महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता – एक युद्ध स्त्री को लेकर
द्रुत गति से बहती सरिता की कलकल है या विस्मय के होठों पर ठहरा पल है काश.. कभी आगे भी इसके जान सकूँ अभी तो.. नारी मेरे लिए कुतूहल है
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
द्रुत गति से बहती सरिता की कलकल है या विस्मय के होठों पर ठहरा पल है काश.. कभी आगे भी इसके जान सकूँ अभी तो.. नारी मेरे लिए कुतूहल है
रणयौद्धा मेरे भारत के ये रणयौद्धा मेरे भारत के मेरे देश के सच्चे रखवाले सीना तान खड़े सीमा पर मेरे भारत के वीर मतवाले अटल शिखर हिमालय की आन
कृष्ण की लगन मैं जबसे हुई तेरी भक्ति में मगन,संसार के सुखों में रमे ना मेरा मन,जैसे राधा को लगी हो कृष्ण की लगन,वैसे ही तेरे नाम पर थिरकता
http://कविता(देशभक्ति प्रतियोगिता हेतु ) है देश निराला सबसे अपना है देश निराला सबसेअपना सबके दिल में ये बस्ता है, जो देश को ना समझे अपना, वो मृत जीव से भी
जनम जनम का रिश्ता ……………………… यह रिश्ता प्यारा जनम जनम का, मैं किस तरह, इसे इजहार करूँ , संकट से भरा यह भाजन हमारा, सुख से कैसे तुम्हारा आभार करूँ
“वन्देमातरम” से लेकर “जन – गन – मन” तक जो दिल में बसता है यह हिंदुस्तान हमारा है, “खेतों की हरियाली” से “तकनीकी उद्योगों” तक जो निरंतर चलता है यह
*1-कारगिल युद्ध गाथा* कारगिल में गूँज उठी थी,शूरवीरों की ललकारपाकर सह शैतानों का जब घुस आए थे आतंकी हज़ारदेश की तब सरकार जगी,सुनकर शैतानों की फुँफकारलेकर राय देश से सारा
मुक्त चित् प्राण मन से, अहोराष्ट्र की वन्दना हम करेंशुद्ध चित् प्राण मन से, अहोअभ्यर्थना हम करेंराष्ट्र ही शक्ति हैराष्ट्र ही भक्ति हैराष्ट्र में ही हमारी भीअभिव्यक्ति हैमुक्त चित् प्राण
*।।मैं।।*मैं चिर नवीन मैं अति प्राचीनमैं खुशमिज़ाज मैं ग़मशीन मुझमें यह संसार समाया हैंमुझसें मोह मोक्ष माया हैं मैं अस्तित्व हुँ , मैं व्यक्तित्व हुँमैं लघुत्व और मैं प्रभुत्व हुँ
वारिस की पहली फुहार में …………………………… जब से तुम परदेशी हो गये, खूब आते सुनहले सपने में, सजना,तुम अब होते दीदार, बस हमारे पलक झपकने में ।1।
01 आ गया वसंत आ गया वसंत ! देखो फिर छा गया वसंत !! अब होगा कलरव चहूँ – दिशा में , वन – वन खिल जायेंगे फूल | जीवित
——-“अलौकिक भूलोक”——- पर्वतों की श्रृंखलायें, गान गायें शान का प्रतीक वनस्पति बृक्षादि हैं, तेरे आत्मसम्मान का I तूफान शीत बरसात में भी, अडिग रहना धर्म है प्रदत्त जिनसे जल व
मित्रो! जब जब राष्ट्र को विपत्ति का सामना करना पड़ता है एवं राष्ट्र शत्रु चतुर्दिशीय वार करने में कदाचित नहीं चूकते अपितु धोखाधड़ी का निरन्तर प्रयास करने में अपने को
मित्रो! जब जब राष्ट्र को विपत्ति का सामना करना पड़ता है एवं राष्ट्र शत्रु चतुर्दिशीय वार करने में कदाचित नहीं चूकते अपितु धोखाधड़ी का निरन्तर प्रयास करने में अपने को
