बसंत
बसंत धीरे-धीरे धूप ने, किया शीत का अन्त । पुरवाई ने सृष्टि में, छेड़ा राग बसंत । । सुशील सरना / 4-3-21 Last Updated on March 4, 2021 by sarnasushil
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
बसंत धीरे-धीरे धूप ने, किया शीत का अन्त । पुरवाई ने सृष्टि में, छेड़ा राग बसंत । । सुशील सरना / 4-3-21 Last Updated on March 4, 2021 by sarnasushil
*प्रेम मिलन की ऋतु आयी है वासंती************************************ रचयिता : *डॉ. विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. चलो मिलन का गीत,वसंती कुछ गायें।राग वसंती धुन आओ,मिल के सजायें। ये
*संघर्षो में लड़ने से ही मिलती है सदा सफलता***************************************** रचयिता :*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. संघर्षों में जो लड़ता है, आगे वही निकलता है।जीवन में उसे ही
प्यार बड़ा-छोटा काला-गोरामोटा-पतलाअमीर-गरीबहर किसी को हो सकता है-किसी से प्यार ,यह ना माने सरहदें, ना देखे दरो-दीवार,हंसी-बदसूरत,बुढ़ा-जवान,तंदरूस्त-बीमार,यहाँ सबके लिए खुले हैं – प्यार के किवार । मैं नहीं तुम नहीं
पंडित धर्मराज के तीन बेटे हिमाशु ,देवांशु ,प्रियांशु थे तीनो भाईयों में आपसी प्यार और तालमेल था पूरे गाँव वाले पंडित जी के बेटो के गुणों संस्कारो का बखान
TitleKhwab bhi kitana ajib hota hai,chalate huye insan ko sapano ki duniya me pahuncha deta hai.Mai aisa is liye kah raha hun ki jindagi ki karbi lakin sachchi bat bhi
पंडित महिमा दत्त और लाला गजपति अपने खुराफाती दिमाग से गांव में अपना सिक्का चलाने की कोशिशों में लगे रहते गांव में नई पीढ़ी का पदार्पण हो चुका था जिसके
मोबाइल देवता आज मोबाइल संचार क्रांति का केंद्र हैं, जो दृश्य, श्रव्य चलचित्र है। जिसने पूरी दुनिया को संचार के माध्यम से मिला दिया। उदाहरणार्थ Covid 19 में पूरी
शीर्षक :- “मुझे मेरा वो गाँव याद आता है” बरगद की छाँव में बैठ के बूट्टे खाना, संग दोस्तों के वहाँ घंटों
शीर्षक :- “मुझे मेरा वो गाँव याद आता है” बरगद की छाँव में बैठ के बूट्टे खाना, संग दोस्तों के वहाँ घंटों
बन जाती हैं दूरियाँ, रिश्तों में नासूर । मधुर वचन से कीजिए, मतभेदों को दूर । । सुशील सरना / 27-2-21 Last Updated on February 27, 2021 by
#एक_सेवा_ऐसा_भी *नि:स्वार्थ भाव से भूखे को भोजन कराते है* भारत का एक राज्य है बिहार , जिसकी राजधानी है पटना। पटना के पास ही एक जिला है
दोहा त्रयी :….आहट हर आहट में आस है, हर आहट विश्वास।हर आहट की ओट में, जीवित अतृप्त प्यास।। आहट में है ज़िंदगी, आहट में अवसान।आहट के परिधान में,
जीने से पहले …… मिट गईमेरी मोहब्बतख़्वाहिशों के पैरहन में हीजीने से पहले जाने क्या सूझीइस दिल कोसंग से मोहब्बत करने कावो अज़ीम गुनाह कर बैठाअपने ख़्वाबों कोअपने
चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध । धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । । लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान । धू-धू कर सब जल
