जीवन भी कुछ मेहंदी सा हो
कष्ट सहे टूटन का पेड़ से
सिल पर पिसे दर्द को सह के
समेटी जाए पात्र मे पानी संग
जो भी छुए उस पर छाप छोड़ कर
यौवना के हाथों पर लिखी जाए
पति के स्नेह का प्रतीक बन कर
सौभाग्य कहलाऊँ प्रेम बन हथेली पर
सोलह श्रंगार में जब समाहित होने पर
संम्पूर्ण सौभाग्य का चिन्ह बन कर
मेहंदी सी क्यों न बन जाऊं मैं
लहलहाती रहूँ टहनी से जुड़ी हुई
चमकती रहूँ ओस जब मुझे छू जाए
ओर जब तोड़ी भी जाऊं अपने झाड़ से
पिसन का कष्ट सह हथेलियों पर
अपना रंग छोड़ कर सुख को पाने
स्वयं का कष्ट कैसे सुख बन जाये
काश जीवन भी मेहंदी सा हो जाये
Last Updated on October 25, 2020 by srijanaustralia