कह दूँ क्या तुमसे मैं,कह ही दूँ क्या तुमसे मैं, कहना चाहूँ तुमसे मैं कह देती हूँ तुमसे मैं|| इस जीवन में चाहा जिसको बतलाती हूँ तुमसे मैं| पंख पसारे
नए साल में बदलेंगे हालात भीक्या नए साल में?बनेंगी बिगड़ी बात भीक्या नए साल में?तारीखें बदलने से क्यादुख ;सुख में बदल जाते हैं?साल बदलने से क्याहाल भी बदल जाते हैं?बहलेंगे
देश भक्ति काव्य प्रतियोगिता हालात ए वतन हालात ए वतन जब हम देखते हैदो बूंद पानी को पोछ लेते है लोग । हर कोई मशरूफ ज़िन्दगी की भागमभाग में होश
हिंदीतर राज्य- कर्नाटक में हिंदी प्रचार– प्रसार के अग्रणी दिवंगत पंडित के.एस. वेंकटरामय्या(वेकटेश)- (13.03.1918 – 22.06.2008) विभिन्न क्षेत्रों में अपार साधना करनेवाले कई लोग हम लोगों के बीच
“देशभक्ति काव्य प्रतियोगिता” हेतु देश का बेटा गैरों ने तो लूटा था, अपनों ने भी लूटा।मॉं से बिछड़े थे जो बच्चे, उन्होंने ही लूटा।ऐसे भी बच्चे थे मॉं के, अपने
“प्रेम काव्य – लेखन प्रतियोगिता” हेतु हमको भूला न पाओगे क्या भूल गए हमें?दिवाली के दीयों की रोशनी में हम है,उड़ती पतंग के साथ उड़नेवाली हवा में हम है,होली के
कविता क्रमांक 1 शीर्षक- चाहत न वादे न कशमें न रस्मे बड़ी है| ना चाहत है ,छोटी ना मोहब्बत बड़ी है| हो तुम हमारे ,है हम भी तुम्हारे, बस दिल
कविता “वज़ूद “ न होते हुए भी तुम्हारा वज़ूद घेरे रहता है जैसे चंद्रमा को वलय घंटों चलता है मौन सन्लाप तुमसे निकल जाती हूं बहुत दूर तुम्हारे साथ किसी
कविता (1)”प्रेम की गहराई” यदि दिल की गहराइयों से प्यार करते हो मुझसे तो सोते फूटेंगे ज़रूर उन्हीं गहराइयों से बहेगा झरना झर-झर,कल-कल हर एक जलकण से जन्मेगा प्रेम मोती
करुणा का भंडार गुरुसुखों का आधार गुरुज्ञान का विस्तार गुरुतेरी महिमा अपार गुरु जीवन के उद्धारक गुरुज्ञान के प्रसारक गुरुअंधकार के विनाशक गुरुआदर्शों के विचारक गुरु देते मृदुवाणी मुस्कान गुरुबनाते
“अधखुली आंखों वाली” सुनिए..जीवन दर्शन मेंरिश्तों के अहमियत परक्या ख्याल है आपका..क्या सच में.. एक स्नेह पूर्ण जीवन जीने के लिएरिश्तों के विभिन्न आयामों केउपर गहन
शीर्षक – ‘गणतन्त्र दिवस है आज भारत में’ गणतन्त्र दिवस है आज भारत में, राष्ट्र ध्वज का सब करें सम्मान।
बेटी…!!! बेटे की चाह में देखो तो,कैसे बेटी वो छोड़ गए,मुख मयंक आभा से कैसे,वो क्रूर हृदय मुख मोड़ गए…! हरि इच्छा के जो है अधीन,वो भी तुमको स्वीकार नहीं,क्यूं
“तलाश” वे वक्त के साथ अपने आपको बदल लेते हैं | हम उनके भीतर झाँकते है | निहारते हैं उनकी परछाईयों को | उनके प्रेम कभी दिखते नहीं | हमें खोजते-खोजते
देशभक्ति काव्य – लेखन प्रतियोगिता क्यों पढ़े संस्कृत हम ज्ञान की यह खानसंस्कृति की पहचानभाषाओं की जननीदेवभाषा है महान।गागर में सागर समाहितसदियों से यह आदृत।वेद ऋचाएँ गंगा – सीश्लोकों में
