मुल्क़ के हालात
आजकल मेरे मुल्क़ के हालात बहुत ख़राब हो गए हैं ;
आवाम पर सफ़ेदपोश लुटेरों के ज़ुल्म बेहिसाब हो गए हैं ।
कोई खोलकर पढ़ना ही नहीं चाहता इक-दूजे के दुख-दर्द को;
आदमी मेरे शहर के अलमारी में बंद किताब हो गए हैं ।
मंहगाई, भ्रष्टाचार, अपराध ने कमर तोड़ दी आम आदमी की;
इज्ज़त से दो वक्त़ की रोटी मिलना, मुफ़लिसों के ख़्वाब हो गए हैं ।
मज़लूमों का बहता ख़ून देखकर भी नहीं पसीजता इनका दिल;
हुक़्मराँ मेरे मुल्क़ के ज़हनो-दिल से बड़े बेआब हो गए हैं ।
आतंकी, टुकड़े-टुकड़े गैंग बताते वो- सब हक़ माँगने वालों को;
लगता है सत्ता के नशे में इनके दिमाग़ ख़राब हो गए हैं ।
फेक न्यूज़,पुलिस, देशद्रोह से डराते वो
खिलाफ़त करने वालों को;
सच को दबाने के इनके तरीके पहले से नायाब हो गए हैं ।
ज़िंदगी,ज़मीन-जंगल, सरकारी इदारें सब बिकने को तैयार हैं;
आजकल के कुर्सी वाले सरमायदारों के दलाले-अहबाब हो गए हैं ।
अगर आने वाली नस्लों को रोशन देखना चाहते हो ‘दीप;
तो अंधेरों से खुलकर लड़ों, क्योंकि अब आग़ाज़े इंक़लाब हो गए हैं ।
● संदीप कटारिया’दीप’ (करनाल,हरियाणा)
शब्दार्थ:-
सफ़देपोश- सफ़ेद कपड़े पहनने वाले नेता लोग ;
मुफ़लिस -गरीब ; मज़लूम- कमजोर/शोषित ;
बेआब- बेशर्म/ जिनकी आँख का पानी मर जाए ;ख़िलाफत- विरोध करना; नायाब – पहले से अलग । सरकारी इदारे- सरकारी विभाग ;
सरमायदार- अमीर व्यपारी वर्ग । दलाले-अहबाब-दलाली करने वाले दोस्त ; आग़ाजे-इंक़लाब- क्रान्ति की शुरूआत ।
Last Updated on February 17, 2021 by sandeepk62643
- संदीप कटारिया
- छात्र
- बुद्धा कालेज आफ एजुकेशन
- [email protected]
- करनाल , हरियाणा