सामयिक लेख: शब्द अनमोल
सुशील कुमार ‘नवीन’
दुनिया जानती है हम हरियाणावाले हर क्षण हर व्यक्ति वस्तु और स्थान में ‘संज्ञा’ कम ‘स्वाद’ ज्यादा ढूंढते हैं। ‘सर्वनाम’ शब्दों का प्रयोग करना भी कोई हमसे सीखे। और उनकी विशेषता बताने वाले ‘विशेषण’ शब्दों के प्रयोग के क्या कहने। वैसे हमें ‘प्रविशेषण’ शब्दों में भी महारत हासिल है पर हम उनकी जगह लठमार कहावत (देसी बोल) का प्रयोग करना ज्यादा सहज महसूस करते हैं। ‘सन्धि,संधि-विच्छेद, समास विग्रह’ सब हमें आता है। आता नही तो बस घुमा-फिराकर बोलना। मुंहफट है जो बोलना हो सीधा बोल देते हैं।इस पर चाहे कोई नाराज हो, तो हो। हमारा तो यही स्टाइल है और यही टशन। आप भी सोच रहे होंगे कि आज न तो हरियाणा दिवस है और न ही ही हरियाणा से जुड़ा कोई प्रसंग। फिर आज हम ‘हरियाणा पुराण’ क्यों सुनाने बैठ गए। थोड़ा इंतजार कीजिए, सब समझ मे आ जायेगा। उससे पहले आप आज हरियाणवीं चुटकुले सुनें।
हरियाणा में कोई एक व्यक्ति किसी काम के सिलसिले में आया हुआ था। सूटेड-बूटेड वह सज्जन पुरुष चौराहे के पास की एक दुकान पर कुछ देर धूम्रपान करने को रूक गया। इसी दौरान उस रास्ते से एक शवयात्रा का आना हो गया। दुकानदार ने फौरन दुकान का शटर नीचे किया और दोनों हाथ जोड़कर खड़ा हो गया। शवयात्रा निकलने के बाद उस सज्जन पुरुष ने दुकानदार से कहा-कोई मर गया दिखता है। दुकानदार ने सहज भाव से उतर दिया-ना जी भाई साहब। ये आदमी तो जिंदा है। इसे मरने में बड़ा ‘स्वाद’ आता है। इसलिये हफ्ते-दस दिन में ये लोग एक बार इसे ऐसे ही श्मशान घाट तक ले जाते हैं और वहां के दर्शन कराकर घर वापिस ले आते हैं। सज्जन पुरुष बोला-ये क्या बात है। मरने का भी कोई ‘स्वाद’ होता है। आप भी अच्छा मजाक कर रहे हो। दुकानदार बोला-शुरुआत किसने की थी। तुम्हारी आंखें फूटी हुई है क्या। जो सब कुछ देखकर जानकर ऐसी बात कर रहे हो। शवयात्रा तो मरने के बाद ही निकलती है, जिंदा की थोड़े ही। सज्जन पुरुष बिना कुछ कहे चुपचाप वहां से निकल गए।
इसी तरह आधी रात को एक शहरी युवक ने अपने हरियाणवीं मित्र को फोन करने की गलती कर दी । हरियाणवीं मित्र गहरी नींद में सोया हुआ था। आधी रात को फोन की घण्टी बजने से उसे बड़ा गुस्सा आया। नींद में फोन उठाते ही बोला- किसका ‘बाछडु’ खूंटे पाडकै भाजग्या, किसकै घर म्ह ‘आग लाग गी ‘। जो आधी रात नै ‘नींद का मटियामेट’ कर दिया। इस तरह के सम्बोधन से शहरी सकपका सा गया। बात को बदलते हुए बोला-क्या बात सोए पड़े थे क्या। हरियाणवीं बोला-ना, भाई ‘सोण का ड्रामा’ कर रहया था।मैं तो तेरे ए फोन की ‘उकस-उकस’ की बाट देखण लाग रहया था। बोल, इब किसका घर फूंकना सै। किसकी हुक्के की चिलम फोड़नी सै। मित्र से कुछ बोलते नहीं बन रहा था। हिम्मत कर के बोला-यार, आज तुम्हारी याद आ गई। इसलिए फोन मिला लिया। हरियाणवीं बोला-मैं कै हेमामालिनी सूं, जो बसन्ती बन गब्बरसिंह के आगे डांस करया करूं। या विद्या बालन सूं। जो ‘तुम्हारी सुलु’ बन सबका अपनी मीठी बाता तै मन बहलाया करै। शहरी बोला-यार एक पत्रिका के लिए लेख लिख रहा था। आजकल एक शब्द ‘ साडनफ्रोइडा ‘ बड़ा ट्रेंड में चल रहा है। तुम लोगों के शब्द सबके सीधे समझ आ जाते हैं। इसलिये उसका हरियाणवीं रुपांतरण चाहिए था।
हरियाणा और हरियाणवीं के सम्मान की बात पर अब जनाब का मूड बदल गया। बोला- यो तो वो ए शब्द है ना, जो आपरले याड़ी ट्रम्प के साथ ट्रेंड में चल रहया सै। सुना है 50 हजार से भी ज्यादा लोग शब्द को सर्च कर चुके हैं। बोल, सीधा अर्थ बताऊं कि समझाऊं। शहरी भी कम नहीं था। बोला-समझा ही दो। हरियाणवीं बोला- हिंदी में तो इसका अर्थ ‘दूसरों की परेशानी में खुशी ढूंढना’ है। हरियाणवीं में इसे ‘ स्वादु’ कह सकते हैं। यो ट्रम्प म्हारे जैसा ही है। सारी अमरीका कोरोना के चक्कर में मरण की राह चाल रहयी सै। अर यो बैरी खुले सांड ज्यूं घूमदा फिरै था। इसने इसे म्ह ‘स्वाद’ आ रहया था। यो तो वोये आदमी सै। जो दूसरा के घरा म्ह आग लागी देख कै उस नै बुझाने की जगहा खड़े-खड़े स्वाद लिए जाया करे। वा ए आग थोड़ी देर में इसका भी घर फूंकगी। लापरवाही में पति-पत्नी,स्टाफ सब कोरोना के फेर में आ लिए।
इतने शानदार तरीके से ‘ साडनफ्रोइडा’ शब्द की विवेचना पर युवक मित्र अपनी हंसी नहीं रोक पाया। बोला-मान गए गुरू । ‘स्वाद’ लेने का आप लोग कोई मौका नहीं छोड़ते। वाकयी आप लोग पूरे ‘ साडनफ्रोइडा ‘ मेरा मतलब ‘स्वादु’ हो। अच्छा भाई ‘स्वाद भरी’ राम-राम। यह कहकर उसने फोन काट दिया। अब हमारे पास भी दोबारा सोने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। सो चादर से मुंह ढंक फिर गहरी नींद में सो गए।
(नोट- लेख मात्र मनोरंजन के लिए है। इसे किसी संदर्भ से जोड़ अपने दिमाग का दही न करें।
लेखक:
सुशील कुमार ‘नवीन’
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और शिक्षाविद हैं।
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Last Updated on October 22, 2020 by adminsrijansansar