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हो जहाँ मरुथल वहाँ कश्तियाँ चलती नहीं हैं ।
हों अपाहिज अश्व तो बग्गियाँ बढ़ती नहीं हैं ।।
देख ले करके जतन स्वार्थ की इस जिन्दगी में ,
हो भरी यदि रेत कर में मुठ्ठियाँ बँधती नहीं हैं ।।
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बिन पवन पानी सुनों पत्तियाँ खिलती नहीं हैं ।
द्वार पर आये बिना कुण्डियाँ बजती नहीं हैं ।।
तुम हथेली पर अरे सरसों उगाना चाहते हो ,
हो उजाला सूर्य का तो बत्तियाँ जलती नहीं हैं ।।
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हाथ को सीधे किये बिन उँगलियाँ तनती नहीं हैं ।
बिना सूत कपास कभी तकलियाँ चलती नहीं हैं ।।
इन शिराओं का सुनों रक्त दूषित मत करो तुम ,
रक्त यदि मौजूद न हो धमनियाँ चलती नहीं हैं ।।
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डाँ आदेश कुमार गुप्ता पंकज
Last Updated on January 7, 2021 by gupta.adeshk
- डाँ आदेश कुमार गुप्ता
- पंकज
- अध्यापक
- [email protected]
- रेणुसागर सोनभद्र उ.प्र.