*शिक्षा और समाज में समावेश के लिए बहुभाषावाद को बढ़ावा दे* हर साल 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाया जाता है। मानवीय अस्तित्व भाषा के साथ इस प्रकार संबंधित
जुबान ,जिह्वा और आवाज़ जिसके संयम संतुलन खोने से मानव स्वयं खतरे को आमंत्रित करता है और ईश्वरीय चेतना की सत्ता को नकारने लगता है।अतः जिह्वा जुबान का सदैवसंयमित
जिंदगी को आज अरमान मील गयी ख्वाबों के मुहब्बत की उड़ानमिल गयी दुनियां के झमेले में जान मील गयी।।दिल धड़कता है धड़कन बोलती है जिंदगी की हमसफर अंदाज़ मील गयी।।जिंदगी
सूर्य मुस्कुराता छितिज परभाव चेतना मकसद मंजिलका पैगाम लिये।।नया सबेरा उम्मीदों विश्वास की नई किरणउदय उदित उड़ान स्वर्णिम भविष्य काउत्साह खुशियों का पैगाम लिये।।उदय प्रशांत की गहराई अंतर्मन से दिव्य
क्यों आ के किनारे पर डूबी ये कश्ती हमको याद नहीं बस दर्दे मोहब्बत है दिल में और इसके सिवा कुछ याद नहीं क्या जाने दिल बेचारा ये हार जीत
क्यों आ के किनारे पर डूबी ये कश्ती हमको याद नहीं बस दर्दे मोहब्बत है दिल में और इसके सिवा कुछ याद नहीं क्या जाने दिल बेचारा ये हार जीत
सूफी काव्य में पर्यावरण चेतना (‘पद्मावत’ के विशेष संदर्भ में)
निराशा का दौर छोड़आशा आस्था संचार मेंमिल जाएगा उद्देश्य मार्ग जीत ही जाएंगे ।। कदम कदम जिंदगी का जंग मुश्किलें बहुत जिंदगी एकचुनौती ,जिंदगी की चुनौतियो से जीत जाएंगे उत्सव
धर्म आस्था की धतातलअवनि आकाश धर्म मर्यादा संस्कृति संस्कार।।धर्म शौम्य विनम्र युग समाजव्यवहार।।धर्म जीवन मूल्यों आचरण कासत्य सत्यार्थ।।धर्म छमाँ करुणा सेवा परोपकारकल्याण जीव जीवन का सिद्धान्त।।धर्म न्याय नैतिकता ध्येय ध्यान
1-जिंदगी एक संग्राम है आशा का परचम लहरा जिंदगी के कदमों केनिशाँ है।।जीवन एक संग्राम है दुख ,दर्द ,धुप और छाँव हैआशा,निराशा रेगिस्तान और तूफ़ान है।।आंसू ,गम ,मुस्कान हैशोला शबनम
1-गाँव की माटी प्रकृति—सुबह कोयल की मधुर तानमुर्गे की बान सुर्ख सूरज कीलाली हल बैल किसान गाँवकी माटी की शोधी खुशबू भारतकी जान प्राण।।बहती नदियां ,झरने झील,तालाब पगडंडी पीपल की
गांव शहर नगर की गलियों कीकली सुबह सुर्ख सूरज की लाली केसाथ खिली ।।चमन में बहार ही बहार मकरंदकरते गुंजन गान नहीं मालुम चाहत जिंदगी जाने कब छोड़ देगी साथ।।रह
फूल की किस्मत को क्या कहूँबया क्या करूँ हाल । बड़े गुरुर में सूरज की पहलीकिरण के संग खिली इतरातीबलखाती मचलती गुलशनबगवां की शान।। फूल के सुरूर का गुरुर भी
डरने वालों को नहीं, मिलता जग में तीर । अटल इरादों से सदा, बनती है तकदीर । । सुशील सरना Last Updated on February 20, 2021 by sarnasushil रचनाकार का
छोने को सीख आ मेरे प्यारे छोने ! आज जी भर के तुझे चूम लूँ ,संग तेरे खुशियों के दो पल मैं भी झूम लूँ ;फिर ना जाने किस
पुणे की पुण्य भूमि माँ भारती का गौरवआँचल ज्ञान कर्म धर्मकी भूमि अभिमान।।शिवनेरी दुर्ग की माटी काकण कण दर दिवाले गवाह जीजाबाई शाह जी केशिवा जन्म जीवन का काल।।सोलह सौ
दिल से बड़ा कोई ताज नहीं….. क्यों आ के किनारे पर डूबी कश्ती हमको याद नहीं बस दर्द-ऐ-मुहब्बत है दिल में और इसके सिवा कुछ याद नहीं क्या जाने
