आज फिर उलफत अजीब सा है।
दिल में गफलत अजीब सा है।
खबर खैर का खुद ही पता सा है।
मेरे मन ने क्या खोया-क्या पाया।
देखो सही आँखों पे धूल सी जमी क्यों है?
बेखबर हूं खूद से,फिर भी आँखों में नमी क्यों है?
मैं ने क्या पाया यूं उदाश होकर।
इस मन ने क्या खोया तेरा होकर।
इतना तो पता चले,है कहां ठोकर।
चैन भी तो आता नहीं है अभी रो कर।
तेरा वो बात है कि दिल में ठनी क्यों है?
मैं दर-बदर हूं कि गीली दिल की जमी क्यों है?
शायद कोई बात हो,पता चले तो सही।
बिखरते एहसास फिर राफ्ता चले तो सही।
मुकम्मल रिस्तों का सिलसिला चले तो सही।
तकल्लुफ है,खता क्या है पता चले तो सही।
आज ही तो जख्म लगे,पता हो तेरी कमी क्यों है?
मैं बेहिसाब हूं,रिस्तों की डोर यूं थमी क्यों है?
शहर सुनसान सा है,अकेले-अकेले चले कैसे।
हसरतों के बाजार में तुम बता दो ढले कैसे।
लंबा सा सफर है,इस डगर पर चले कैसे।
शायद रूठे हो,बताओ हसरतें दिल में पले कैसे।
भीगे-भीगे पलकों से ढलकती बुंदे सबनमी क्यों है?
तेरे करीब होकर भी,मेरे आँखों में ये नमी क्यों है?
Last Updated on February 15, 2021 by madanmohanthakur45
- मदन मोहन
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