जमी’ पे तारे जो झिलमिलाए कहो तो कैसी ये बात होगी , मेरे महल में जो चाँद उतरे
मन महकने लगा, तन बहकने लगा कर दिया कोई जादू तेरे नाम ने, बंद सी आँख मेरी ये कहने लगी, तु जरूर आ गई है मेरे सामने। अब तलक
हिन्दी : भारत का अभिमान ध्वज हिंदी का चूमता आसमान है अजय हिंदी यह भाषा महान है, पाणिनी की संस्कृत जन्मदात्री, पाली प्राकृत अपभ्रंश सखी समान है, देवनागरी लिपि ,शब्दों
नारी जग की तारिणी नारी जग की तारिणी, नारी जग आधार।नारी जग की शक्ति है, नारी से संसार।।1।। नारी से ही है सुता, नारी से ही मात।नारी बहना रूप है,
नारी नारी का सम्मान करो रे, करो नहीं उसका अपमान।ईश्वर की ये अनुपम रचना, मानव जीवन का वरदान।। अस्तित्व नहीं था लहरों का, जलधि यदि नहीं होता आज।शक्ति भक्ति जगत
स्वरचित कविता (महिला काव्य प्रतियोगिता हेतु प्रेषित प्रविष्टि) शीर्षक-“जाग रहीआधीआबादी” जाग रहीआधीआबादी,दु:ख छिपकर अब सोता है। देश मेरा गर्वित है इनपर,सुख-स्वप्नों में खोता है ।। दिन चमकीले,रात सुहानी,घर-घर गूंजे यही
“स्त्री जीवन का सफर” पलकों के झपकने में जितना वक्त लगता है उतना ही वक्त लगता है एक स्त्री की जिंदगी को मौत तक पहुँचने में देखिए जरा उसकी हत्या
*******************************हो जहाँ मरुथल वहाँ कश्तियाँ चलती नहीं हैं ।हों अपाहिज अश्व तो बग्गियाँ बढ़ती नहीं हैं ।।देख ले करके जतन स्वार्थ की इस जिन्दगी में ,हो भरी यदि रेत कर
अंतर्राष्ट्रीय देश भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुत रचना देशभक्त मां**** छाती से आंचल लिपटाकर घूमूं सारे गांव रे।एक दिन आयेगा लाल मेरा मैं बैठी अपनी ठांव रे।रोज सबेरे सूरज
. प्रणय पत्र सोचा आज एक प्रणय पत्र लिखूँ दिल हो कागज़ और काजल हो स्याही कि तुम जब देखो तो तुम्हें देखे मेरी नज़र पर
साँचा बंधन सतवर्णी रंगों से सज कर जब कान्हा तेरी प्रीत खिले राग , अनुराग, भाव, अनुभाव . सब जीवन राधा को मिले अधखुले नयन मद से भरे लरजते
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कवि सम्मेलन काव्य प्रतियोगिता केलिए क्या नाम दूँ तुम्हें ? जीना है कब तक देवता का रूप धरकर ? कितनों ने की है दुनिया में
‘मैं’, मैं को ढूंढ रही थी, नगर-नगर गली, गली, घूम रही थी, ‘मैं’ की तलाश जारी थी, अब खुद के अंदर देखने की बारी थी, कस्तूरी मृग की नाभि में
‘मैं’, मैं को ढूंढ रही थी, नगर-नगर गली, गली, घूम रही थी, ‘मैं’ की तलाश जारी थी, अब खुद के अंदर देखने की बारी थी, कस्तूरी मृग की नाभि में
व्यंग्य “पतंग का चस्का और थानेदार साहब का डण्डा “ मकर संक्रांति पर सुबह से ही पतंगबाजी का माहौल था। आसमान में रंग-बिरंगी पतंग, ऊंगलियों के इशारों पर नाच रहीं
प्रेम कुटीर————- हम कम बोलते हैं आपसे नज़र मिलाते हैं ज्यादाज्यादा कोशिश तो करते हैं पर टिकनहीं पा रहे हैं दिल कमज़ोर है ज्यादा सोचा रोमियो जैसे पीछे पड़ूं !मजुनू
