विधा- मुक्तक
शीर्षक- नववर्ष
मधुमास की मीठी सुरभित पवन,
रसपान कराये घूम कर वन वन।
नव वर्ष में शरद का चंदा चमके-
सुन्दरी रजनी दमकी भवन भवन।।
प्रभा है प्रफुल्लित,तिमिर दूर भागे,
वैभव संग बढ़ी लक्ष्मी आगे आगे।
नववर्ष जीवन में मौलिकता लाए-
जनजीवन महके और भाग्य जागे।।
पिघल जाए मन,दूर हो दारुण दुख,
हो शीतलता मिले तप्त उर को सुख।
नववर्ष में ऊँच-नीच का न हो वास-
दूर हो कटुता,सर्वत्र हो प्रिय मुख।।
दिन बदला,रात हुई अब नई नवेली,
षडऋतु संग वसुंधरा होगी अलबेली।
नववर्ष में तन से लिपटे स्वस्थ धूप-
और जीवन बने आशा रुपी हवेली।।
मानव के लिए हो मंगलमय नववर्ष,
चहुँओर फैल जाए एक समान हर्ष।
सबके जीवन में आए ढेरों खुशियाँ-
समता के भाव से सबका हो उत्कर्ष।।
रचनाकार- मनोरमा शर्मा
स्वरचित एवं मौलिक
हैदराबाद
तेलंगाना
Last Updated on January 4, 2021 by manoramasharma521
- मनोरमा शर्मा
- शिक्षिका
- हैदराबाद
- [email protected]
- [email protected]