. प्रणय पत्र
सोचा
आज एक प्रणय पत्र लिखूँ
दिल हो कागज़ और
काजल हो स्याही
कि तुम जब देखो
तो तुम्हें देखे मेरी नज़र
पर क्या लिखूँ ?
तुम्हारे स्मित भरे हैं अधर
तुम्हारे चमकीले हैं नयन
तुम्हारी खनकती ही आवाज़
या तुम हो मेरे दिल का साज
ना जाने क्यों ये बातें
बेमानी –सी लगती है
प्रणय की परिभाषा
क्या ऐसी होती है ?
बंधनों –बंदिशों से दूर
चाहतों शिकायतों से परे
प्रिय में समाकर
विश्वास की ड़ोर से बंधा
जीने का नूर है प्रणय
शब्दों में ढ़लकर
कम न अधिक हो
क्रिया- प्रतिक्रिया से
सच्ची ना झूठी हो
तन की सीमा छोड़
मन की परीधि में
आत्मा से बंधकर
सुंदर एहसास है प्रणय
सृष्टि के कण-कण में
रचा- बसा है प्रणय
शाश्वत सत्य का
साक्षात्कार है प्रणय
तृष्णा में तृप्ति है प्रणय
समर्पण का भाव है प्रणय
बस पूर्ण समर्पण है प्रणय
Last Updated on January 7, 2021 by swarnajo
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