*हिंदी वर्ण माला के स्वर व्यंजन का प्रयोग और मेरा गीत ***************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. *अ* अभी समय है, बिना गवांये,*आ* आओ जीवन सफल
*जर ज़मींन जोरू होती है हर झगड़े की जड़***************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. जर ज़मीन जोरू से हमेशा,हो जाती है तकरार। यही तो तीनों
क्षणिकाएं :…..यथार्थ 1. मैंकभी मरता नहींजो मरता हैवोमैं नहीं… … … … … … … 2. ज़िस्म बिनाछाया नहींऔर छाया का कोईजिस्म नहीं… … … … … … … …
हाई वे कड़कती धूप की तपती ज़मीन पर नंगे पाँव,पिचके पेट, अधेड़ उम्र का नाटा सा आदमी ‘हाई वे’ में “खाना तैयार है”बैनर के साथ खड़ा था। आने-जानेवालों को
सालों से चलता सिलसिला मेरेभी भावो का आकर्षण अधेड़ उम्र महिला की ओर बढ़ चला जो बेचती थी गुटका।।मैने भी एक दिन उस अधेड़ उम्रऔरत जो मेरे प्रतिदिन की दिनचर्या
आते जाते गुटखा शौख केनाते अधेड़ उम्र की औरतकी दुकान से भाव भावनाका हो गया लगाव।।अधेड़ उम्र उस औरत ने भीमुझे अपनी दुकान का नियमितग्राहक लिया मान।।जब कभी हो जाता
प्रातः नौ बजे दफ़्तर जाने कोचाहे जो भी हो मौसम का मिजाज।। घर से निकलता दिन शुभ मंगल होकोई ना हो विवाद अशुभ ईश्वर सेआराधन करता।। कार्यालय के मुख्य द्वार
खामोश मौसम में हंसीमुस्कान आया है ।फ़िज़ाओं की खुशबू काखास अंदाज आया हैं।।बहारें भी है खुश क़िस्मत लम्होकी ख्वाहिश में बहारो की किस्मतका कोई किरदार आया है।।खामोश मौसम में
खामोश मौसम में हंसीमुस्कान आया है ।फ़िज़ाओं की खुशबू काखास अंदाज आया हैं।।बहारें भी है खुश क़िस्मत लम्होकी ख्वाहिश में बहारो की किस्मतका कोई किरदार आया है।।खामोश मौसम में
अपनी हस्ती की मस्ती का मतवालाधुन ध्येय का धैर्य धीर गाताचला गया जेठ की भरी दोपहरी मेंएक दिया जलाता चला गया।।जेठ की भरी दोपहरी में एकदिया जलाने की कोशिश
जेठ की भरी दोपहरी मेंएक दिया जलाने की कोशिश में लम्हा लम्हा जिये जा रहा हूँ।।भूल जाऊँगा पीठ पर लगे धोखेफरेब मक्कारी के खंजरों के जख्म दर्द का एहसास।।तेज
*है जन्म लिया मानव तन में तो नारी का सम्मान करो* मानवता हमें सिखाती है ये सृष्टि जननी कहलाती हैमाँ का फर्ज निभाती है जब जन्म हमें दे जाती हैचाहे
मुल्क़ के हालात आजकल मेरे मुल्क़ के हालात बहुत ख़राब हो गए हैं ;आवाम पर सफ़ेदपोश लुटेरों के ज़ुल्म बेहिसाब हो गए हैं । कोई खोलकर पढ़ना ही नहीं चाहता
हिन्दी साहित्य में नारी जागृति Last Updated on February 17, 2021 by singhabhaynath8117 रचनाकार का नाम: डॉ अभय नाथ सिंह पदनाम: असिस्टेंट प्रोफेसर- हिन्दी संगठन: किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय रकसा रतसर-बलिया
शीर्षक : @नारी सशक्तिकरण-मेरी बेटी मेरा मान@************************************(नारी सशक्तिकरण पर एक रचना) नारी सशक्तिकरण एक फरमान है।माँ की शक्तियाँ जनता ये जहान है। इनमें अद्भुत क्षमता ऊँची उड़ान है।पृथ्वी ही
*कफ़न में जेब नहीं-सब यहीं धरा रह जायेगा***************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. जी रहा है आदमी कपड़े बदल बदल कर।ले जायेंगे 1दिन लोग कन्धा
