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आज की सच्चाई

आज की सच्चाई

वक़्त बदला मगर वक्त पे नहीं,

चाल बदनाम है या नाम की चाल बद है,

 

नाज है बेवफ़ाई वफ़ा है,

हर सगे की कहना सिर्फ़ दगा है,

नैमित्य है जो अब निमित्त ना रहा,

झूठ के पैरों में रुन्ध, सच अब सफा है।

 

सपौले अनगिनत हैं जहर की पोटली में,

अंधेरा भी बंद है अंधेरी सी कोठरी में,

बदल डाली है दुनिया रख जादुई टोकरी में।

नेमीचंद मावरी “निमय”

बूंदी, राजस्थान