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वापस आओ ओ मेरी माँ

 

वापस आओ ओ मेरी माँ

 

सात समंदर पारकर, हुई हो तुम आँखों से ओझल,

मिले बिन तुझे ओ मेरी माँ मेरा मन हुआ है मरुस्थल।

विदेश में रहकर है क्या हाल तेरा, कैसे ये मैं जानूँ ?

विडियो कॉल से बात किए, तेरी आँखों से क्या पहचानूँ ?

 

भैय्या- भाभी, मुन्ना- मुन्नी तो देखभाल करेंगे तेरी,

अपना देश -अपनापन कहाँ मिलेगा ओ माँ मेरी प्यारी?

आया होगा सपनों में बार-बार अपना घर, गलियारा।

भूलेगी कैसे सारे रिश्ते-नाते जीवन-भर जो तेरा मनहारा।

 

अपनी सहेलियाँ, यहाँ के मंदिर, अपना भगवद्गीता सत्संग।

हुआ है सूना, निहारे हैं राह सारे, लेकर तेरी वापसी की उमंग।

कब आओगी वापस ओ माँ, तरस रहीं है ये तेरी बिटिया,

पल-पल तेरी राह निहार किए थकी हैं मेरी अखियाँ।

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-अनुराधा के, वरिष्ठ अनुवाद अधिकारी,

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन,क्षेत्रीय कार्यालय,मंगलूरु