उत्कृष्ट रचनाकार भारतेंदु ने ‘स्वर्ग में विचार सभा का आयोजन‘ लिखा था और निकृष्ट कोटि का रचनाकार मैं, जनमेजय ‘ स्वर्ग के शौचालय में हिंदी ’ लिखता हूं। शौचालय के नाम पर नाक पर रुमाल मत लाएं। आज के शौचालय कम से कम भारतीय राजनीति से कम दुर्गंध छोड़ते हैं। शौचालय अध्ययन कक्ष हो गए हैं। कंबोट पर बैठकर हर भाषा का अध्ययन होता है तो बेचारी हिंदी का क्या कसूर की उसका न हो! हिंदी को पिछड़ा मत करें, उसे आरक्षण की आवश्यक्ता नहीं है, उसे आधुनिक करें। और मैं तो विदेशी धरती के स्वर्ग मंे स्थित एक शौचालय में, हिंदी के सम्मान पर प्रकाश डाल रहा हूं, अंधेरा नहीं।
हुआ यूं कि..। पत्नी न,े मुझसे, मंत्रीमंडल में स्थान कब मिलेगा टाईप, जिज्ञासा व्यक्त की – कब ले जा रहे हो धरती पर स्वर्ग दिखानें ?’
वैसे तो भव सागर पार करते ही जीव स्वर्गवासी हो जाता है। पर मेरी पत्नी बिना भवसागर पार किए धरती पर स्वर्ग देखना चाहती थी।
मेरी पत्नी टू इन वन है- एकमात्र पत्नी और प्रेयसी। वह इस चतुराई से अपनी भूमिका बदलती है कि मुझे पता ही नहीं चलता कि कब वह प्रेमिका है और कब पत्नी। जैसे आपको पता नहीं चलता कि आपकी झोपड़ी में, आप ही की थाली में खाने वाला कब उसमें छेद कर देता और आपका बहुमूल्य वोट उसकी जेब में चला जाता है। आप किसान बन जाते हैं।
मैंने कहा – डर डर के स्वर्ग देखने में क्या आंनद! जब भी कश्मीर जाने की सोचते हैं स्वर्ग में कर्फयू लग जाता है।
– तो विदेश वाला स्वर्ग दिखा दो। शर्माईन स्वीट्जरलैंड हो कर आई है।
– शर्मा कस्टम में काम करता है और मैं हूं एक खालिस मास्टर। मेरी औकात नहीं है।
– औकात तो बनानी पड़ती है, बैंक से लोन ले लो। वो तो उधार देने को उधार खाए बैठे हैं।
– मैं कोई माल्या नहीं हूं …
-गरीबो को घर के लिए मिलता है
– यह बेईमानी होगी।
– बिना बेईमानी के औकात नहीं बनती, और तुम मेरी इतनी-सी इच्छा …
इतनी सी इच्छा के लिए मैंने बैंक लोन की प्रक्रिया निभाई और प्रेयसी ने शर्माईन से स्विटजरलैंड के क्रैश कोर्स की।
पत्नी बोली – पहले हम माउंट टिटलिस चलेंगें।
– वहां क्या खास है ?
