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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

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डॉ. शैलेश शुक्ला

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द ग्रेट पॉलीटिकल ड्रामे का सुपर परफॉर्मर है ‘अर्नब ‘

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सुशील कुमार ‘नवीन’

आप सोच रहे होंगे कि आज सूरज कौन सी दिशा में जा रहा है। गलत दिशा तो नहीं पकड़ ली है। घबराइए मत। सूरज भी अपनी सही दिशा में है और हम भी। आप भी न रामलाल जी की तरह है छोटी-छोटी बातों पर गम्भीर हो जाते हो । रामलाल जी कौन है? अरे भाई। वो भी हमारे एक मित्र हैं आप लोगों की तरह। देश-दुनिया के प्रति सुबह से लेकर शाम तक फिक्रमंद रहते हैं।

खैर इस बारे में फिर बात करेंगे। आप तो आज की सुनो। बाजार की तरफ से आते हुए उनसे मुलाकात हो गई। दो दिन से अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी का मुद्दा लगातार चर्चा में है। वो कुछ बोलते इससे पहले आज हमने ही शब्दों के बाण छोड़ दिए। बोले-भाई साहब, ये अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी का क्या मामला है। कानूनी कार्रवाई कम ड्रामा ज्यादा दिख रही है। दो दिन से मामले को सही या गलत प्रमाणित करने में बुद्धि चकरा रही है। आप ही इस बारे में कुछ बताएं। हमारे कथन को उन्होंने भी बड़ी गम्भीरता से लिया।

बोले- ड्रामे देखने में तो आपकी भी पूरी रुचि है। यूं समझिए ये भी एक ड्रामा ही है। हम बोले-एक पत्रकार की गिरफ्तारी का ड्रामे से क्या मेल? समझ नहीं आया। थोड़ा विस्तार से समझाओ।बोले-अपने यहां यथार्थ की जगह अवसरवादी नाटक की प्रमुख श्रेणी हैं। इन दिनों वही नाटक खेला जा रहा है। जब से मुम्बई आया है मंगलाचरण में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रखी। मंगलाचरण में ही ये इतना समय ले लेता है कि नाटक के अन्य अंगों को उभरना तो दूर कुछ कहने तक का मौका ही नहीं मिलता। प्रधान नट के रूप में लगातार अपनी स्वयंप्रभा की प्रशंसा तब तक जारी रखता जब तक अगले के सिर में दर्द न हो। नाटक के बीच में नट, नटी सूत्रधार इत्यादि के परस्पर वार्तालाप का अवसर नाममात्र का ही छोड़ता है। कई बार तो नाटक का प्रस्ताव, वंश-वर्णन आदि विषय शून्य में विलीन होकर रह जाते हैं।

   उनका बोलना लगातार जारी था। एक जिम्मेदार श्रोता के रूप में हम भी रसास्वादन में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। बोले-महोदय प्रासंगिक ‘इतिवृत्त’  के माहिर हैं। सो इतिवृत्त के प्रधान नायक की जिम्मेदारी भी इन्हीं के कंधे पर रहती है। अवस्थानुरुप अनुकरण या स्वांग ‘अभिनय’ है। इसमें वे आंगिक, वाचिक, आहार्य और सात्विक रूप का ये भरपूर इस्तेमाल करते है। नाटक में बीज, बिंदु, पताका, प्रकरी और कार्य इन पांचों के द्वारा प्रयोजन सिद्धि इनके नाटक से पूरी हो ही जाती है।

मैंने कहा-ये तो ठीक है पर अब आगे क्या होगा। बड़े-बड़े नेता, मंत्री भी उसके समर्थन में बोल रहे हैं। बोले-लिखवा लो, छोरा पक्का राज्यसभा में जाएगा। मैंने कहा-राजनेता वाला कोई गुण तो उसमें है ही नहीं। बोले-गुणों से तो भरा पड़ा है। पक्का मुंहफट है। इसके सामने कोई दूसरा बोलकर तो देखे। इसकी तो आवाज ही सदन में गूंजने के लिए बनी है। मैंने कहा-कोई पार्टी इसे अपने साथ कैसे लेगी। ये तो नेताओं की बहुत बेइज्जती करता है। बोले-नेता बन जाएगा, तब सब छोड़ देगा। देखा नहीं, राजनीति का चोला धारण करते ही सब रंग बदल जाते हैं। ये भी बदल लेगा। मैंने कहा-तो फिर ये समर्थन और विरोध का क्या चक्कर है। बोले-समर्थन करने वाले इसे अपनी टोली में शामिल करना चाहते हैं। विरोध वालों की मंशा है कि ये चुप्पी साध ले। 

  मैंने कहा-जरूरी तो नहीं कि वो राजनीति में आए। वो बोले- चोट खाया शेर है। ये क्या करेगा, सिर्फ यही जानता है। हालातों को देखते हुए इसकी सम्भावना ज्यादा ही है। कुछ भी हो सकता है। पर ये पक्का तय है कि द ग्रेट पॉलीटिकल ड्रामे का सुपर परफॉर्मर यही बनेगा। यह कहकर वो तो निकल गए। मेरे साथ आप भी सोचिए कि आगे क्या होगा। ये तो अभी भविष्य के गर्भ में है पर रामलाल जी की बात भी दरकिनार करने वाली नहीं है।

(नोट:लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं है)

लेखक:

सुशील कुमार ‘नवीन’

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद है।

96717-26237

photo : google
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Last Updated on November 7, 2020 by dmrekharani

  • सुशील कुमार 'नवीन'
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