रचना शीर्षक : “प्रणय निवेदन” विचलित से हैं भाव मेरे,तेरे सम्मुख आ जाने आने पर,फेर सको गर नज़रें तुम,कुछ शब्द लिखूं पैमाने पर…! शब्द, शून्य की सीमा पर,कैसे तारीफ के
तुमने ये गजरे कयूॅ नहीं लगाये, चंदन सा बदन क्यो नहीं महका, ये जुलफें वैसे कयूॅ नहीँ बलखाई, तेरा चितचोर इसलिए नहीं बहका, ऐ!इत्ती सी बात पर तुम रूठी मुझसे,
कोने में ,जर्जर सी अकेली खड़ी है,साथियों के साथ एक रैक में पड़ी है।अपने सारे पन्नों को समेटे,ऊपर गंदा सा आवरण लपेटे। थोड़ी बदहवास सी पुरानी लगती है,किसी की
देखा वसंत में फूले सरसों से खेत चमकते फले हरे गेहूं लहराते कू-कू कोयल कूजते पछुवा को डालियों से करते दोल विलास देखा वसंत में ! जहाँ तहाँ कटते उलझे
अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस के कवि सम्मेलन हेतु नारी तुम कितनी हो महान, तुम जग को दे सर्वस्व दान, है कर्म किया कितना महान, बस ये जग करे तुम्हारा मान।
अंतरराष्ट्रीय प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता- सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 1. कविता का शीर्षक :- प्रेम…! अनुभूति का अद्भुत संगम है प्रेम…!संवेदनाओं और स्वानुभूति का मनोरम
_हिन्दुस्तान_ सत्ता के सिंहासन पर विराजे हैतिरंगा हमाराशान है इसकी ऊँची औरहौंसले बांधे हर वक्त हमारा, देशभक्ति नहीं केवलतिरंगा लहरानादेशभक्ति की परिभाषा तो हैहिन्दुस्तानी कहलाना, धर्म,जाति,रंग-रूप का ना कोई वास्ताभारतीय
कविता क्रमांक 1 शीर्षक- कमजोर नहीं है नारी जरूरी नहीं कि नारी है ,तो बेचारी ही होगी| हां होती है परवरिश थोड़ी अलग, इसलिए कमजोर दिख सकती है| पर नारी
अंग्रेजो के समय भी देखिए
नारी शक्ति का फैला परचम था
लक्ष्मी बाई , सरोजिनी नायडू
कस्तूरबा गांधी , विजया लक्ष्मी में कितना दम था
मारीशस के यात्रा में एक संस्मरण आप सब की सेवा में प्रस्तुत है पिछले साल 2019 जनवरी की बात है हमारा एक साहित्य ग्रुप है उस के माध्यम से हम
!! दोनों ही बेज़ुबां निकले !! लोगों को जीतने की ज़िद है हम अपनों से खेलने में नादाँ निकले। सब कुछ कह दिया उनसे बातों ही बातों में, पर अभी
विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस एवं न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन के सहयोग से सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई- पत्रिका द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन,
विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस एवं न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन के सहयोग से सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई- पत्रिका द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन,
अंतरराष्ट्रीय “प्रेम-काव्य लेखन प्रतियोगिता”विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई- पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में वसंत उत्सव के अवसर पर आयोजित किए
