वो मौन था,नि:शब्द था।
आगे बढने की राह ढूंढता था।
किसी के लिए परवाह ढूंढता था।
क्या हुआ है आज गुनाह ढूंढता था।
ढृढता तो थी उसमें,शांत था लहरों सा।
मानों जीवन की नदिया का थाह ढूंढता था।।
वो गौण नहीं हो सकता,शायद इसलिए।
शायद वो बतला भी दे है मौन किसलिए।
पथ पर बढने की चाह रहा हो जिसलिए।
वो फिर ठहरा सा है पथ में किसलिए।
इच्छाएँ बलबती हो उठी,शभ्रांत था लहरों सा।
वो अपने जीवन में दूविधा अथाह ढूंढता था।।
वो मुफिलिसी का इस कदर से मारा था।
लगता तो है शायद वो वक्त से हारा था।
उसके नयना बतलाते,सच उसने स्वीकारा था।
और यही बस लगता,वो बस इक वेचारा था।
आज बदलेगा वो फिर,नितांत था लहरों सा।
अभी-अभी वो दिल में उठता आह ढूंढता था।।
वो मौन था,तो क्या,अभिलाषा से दूर नहीं।
फिर से ना संभले,ऐसा लगता तो मजबूर नही।
चाहे पथ में कंकर-कांटें हो,लगता मंजिल दूर नहीं।
वो मौन ही है शायद,पर वो शायद है मगरूर नहीं।
अभी-अभी पलके झपका कर,शांत था लहरों सा।
वो पथिक ढृढ निश्चयी है,अपना निशां ढूंढता था।।
Last Updated on February 15, 2021 by madanmohanthakur45
- मदन मोहन
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