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नववर्ष

 

विधा- मुक्तक
शीर्षक- नववर्ष

मधुमास की मीठी सुरभित पवन,
रसपान कराये घूम कर वन वन।
नव वर्ष में शरद का चंदा चमके-
सुन्दरी रजनी दमकी भवन भवन।।

प्रभा है प्रफुल्लित,तिमिर दूर भागे,
वैभव संग बढ़ी लक्ष्मी आगे आगे।
नववर्ष जीवन में मौलिकता लाए-
जनजीवन महके और भाग्य जागे।।

पिघल जाए मन,दूर हो दारुण दुख,
हो शीतलता मिले तप्त उर को सुख।
नववर्ष में ऊँच-नीच का न हो वास-
दूर हो कटुता,सर्वत्र हो प्रिय मुख।।

दिन बदला,रात हुई अब नई नवेली,
षडऋतु संग वसुंधरा होगी अलबेली।
नववर्ष में तन से लिपटे स्वस्थ धूप-
और जीवन बने आशा रुपी हवेली।।

मानव के लिए हो मंगलमय नववर्ष,
चहुँओर फैल जाए एक समान हर्ष।
सबके जीवन में आए ढेरों खुशियाँ-
समता के भाव से सबका हो उत्कर्ष।।

रचनाकार- मनोरमा शर्मा
स्वरचित एवं मौलिक

हैदराबाद 

तेलंगाना