– दस हजार फुट की उंचाई पर दिल वाले दुलहनिया ले जाएगी की शूटिंग हुई थी। शाहरुख और काजोल का कट आउट है। हम दोनों वहां पोज बनाकर फोटो खिचवाएंगे…’’ उसने मेरी आंखों में प्रेयसी बन झांका और कंधे पर सर रख दिया।
मैंने पति बन झटका और बोला -तुम धरती पर स्वर्ग देखना चाहती हो या स्वर्ग में दिलवाले … तुम स्विटजरलैंड जाना चाहती हो या मुंबईलैंड…
– वो सब कुछ नहीं, जो मैं कहूंगी वही होगा।
हुआ भी वही। मेरे पास स्विस बैंक में एकाउंट तो नहीं है पर मेरे पास स्विस रेल पास था। हम सबसे पहले माउंट टिटलिस पहुंचे। मेरी प्रेयसी ने वह सब कुछ किया जिसकी ट्रेनिंग वह शर्माईन से लेकर आई थी। उसने ट्रेनिंग ली थी इसलिए उसे चारों ओर स्वर्ग दिखाई दे रहा था। मैंने बैंक से लोन लिया था, मुझे स्वर्ग के साथ नर्क भी दिखाई दे रहा था।
बढ़ती ठंड ने विवश किया कि हम दस हजार फीट पर शौचालय का प्रयोग करें। पत्नी प्रयोग कर बाहर आई तो उसके चेहरे पर संतोष नहीं कुटिल मुस्कान थी। मैंने जिज्ञासा प्रकट की तो बोली- अंदर जाओ, खुद देख लो कि संडास में तुम्हारी हिंदी…
मैं देखकर आया, बोला ‘ वर्तनी की भयंकर अशुद्धि है- शौचालय को शोचालय लिखा है। पर दस हजार फीट पर स्वर्ग जैसी विदेशी धरती पर हिंदी, गर्व होता है..
– विदेशी संडास में हिंदी को देखकर गर्व हो रहा है।
– क्या संडास संडास कह रही हो… संस्कृत की हो, संभ्रांत शब्द का प्रयोग करो।
– मानते हो न कि संस्कृत हिंदी से अधिक संभ्रांत है।
– मानता हूं मेरी मां, मानता हूं।
– मैं तुम्हारी पत्नी और प्रेयसी हूं, मां नहीं …
– सांसारिक रिश्ते में पत्नी हो पर भाषाई रिश्ते में मां हो। संस्कृत हिंदी की मां ही है ….
– मैं कुछ भी हूं यहां तुम्हारी हिंदी शौचालय में है।
– वर्तनी की एक भूल क्या हो गई… शौचालय को शोचालय लिख दिया तो तुमने हिंदी को शौचालय में बैठा दिया।
-हिंदी के मास्टर हो न, वर्तनी पर गए, मूल चिंता पर नहीं। यह पूरी भारतीय मानसिकता पर चोट है। ध्यान से पढ़ा, क्या लिखा है? लिखा है- कृपया एक स्वच्छ हालत में शोचालय छोड़ें।’ तुम्हें यहां पूरे टिटलिस में कहीं और हिंदी दिखाई दी ? कहीं स्वागत लिखा दिखा। दिल वाले दुलहनियां भी रोमन में लिखा है। स्विटजरलैंड में जर्मन, फ्रेंच, इटेलियन और रोमांश राष्ट्रीय भाषाएं हैं, इनमें से किसी में लिखा है?
मैंने व्यंग्य करते हुए कहा – आंख की अंधी नाम की नयनसुख, वहां अंग्रेजी में भी लिखा है – प्लीज लीव दी टॉयलेट इन ए क्लीन कंडीशन। मतलब …
पत्नी ने व्यंग्योत्तर देते हुए कहा – मतलब यह कि कोल्हू के बैल,वे जानते हैं कि गैर हिंदी वाले भारतीयों की ‘मातृभाषा’ अंग्रेजी है। वैसे भी हिंदी वाला विदेश में कब्जीयुक्त अंगे्रजी बोलना सम्मानजनक समझता है। यहां सीधे -सीधे अंगे्रजी और हिंदी में समझाया गया है कि तुम गंदगी फैलाउ हो, अपनी गंदगी कृपया यहां न बिखेरना। कंबोट में बैठने का तरीका भी हिंदी और अंगे्रजी में लिखा है।
तभी बर्फ गिरने लगी। मैंने प्रार्थना की कि किसी तरह इतनी बर्फ पड़े कि शौचालय उसमें दब कर खो जाए।पर जहां बर्फ नहीं पड़ती और वहां ऐसा शौचालय हुआ तो…! मैं सोच में पड़ गया और पत्नी प्रेयसी बन बर्फ के गोले मुझपर दागने लगी।
Last Updated on November 20, 2020 by srijanaustralia
- प्रेम जनमेजय
- संपादक
- व्यंग्य यात्रा
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- पश्चिम विहार, नई दिल्ली