वापस आओ ओ मेरी माँ
सात समंदर पारकर, हुई हो तुम आँखों से ओझल,
मिले बिन तुझे ओ मेरी माँ मेरा मन हुआ है मरुस्थल।
विदेश में रहकर है क्या हाल तेरा, कैसे ये मैं जानूँ ?
विडियो कॉल से बात किए, तेरी आँखों से क्या पहचानूँ ?
भैय्या- भाभी, मुन्ना- मुन्नी तो देखभाल करेंगे तेरी,
अपना देश -अपनापन कहाँ मिलेगा ओ माँ मेरी प्यारी?
आया होगा सपनों में बार-बार अपना घर, गलियारा।
भूलेगी कैसे सारे रिश्ते-नाते जीवन-भर जो तेरा मनहारा।
अपनी सहेलियाँ, यहाँ के मंदिर, अपना भगवद्गीता सत्संग।
हुआ है सूना, निहारे हैं राह सारे, लेकर तेरी वापसी की उमंग।
कब आओगी वापस ओ माँ, तरस रहीं है ये तेरी बिटिया,
पल-पल तेरी राह निहार किए थकी हैं मेरी अखियाँ।
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-अनुराधा के, वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी,
कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,क्षेत्रीय कार्यालय,मंगलूरु
Last Updated on February 12, 2021 by anuradha.keshavamurthy
- अनुराधा.के
- वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी
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