अंतरराष्ट्रीय “देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता”विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई- पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में भारतीय गणतंत्र दिवस – 26 जनवरी 2021’
अंतरराष्ट्रीय काव्य लेखन प्रतियोगिताविश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन एवं सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई- पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस – 8 मार्च 2021”
साझा काव्य/ कहानी/व्यंग्य/लघु कथा/ललित निबंध संग्रह प्रकाशन योजनासृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के सहयोग से न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन प्रकाशन योजना के अंतर्गत विभिन्न विधाओं के साझा संग्रह के
[“संवाद” मनुष्य की मूलभूत जरूरत है, इसके बिना मनुष्य रह पाना ही मुश्किल हो जाता है। विशेष रूप से बुजुर्गों के लिए जिंदा रहने की चाह की तरह होता है
साझा कहानी/लघुकथा संग्रह हेतु:[email protected] विषय : “साझा कहानी/लघुकथा संग्रह प्रकाशन हेतु”न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन विश्व भर में हिन्दी भाषा और साहित्य के प्रचार- प्रसार के लिए कृत संकल्पित
शोध आलेख प्रतियोगित और साझा शोध आलेख प्रकाशन योजना इस योजना के तहत निर्धारित विषयों पर आधारित श्रेष्ठ 10 शोध आलेख को निशुल्क प्रकाशित किया जाएगा। सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका
रचनाएँ निम्नलिखित ईमेल पर भेजें। साझा काव्य संग्रह हेतु :[email protected] विषय : “साझा काव्य संग्रह प्रकाशन हेतु” न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फाउंडेशन विश्व भर में हिन्दी भाषा और साहित्य
शीर्षक – तुम फिर याद आओगे जब जब वर्षा होगी,जब जब कोयल बोलेंगी,तुम मेरे दिल को बहकाओगे,तुम फिर याद आओगे। रेत के नक्श है मेरी कहानी,जुदाई ने भर दी आँखों
संयोग श्रृंगार रस से पूर्ण कविता शीर्षक- प्यार की राह में चलते चलते सुनो प्रिय प्यार की राह में चलते चलते,सहेंगे सुख-दुख हम दोनों हँसते हँसते। तुम ही हो मेरी
शैली : हाईकु दीप जलाओ बनाओ घरौंदों को आई दिवाली। पूजा का थाल फल फूल से भरो है दीपावली। दिन है यह शुभ मानते लोग महोत्सव में। नए कपड़े बाजार
रिपोर्ट शीर्षक- इतिहास और वर्तमान का संधि स्थल हैदराबाद तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद,श्रमजीवी लोगों का शहर हैदराबाद,जिसका इतिहास और वर्तमान दोनों ही सुंदर है।यह वह स्थान रहा है जहाँ
”श्रृंगार स्वाभिमान का” बनावटी सुंदरता से परे रहकर आत्मिक गर्व से जो कर्म करे, आत्म सम्मान निज ह्रदय में रखकर सीना चौड़ा कर जो कदम
