आज की सच्चाई
जो ‘था’ कभी, वो अब ‘ है ‘ नहीं,
वक़्त बदला मगर वक्त पे नहीं,
चाल बदनाम है या नाम की चाल बद है,
रूह मेरी है मगर मुझमें ‘मैं’ नहीं।
घमंड नाज है बेवफ़ाई वफ़ा है,
हर सगे की कहना सिर्फ़ दगा है,
नैमित्य है जो अब निमित्त ना रहा,
झूठ के पैरों में रुन्ध, सच अब सफा है।
सपौले अनगिनत हैं जहर की पोटली में,
अंधेरा भी बंद है अंधेरी सी कोठरी में,
इंसान नहीं जादूगर है ‘निमय’ ये मानव अब का,
बदल डाली है दुनिया रख जादुई टोकरी में।
नेमीचंद मावरी “निमय”
बूंदी, राजस्थान
Last Updated on November 2, 2020 by poetnimay.info