*कफ़न में जेब नहीं-सब यहीं धरा रह जायेगा***************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. जी रहा है आदमी कपड़े बदल बदल कर।ले जायेंगे 1दिन लोग कन्धा
बचपन की खुशियां माँ बाप के मन आँगनघर आँगन की किलकारीबेटी लक्ष्मी अरमानो कीआशा प्यारी।।पलको पे बिठा रखा माँ बाप भाई बहनों नेकोई कमी नही होने दीजरा सी बात भी
जेठ की भरी दोपहरी मेंएक दिया दिया जलाने कीकोशिश में लम्हा लम्हा जियेजिये जा रहा हूँ।।शूलों से भरा पथ शोलों सेभरा पथ पीठ लगे धोखे फरेबके खंजरों के जख्म
दुनिया के इस भिड में मुश्किल है स्वयंका चेहरा खोजना. हर एक चेहरा आइने मे आगे पिछे प्रतित होता. कभी सुअर का तो कभी लोमडी का. हर एक परेशांन है
अंबा सन्मति दे,वरदे काश्मीर पुरवासिनी शारदे, अंबा सन्मति दे, वरदे। जीवन वीणा झंकृत कर दे। लय,तालयुत श्रुति भर दे, ।।1।। वीणा वादिनी हे जगदंबा, नाद सुवाहिनी माँ
चित्रकूट सम कूट नहिं इस दुनिया में कोय बसे राम जहाँ द्वादश साधुवेश में सोय सीता नारि तपस्विनी लखन भाइ केसंग दोऊ हाथ धनुहा लिए और साधे निसंग पयस्वनी निर्मल
आज फिर उलफत अजीब सा है।दिल में गफलत अजीब सा है।खबर खैर का खुद ही पता सा है।मेरे मन ने क्या खोया-क्या पाया।देखो सही आँखों पे धूल सी जमी क्यों
Last Updated on February 15, 2021 by madanmohanthakur45 रचनाकार का नाम: मदन मोहन पदनाम: मैत्रेय संगठन: सेल्फवर्क ईमेल पता: [email protected] पूरा डाक पता: Vill & po-Ratanpur PS-Kamtaul Dist-Darbhanga Bihar India
*लोक तांत्रिक शासन प्रणाली में पंचायती राज व्यवस्था की भूमिका*(“गाँव की सरकार” पंचायतों में सशक्त स्वशासन प्रणाली की जरुरत)**************************************** आलेख : पंचायती राज व्यवस्था की दृष्टिकोण से देखा जाये तो
रचना शीर्षक :*ऋतुराज वसंत का शुभागमन* कुछ धूप खिली कुछ फूल खिले।मौसम भी देखो ले रहा अंगड़ाई। अब शरद ऋतु यह है जाने वाली।नहीं पड़ेगी ओढ़नी
*जीवन महके फूलों जैसा-हर दिन खुशहाली हो*(सृजन ऑस्ट्रेलिया- साहित्यिक यात्रा गौरवशाली हो)**************************************** रचियता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. जीवन महके फूलों जैसा,हर दिन खुशहाली हो।सुख के
*वैलेंटाइन डे स्पेशल गीत-हम मीतों के हैं मीत***************************************** रचयिता : *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज, प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र. सभी मनाते हैं ये “वैलेंटाइन डे”।आठ दिवसों का ये गजब
पुलवामा घातक हमले के हे शूरवीर।तुमको शत शत नमन हमारा हे वीर।। हे देश के रक्षक,तुम्हें शत- 2 प्रणाम।माँ भारती के लाल,तुझे मेरा प्रणाम।। प्राणों की शहादत,देकर करते रक्षा।तेरा बलिदान
पुलवामा शहीदों को नमन हमारे देश के वीर सिपाही जो सीमा पर रक्षा करते हुए आज के ही दिन 14 फरवरी 2019 को पुलवामा हमले में शहीद हो गए उन
देखा है ? मैंने देखा है लोगों को करीब से बदलते देखा है…! जो लोग बातों – बातों में ही अपना हाल – ए दिल बयां करते थे..!