“अद्भुत हिंदुस्तान”26 जनवरी 1950 कोहमारे भारत का संविधान बन जाए,राष्ट्रीय पर्व का मिला दर्जा गणतंत्र दिवस का त्यौहार बनाएं, लोकतांत्रिक हिंदुस्तानी बने अब हमतिरंगा खुले चमन में लहराए,सरहद पर तने
“अद्भुत हिंदुस्तान” 26 जनवरी 1950 को हम हमारे भारत का संविधान बनाए, राष्ट्रीय पर्व का मिला दर्जा गणतंत्र दिवस का त्यौहार
ऐसे हैं हम भारतवासी हिमशिखर उत्तुंग उठा कपाल, चरण पखारता सागर विकराल, गंगा यमुना संचारित रक्तनाल, असम चायबागान लहराते केशबाल, अद्भुत सोनचिरैया ऐसी, पूरी दुनिया थी अभिलाषी. ज्ञान ध्यान की
मैं समाज हूँ बेटी मैं समाज हूँ।अपराध नहीं है तुम्हारा बेटी होना।मैंने ही तो तुम्हेंसदियों से बेटी बनाया जब जन्मी थी तुमतो सिर्फ इंसान ही तो थीमैंने तुम्हें बेटी बनाया
8 मार्च 2021 महिला दिवस को आयोजित होने वाली काव्य प्रतियोगिता हेतु स्वरचित रचना। “आज की नारी”ना खेल हैं ना खिलौना हैंना तेरे बिस्तर का बिछौना हैं,खुल के कहेंगें तुुुझसे
“आज की नारी”ना खेल हैं ना खिलौना हैंना तेरे बिस्तर का बिछौना हैं,खुल के कहेंगें सबसे लड़ेंगेंअब जो होना है सो होना है।। मजबूर किया लाचार कियाएक बार नहीं कई
8 मार्च, 2021 महिला दिवस आयोजित काव्य प्रतियोगिता “आज की नारी”ना खेल हैं ना खिलौना हैंना तेरे बिस्तर का बिछौना हैं,खुल के कहेंगें सबसे लड़ेंगेंअब जो होना है सो होना
नमन तुमको देश मेरा सूर्य चंदा और तारे के सुखद मनहर नजारे हैं सजाते देश को नित स्वर्ण किरणों के सहारे, गोधुली जिसकी सुहानी सुखद है
विधा- मुक्तकशीर्षक- नववर्ष मधुमास की मीठी सुरभित पवन,रसपान कराये घूम कर वन वन।नव वर्ष में शरद का चंदा चमके-सुन्दरी रजनी दमकी भवन भवन।। प्रभा है प्रफुल्लित,तिमिर दूर भागे,वैभव संग
संस्मरण शीर्षक- सजा घटना आज से चार-पाँच साल पहले की है। मेरे पति सुबह सुबह ऑफिस के लिए निकलकर हैदराबाद के कारखाना नामक जगह पर पहुँचे थे,सुबह के कारण सड़क थोड़ी
संस्मरण शीर्षक- सजा घटना आज से चार-पाँच साल पहले की है। मेरे पति सुबह सुबह ऑफिस के लिए निकलकर हैदराबाद के कारखाना नामक जगह पर पहुँचे थे,सुबह के कारण सड़क थोड़ी
उसके त्याग को न भूलो तुम,
उसके जीवन के महत्ता नहै कम।
वह तुमसे किये का उपकार ना चाहती,
उसे तुम मां बेटी बहू कुछ तो समझो।।
स्त्री नहीं…
बेटियों की नन्ही सी मुस्कान पहले देती थी माँ को सुकून अब डूबे हैं वह इस दुविधा में कैसे रखे बेटियों को दरिदों से दूर | बेटियों की नन्ही सी
आचार्य गुरुदास प्रजापति महक जौनपुरी 23, मेहरावां, सोनिकपुर, जौनपुर उ0प्र0 [email protected] डॉ0 अम्बेडकर का जन्म मध्य प्रदेश इंदौर जनपद के महू नामक उपनगर में 14 अप्रैल, 1891 ई0 को हुआ था।
रोती होगी माँ धरती, आँचल अपनी फटती देख आदित्य, इन्दु हैं एक जहाँ, प्राकृतिक दिव्य ज्योति लिए हुए, फिर भी है परस्पर अद्भुत् मेल, लोक प्रकाशित करना है लक्ष्य एक,
भारत की आन है हिंदी,
देश का अभिमान है,हिंदी,
फ़िर क्यूँ एक दिन की मेहमान है हिन्दी.
