर्वाण परित्याग चारो ओर,
बच्चों से इक पुस्तक बोली जितना मुझे पढ़ जाओगे उतने ही गूढ़ रहस्य मेरे बच्चों तुम समझ पाओगे। मुझमें छिपे रहस्य हजारों सारे भेद समझ जाओगे दुनियाँ के तौर-तरीकों से
लेख में दिए गए सुझावों पर अमल से पहले अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
1 हमने हर मोड़ पर जिसके लिये, ख़ुद को जलाया है। उसी ने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।। किया है जिसके एहसासों ने, मेरी रात को रोशन। सुबह
जीवन भी कुछ मेहंदी सा हो कष्ट सहे टूटन का पेड़ से सिल पर पिसे दर्द को सह के समेटी जाए पात्र मे पानी संग जो भी छुए उस पर
साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय। मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।। कबीर जी के इस दोहे, से सभी परिचित है और मुझे नहीं लगता इस
हमारे एक जानकार हैं। नाम है वागेश्वर। नाम के अनुरूप ही उनका अनुपम व्यक्तित्व है। धीर-गम्भीर, हर बात को बोलने से पहले तोलना कोई उनसे सीखे। न कोई दिखावा न
स्त्रियों के बाल कविता है स्वयं जब सुलझाती उनको मानो चुने जा रहे शब्द एक-एक लट की तरह। लहराते हैं जब खुले बाल हवा के संग मानो बहे जाते शब्द
ये जो माटी ढेर है, ‘मैं’ माया का दास। माया गई तो मैं भी, खाक बचा अब पास।। मैं श्रेष्ठ हूं तो सिद्घ कर, मैं अच्छी नहीं बात। सबका मालिक
बेरोजगार कितना मुश्किल यह स्वीकार हूँ, मैं भी बेरोजगार। सत्य को झुठलाया भी नहीं जा सकता न ही इससे मुँह मोड़ सकती हूँ मैं परम् सत्य तो यही है लाखों
हमने हर मोड़ पर जिसके लिये, ख़ुद को जलाया है। उसी ने छोड़कर हमको, किसी का घर बसाया है।। किया है जिसके एहसासों ने, मेरी रात को रोशन। सुबह उसकी
बेटी की क्यूट स्माइल नै, देख लाडो की प्रोफाइल नै यो पापा होग्या फैन. यो पापा होग्या फैन। र बेटी धूम मचावैगी, र बेटी नाम कमावैगी.. र बेटी धूम मचावैगी,
” सुनो जी ! आटा खत्म हो गया है। चावल भी दो दिन और चलेंगे। राशन लाना ही पड़ेगा अब तो। कब तक ऐसा चलेगा। ताज़ी हरी सब्जियां तो लाते
उस बड़े से बँगले के बाहर वो रोड लैम्प। जिसके नीचे रोज़ ही झोपड़पट्टी का एक बच्चा आ बैठता है। मगर आज वहाँ एक और बच्चा है। पहले बच्चे ने
मैं वही तुम्हारा मित्र हूं… मैं धर्म निभाता मानवता का, मैं सत्य धर्मी का मित्र हूँ न्याय उचित में सदा उपस्थित मैं धर्म प्रेम का चरित्र हूँ मैं सदा मित्र
सामयिक लेख: शब्द अनमोल सुशील कुमार ‘नवीन’ दुनिया जानती है हम हरियाणावाले हर क्षण हर व्यक्ति वस्तु और स्थान में ‘संज्ञा’ कम ‘स्वाद’ ज्यादा ढूंढते हैं। ‘सर्वनाम’ शब्दों का प्रयोग
ये जीवन जितनी बार मिले माता तुझको अर्पण है इस जीवन का हर क्षण ,हर पल माता तुझको अर्पण है। यही जन्म नहीं, सौ जन्म भी माता तुझ वारूँ मैं