एक गुलाब उन शहीदों के नाम…… “वेलेंनटाइन याद रह गयाउनको याद करेगा कौन…….! ख़ुद की हस्ती मिटाई जिसनेसरहद पे जान गवाईं जिसने,हिना भी ना सुखी हाथों कीमाथे की बिंदियां
काश तुम मेरी ज़िंदगी में जो होते ज़िंदगी से इतनी शिकायत न होती।। वफ़ा ज़िंदगी में बेवफाई न होती मोहब्बत के हम भी मसीहा ही होते जिंदगी में इतनी रुसवाई
रामू उठ भोर हो गया कब तक सोते रहोगे जो सोता है वो खोता है जो जागता है पाता है रामू के कानो में ज्यो ही पिता केवल के शब्द
रामू अपने कार्यालय में एक दिन सुबह ठीक दस बजे पंहुचा आये पत्रों को और समस्याओं को पढ़ता शुरू किया और उसके उचित निदान का निर्देश अपने पी आर ओ
जन्म दिन मुबारख हो बेटा रिया आज तुम्हारा दसवीं का परिणाम भी आने वाला है आज का दिन तुम्हारे जीवन के लिये बहुत महत्व्पूर्ण है आज का दिन तुम्हारी ढेर
बहुत मुश्किल होगा बहुत मुश्किल होगा बिन तेरे हम से जी पाना ।तुझे भुला कर किसी और से दिल लगाना ।। बेचैन दिल का हाल किसे बताए सीने
“मालिक ! अब मुझे इस कर्ज़ से उऋण कर दीजिए। जितने रूपये मैंने आपसे लिए थे, उसके तीन गुना तो अबतक दे चुका हूँ। ” – हरिया, बाबू श्यामलाल के
समुद्र के किनारे बसे एक शहर में मेला लगा हुआ था । बहुत दूर दूर से व्यापारी मेले व्यापार करने आये हुए थे । अनेकों तरह के सामानों से सजे
शीर्षक : – बेटी तुम संघार करो यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते की प्रथा बदल रही भारत में, बेबस बेचारी बेटी की
भारतीय दर्शन संस्कृति परम्पराएँ सहिष्णुता और शान्तिभारतीय समाज एवं संस्कृति की एक अनूठी विशेषता है- विविधता में एकता। इस विशेशता ने ही इसे अनन्त काल से अब तक जीवित रखा
मेरे घर से कुछ ही दूरी पर रेलवे स्टेशन है । और रेलवे स्टेशन की दूसरी ओर एक छोटा सा बाजार । हमारे गांव के लोग अकसर बज़ार जाने के
वापस आओ ओ मेरी माँ सात समंदर पारकर, हुई हो तुम आँखों से ओझल, मिले बिन तुझे ओ मेरी माँ मेरा मन हुआ है मरुस्थल। विदेश में रहकर
<span;>कल जहां बसती थी खुशियां आज है मातम वहां…। हिंदी फिल्म ‘वक्त’ का यह मशहूर गीत रामवृक्ष बेनीपुरी के गांव पर सटीक बैठता है। जिस बेनीपुर में कभी साहित्यिक गोष्ठियों
मन करता है मन करता है चिड़िया बनकर तेरे पास चला आऊँ मन करता है तेरे कोमल हाथों में चुनकर दाने खाऊँ मन करता है तूँ कलम तूँ ही स्याही,
छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार कीजिये।। छोड़िए मायूसी अब कदम बढाईये मुश्किलें बहुत लड़ते बढ़ते जाईये ।। छँट जाएगा अँधेरा विश्वाश कीजिये सूरज निकलने का इंतज़ार
लेखक, लेखनी मत छोड़,सत्य बता झूठ को तोड़,सच का मुँह ना फोड़,मोह अगर कोई दे दे तो भी,सच का साथ कभी ना छोड़,लेखक, लेखनी मत छोड़।सत्य का संगत संकट से
यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है भूत प्रेत पुनर्जन्म आदि तकिया नुकुसी बातो में आज का विज्ञान वैज्ञनिक युग का युवा वर्ग स्वीकार नहीं करता है।आज के इसी
– जन्म दिन मुबारख हो बेटा रिया आज तुम्हारा दसवीं का परिणाम भी आने वाला है आज का दिन तुम्हारे जीवन के लिये बहुत महत्व्पूर्ण है आज का दिन तुम्हारी
जंगल में चुनाव डैशबोर्ड मेरा खाता रचनाएं/आलेख भेजिए लॉग आउट सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA 6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया,
ठाकुर सतपाल सिंह का स्मारक बन चुका था अब लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त के पास गांव वालों में किसी नए विचार की फसाद का कोई अवसर नही
*चुनाव आया* लगता चुनाव आया है ..जे हर बार मुँह लटकाये फिरता ,उसके पटिया पे चमकाव आया है,आगे-पीछे घूमी जो करे बड़बड़ ,नरेगा राशन कार्डकी चाव आया है ।लगता…..वाणी मे
गांव में अमूमन शान्ति का माहौल था क्योकि गांव के खुराफातियों ठाकुर सतपाल की मृत्यु हो चुकी थी और लाला गजपति और पंडित महिमा दत्त का मन पसंद शोमारू गांव
लाला गजपति विल्लोर गाँव के संपन्न कायस्थ परिवार के मुखिया थे उनके परम् मित्र थे ठाकुर सतपाल सिंह और पंडित महिमा दत्त तीनो मित्रो के ही विचार गाँव में
*हे अन्नदाता ! ,हे अन्नदाता !* हे अन्नदाता ! हे अन्नदाता !उठों जागों तुम्हें खेत बुलाताहल तुझसे पहलें जाग गएबैल खेतों को भाग गएजिससें तेरा जन्मों से नाताहे अन्नदाता !