अंग्रेज़ों की वाकपटुता में,
खो गयी अपनी शान है हिंदी,
आज अनपढ़ो की पहचान है हिन्दी।
प्रेम काव्य प्रतियोगिता प्रिय प्रेम ! तुम महान हो तुम अमर हो , तुम ओजस्वी होतुम सदियों पुराना विश्वास हो तुम दीपक हो , जो कालो सेजलता आ रहा
वर्तमान युग औद्योगिकरण, शहरीकरण, प्रौद्योगिक का युग है। इस युग में बदले सामाजिक मूल्यों के कारण पश्चिमी होड़ में शामिल होने के कारण, समाज में ज्ञान के स्थान पर ‘भौतिकवाद’ का प्रभाव ज्यादा हो गया है इन सब के कारण सामाजिक जटिलताएँ अधिक हो गई है इन सब से मानव जीवन में तेज रफ्तार से थकान और तनाव बढ़ता जा रहा है। वर्तमान समय में मनुष्य को प्राय: तनावजन्य स्थितियों का सामना करना पड़ता है। अपने भविष्य को लेकर हर मनुष्य के मन में कई प्रकार के प्रश्न होते हैं जिनमें आकांक्षा, उत्साह, प्रसन्नता, भय, तनाव हर स्थिति होती है।
सुखद जीवन की अनुभूति से लजाई
दुल्हन बनी बैठी सजी सजाई
हाथों में मेहंदी रचाई
अपने साथ अनेक अरमान लाई
परिणय कर प्रिय संग ससुराल आई
जेबें भरी हैं
नोटों से
मगर
आज भी सिक्के
लेकर
खनकाने का मन
करता हैं।
जिस आँगन उठनी थी डोली
उस आँगन उठ न पाई अर्थी भी।
क्या अपराध था मेरा?
बस लड़की होना !
अर्थी भी न सजी इस आँगन !
कैसे सजाते? कैसे सजाते?
बटोरा होगा मेरा अंग अंग धरती से !
कफ़न में समेटा होगा मेरी आबरू को !
पत्थर तोड़कर भी, नाम मिला ना दाम मिला। बस छोटा सा काम मिला। सर्दी व बारिश गहरी में, गर्मी की दोपहरी में, कभी सड़क बनी, कभी महल बना, तनिक नहीं
“कला बहुत कुछ देती है पर टीडीएस भी काट लेती है।” ये ब्रह्मवाक्य ही जीवन का वास्तविक सूत्र है। और इसी तर्ज पर अंधाधुन फ़िल्म की पूरी कहानी टिकी है
कभी मेरे नयनों में सपने की तरह, अब जीवन नैया के हो पतवार की तरह, माथे पे बिन्दी लगा ली तेरे नाम की, कभी मेरे गाँव आये एक पाहुन की
सुबह-सुबह आज पार्क में एक रिटायर्ड मास्टर जी से मुलाकात हो गई। मास्टर जी सपना चौधरी के जबरिया फैन है। रिटायरमेंट के बाद टाइमपास करने में सपना के डांस वीडियो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। फोन मेमोरी में भले ही उन्हें किसी का कॉन्टेक्ट नंबर फीड करना न आता हो, पर यू ट्यूब पर सपना का कोई भी डांस का गाना चाहे आधी रात को सर्च करवा लो। राम-राम के बाद हुई बातचीत में मास्टरजी थोड़ा असहज से लगे। मैंने पूछा-क्या हुआ मास्टर जी। मास्टरनी से सबेरे सबेरे लठ बाजग्या कै। बोले-नहीं जी, वो अपने सत्संग, भजन कीर्तन में व्यस्त रहती है। सो बहस का अवसर ही नहीं मिलता। मैने पूछा-तो बात क्या हुई।
गहन तिमिर के शांत कक्ष में सुलगाते ही एक चिंगारी हर लेती सारे अवसादों को रश्मिरथी ये तीव्र उजियारी सहेज सब कुछ अंतर्मन में रही बाँधती जिसे निष्काम बिना बोले
प्रांजल कुमार नाथ शोध छात्र, गौहाटी विश्वविद्यालय, असम भूमिका : भारतीय संस्कृति में असम प्रांत के संत महापुरुष शंकरदेव असमीया सभ्यता और संस्कृति के बाहक है। उनका जन्म ऐसे संकटकालीन
कुछ जमी पर तन के टुकड़े कुछ जमी पर मन के मुखड़े कुछ जमी पर जन के दुखड़ो को बटोर ले हम वह किसी झरना का साहिल उसको हम कर
तन का सिंगार तो हजार बार होता है, पर प्यार तो जीवन में एक बार होता है, नाव की दिशा बदले पतवार की चाल से, हौले हौले बूँद चुनो जिन्दगी