सामयिक व्यंग्य: पावर ऑफ टाइम सुशील कुमार ‘नवीन’ राजा नम्बर वन, मंत्री-सभासद नम्बर वन। प्रजा नम्बर वन,प्रजातन्त्र नम्बर वन। प्रचार नम्बर वन, प्रचारक नम्बर वन। प्रोजेक्ट नम्बर वन, प्रोजेक्टर नम्बर
सामयिक लेख: कृषि विधेयक सुशील कुमार ‘नवीन’ पिछले एक पखवाड़े से देशभर में किसान और सरकार आमने-सामने हैं। मामला नये कृषि विधेयकों का है। सरकार और सरकारी तंत्र लगातार
कोरोना ! तुमने हमें बहुत कुछ स्मरण करवा दिया पश्चिमीकरण की चकाचौंध में फंसकर अपनी पुरातन संस्कृति भूल गए थे हम तुमने ही हमारा परिचय पुन: संस्कृति से करवाया। देशी
लहरों को देखा आज यूं ही लहराते हुए हवाओं को भी देखा गुलछर्रे उड़ाते हुए बादल घूम रहा अकेले इधर उधर आज मिट्टी में मिली खुद जीवन सभालते हुए। खूब
अभिमान जीवन में अभिमान तुम, कभी न करना भाय। अभिमानी इस जगत में, चैन कभी ना पाय। मानव का अभिमान ही, बहुत बड़ा है दोष। अभिमानी मानव सदा, दे दूजे
व्यक्ति और समाज का संबंध है पेड़ और भूमि जैसा व्यक्तित्व रूपी पेड़ समाज रूपी भूमि पर खूब फूलता-फलता हो जैसा। व्यक्ति और समाज हैं दोनों पारस्परिक एक दूसरे के
डॉ. मजीद मियां सहायक प्रोफेसर सार भाषा साहित्य एवं जीवन के बीच एक सेतु का काम करता है। साहित्यकार उस भाषा रूपी सेतु का निर्माता है, जो व्यक्ति और समाज
– सुशील कुमार ‘नवीन’ फिलहाल एक प्रसिद्ध आभूषण निर्माता कंपनी का विज्ञापन इन दिनों खूब चर्चा में है। हो भी न क्यों हो। सौ करोड़ से भी ज्यादा आबादी वाले
बड़े नाम के पीछे की तू खुद सच्चाई जान, मना! परदे के पीछे है क्या तू खुद ही पहचान, मना! उठती लहरों की भी उल्टी हवाओं से सीना जोरी है,
सामयिक व्यंग्य : नफा-नुकसान – सुशील कुमार ‘नवीन’ सुबह-सुबह घर के आगे बैठ अखबार की सुर्खियां पढ़ रहा था। इसी दौरान हमारे एक पड़ोसी धनीराम जी का आना हो गया।
डॉ.उर्वशी भट्ट की यह कविता कोरोना के इस संकट के समय में ‘ मनुष्यता ‘ के विमर्श को अहम मानती हुई, मनुष्यता के वरण को ही मनुष्य का एकमात्र सरोकार
जागा लाखों करवटें, भीगा अश्क हज़ार तब जा कर मैंने किए, काग़ज काले चार। छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक सागर जैसा स्वाद है, तू चखकर तो देख।
1 एक एहसान तुम अगर करदो सारे इल्ज़ाम मेरे सर कर दो। जानवर आ गए हैं बस्ती में मेरा जंगल में, कोई घर कर दो। बीज सी हूँ, जड़ें जमा
सुशील कुमार ‘नवीन’ हमारे एक जानकार हैं। नाम है रामेश्वर। नाम के अनुरूप ही दुनिया की हर समस्या उनकी है। किसी को उनकी चिंता हो न हो,पर उन्हें सब की
श्वेता पांडे (रिसर्च स्कॉलर) जयोति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर (भारत) ईमेल: [email protected], (M) 9826012739 सार शिक्षा का कार्य आदर्श नागरिकों का निर्माण करना है। आदर्श का अर्थ है एक व्यक्ति