http://कृष्ण -अर्जुन संवाद प्रेरित मेरे द्वारा रचित #कविता ———-////————— #जीवन संग्राम के महासमर में, विजय का वरण तभी होगा, गिद्ध और सियारो से हटकर यदि सिंह दल गठन होगा ।
http://मर्यादा #पुरुषोत्तम श्री राम को समर्पित मेरी #कविता ——–////—————– #श्री राम तुम महान हो, समस्त जगत का कल्याण हो इतिहास नहीं वर्तमान हो, प्राणों का आह्वान हो राष्ट्र की गौरव
कहीँ जब सुर्ख सूरज निकलता हैजिंदगी दौड़ती है चाहतों के रफ्तार में।कहीँ जब शाम ढलती है जिंदगीठहर सी जाती है चाहतों के चाँदके इंतज़ार में।।इंसा हर लम्हे को जीता चाहतोंख्वाईसों
चाँद से सवाल चंदा मामा हमारे घर भी आओ ना,मेरे संग बैठकर हलवा-पूड़ी खाओ ना । मुझे करनी हैं, तुमसे ढेर सारी बातें तुम्हें बुलाते-बुलाते गुज़र गई कई रातें ।
यूँ मायूस मत बैठो । यूँमायूस मत बैठो, हँसों मुस्कुराओं दोस्तों ।ख़्वाब से निकलो हक़ीक़त में आओ दोस्तों ।। एक उम्र गुज़ार दी ज़माने वालों के काम देखते-देखते;अब बारी तुम्हारी
प्रेम महज ढ़ाई अक्षर का एक शब्द नहीं प्रेम में है समाहित भावना रुपी समुद्र ज्ञान रुपी नभ।। प्रेम महज ढ़ाई अक्षर का एक शब्द नहीं प्रेम पूजा है प्रेम
आसमान छोटा हो गया है परिंदों के ख़ातिर इंसानी दिमाग हो रहा है धीरे-धीरे शातिर ज़मी पे अभी पाँव पूरी तरह रखे नहीं हैं आसमां में आशियाँ बनाने में होने
मेरी कविता में तुझे पढ़ा जाना मेरी कविता में तुझे पढ़ा जानाछोटी सी बात नहीं हैजीवन का सार है उन शब्दों मेंजिनमें तेरी उमंग, तेरे साहस,तेरी सहनशीलता, तेरे
उदय सूरज का पूरब सेआशा विश्वास की मुस्कान लिए।।रौशन करता त्रिभुवन को खुशियों का भान लिए।।अस्ताचल पश्चिम में सागर की गहराई आसमान का अभिमान लिए।।अस्ताचल कहते सूरज आऊँगा मैं घने
उदय सूरज का पूरब सेआशा विश्वास की मुस्कान लिए।।रौशन करता त्रिभुवन को खुशियों का भान लिए।।अस्ताचल पश्चिम में सागर की गहराई आसमान का अभिमान लिए।।अस्ताचल कहते सूरज आऊँगा मैं घने
अवसान दिवस का सूर्योदय कापरिणाम प्रवाह नए सुबह आनेकी जागृत करता भाव भावना ।।आएगा सूरज नए काल कलेवर मेंजीव जगत की खुशियाँ उमंग उत्साहमंजिल मकसद की शक्ति का भानविश्वास संभावना
दंश दासता से घायलभारत का जन जन था।।मन में आज़ादी कीचिंगारी ज्वाला अंगारलिये व्यथित भारत वासी था।।सन सत्तावन की क्रांति केक्रूर कुटिल दमन सेआहत भारतवासी दंश दासता दमन सेअपनी शक्ति