मोमबत्ती हाथ में लेकर चले सब एक दिन, इक दर्द के साथ हम सब चले थे एक दिन। दुखी अनगिनत चेहरे, दर्द पारावार सा इक नए प्रारंभ का सब स्वप्न
लौट जाती है, होठों तक आकर वो हर मुस्कुराहट जो तुम्हारे नाम होती है जो कभी तुम्हारी याद आते ही कई इंच चौडी हो जया करती थी उन्मुक्त हँसी, बेपरवाह
ये जीवन जितनी बार मिले माता तुझको अर्पण है इस जीवन का हर क्षण ,हर पल माता तुझको अर्पण है। यही जन्म नहीं, सौ जन्म भी माता तुझ वारूँ मैं
प्रथम में हल्का हरे रंग का लाल लाल जैसे हरियाली में ढल गया हो गुलाल l अति लघु लिए हैं शिशु का रूप निखरता है रंग जब
जिस समय भारत में टीवी अया था तब इसे केवल मनोरंजन का साधन माना गया था। भारत में रामायण और महाभारत को देखने के लिए भारत के अधिकतर
यक्ष प्रश्न किसानों की मुस्कराहट से लहराते हैं खेत खेतों के लहराने से मुस्कराता है पूरा देश | मुस्कान किसानों की क्यों जाती दिख रही हैं खेतों की हरियाली क्यों
करोनाकाल ने हम सभी को सोचने के अनेक अवसर दिए हैं । मैंने भी कुछ समय से एक विषय पर काफ़ी विचार किया । वह था हिंदी की वास्तविक व
कितना मुश्किल करना है स्वीकार कि, हूँ मैं भी बेरोजगार। सत्य झुठलाया भी नहीं जा सकता न ही इससे मुँह मोड़ सकती मैं परम् सत्य तो यही है लाखों लोगों
सामयिक आलेख: द गोल्डन टाइम सुशील कुमार ‘नवीन’ हरियाणा सरकार पिंजौर के पास फिल्मसिटी बनाने के लिए अब पूरे मूड में है। घोषणा तो दो साल पूर्व की है पर
*नया वादा* आख़िर कैसे नए वादों पर ए’तिबार किया जाएपुरानी साज़िशों को कैसे दरकिनार किया जाए। क़ातिल क़त्ल की ताक़ में ज़मानों से सोया नहींआख़िर सोए हुओं को कैसे होश्यार
रात से सोच रहा था कि आज क्या लिखूं। कंगना-रिया प्रकरण ‘ पानी के बुलबुले’ ज्यों अब शून्यता की ओर हैं। चीन विवाद ‘ जो
*रेलवे का निजीकरण एक विमर्श*कोई भी राष्ट्र मात्र भौगलिक इकाई नहीं है। राष्ट्र एक जीवंत इकाई है, जहां करोड़ों लोग वास करते हैं । जी हां आज हम ट्रेन की
कुण्डलिया हिन्दी को अपनाइए, जनता की यह मांग ।यही राष्ट्र भाषा बने,नही अड़ायें टांग ।नही अड़ायें टांग, देश हित में यह भाषा, ।बचे मान सम्मान, राष्ट्र हित में है
भारतीय संस्कृति में संस्कारों का महत्वपूर्ण स्थान है ।समाज में पुरुष प्रधान व्यवस्था होने के उपरांत भी, महिलाओं को बराबरी का दर्जा एवं बराबर का सम्मान देने की प्रथा
ऑस्ट्रेलिया के लोगों का हास्य और विनोद इतना अज़ीब और अनोखा है जिसका जवाब नहीं । बील लीक को जब पता चला कि उसका दोस्त किसी दुर्घटना में जख़्मी हो
हाथों में माई ले आँचल का कोर तुलसी चौरे की वो दीपक बाती तेल सराबोर नारंगी साँझ की सिन्दूरी सी नभ में घर लौटती चिड़ियों के झुण्डों का शोर पैरों