*वृद्ध जनों की सामाजिक एवं पारिवारिक समस्यायें*
डा० असफिया मज़हर(शिक्षिका)
वर्तमान युग मे समय एवं धन दो वस्तुएं हैं, जो समस्त मानवीय एवं सामाजिक संबंधों एवं व्यवहारों का निर्धारण करती है। सम्पूर्ण समाज की मन स्थिति को प्रभावित करती है। पुनः चूंकि आज का युग बाजारवाद, उपभोक्तावाद, और दिखावटी जीवन का युग है अतः कोरे सभ्यतावाद के इस विचार ने हमें स्वस्थ मानवीय जीवन से परे मानव हीनता से ओत-प्रोत कर दिया है। पारिवारिक, सामाजिक एवम धार्मिक बंधनों की क्षीणता ने आज हमारे पैदा करने वाले एवं परम् पूज्यनीय वृद्धों के समक्ष अनेक सामाजिक एवं पारिवारिक समस्याएं पैदा कर दी हैं।
झूठे अहंकार, स्टेटस स्थिति ओर और काम के बोझ के तले दबा आज का युवा बूढ़े माँ- बाप को बोझ समझने लगा है। यह उन्हें परिवार एवं भावनात्मक से दूर ओल्ड शेल्टर हाउस में भेजने से भी गुरेज नही करता। जिसके लिए जीवन जिया आज वे ही लावारिस और बेसहारा छोड़कर उनसे किनारा कर लेते हैं। समाज के सामने अपने बेटे की विदेशी नौकरी, रुतबा और मोटी तनख्वाह की झूठी तारीफें करते नहीं अघाते हमारे बुजुर्ग वास्तव में जिस असहनीय एकाकीपन एवं अपेक्षा के शिकार होते हैं, वह उन्हें अंदर ही अंदर खत्म करता रहता है। उनमें सांसे तो होती है जीवन नहीं। हमारे ग्रामीण वृद्ध जहां पैसे, देखभाल और बुनियादी सुविधाओं के अभाव से ग्रस्त होते हैं वहीं शहरी वृद्धजन एकाकीपन और मानवीय संवेदनहीनता से। आज हमारे वृद्धजन घर की बेकार वस्तु हो गए हैं, समाप्त होने की प्रतीक्षा उनकी अपनी पाली-पोषी संतानें करती हैं। परिवार में रहते हुए उन्हें परिवार के किसी मामले में, आर्थिक निर्गम में, विवाह एवं कृषि-व्यापार संबंधी मामले में एवं बड़ो की भूमिका में योगदान का कोई अवसर प्राप्त नहीं होता।
भारत में वर्ष 1951 की जनगणना के अनुसार 60 वर्ष के ऊपर के वृद्धों की संख्या जहाँ 2 करोड़ थी, वहीं यह 2001 में 7 करोड़ 66 लाख हो गई और 2003 में 9 करोड़ और जिसके सन 2016 तक सम्पूर्ण जनसंख्या का 10 प्रतिशत वृद्ध होंगे। हमारे वृद्धजन हमारे लिए पूज्यनीय ही नहीं, अपितु हमारी गौरवशाली धार्मिक, सांस्कृतिक- परंपराओं व भूतकाल के अनुभवों का खजाना समेटे एक धरोहर सदृश होते हैं। यही कारण है कि 1999 में वृद्धजनों के लिए एक “राष्ट्रीय नीति” एवं “राष्ट्रीय परिषद” का गठन किया गया, जो वृद्धजनों के बारे में नीतियाँ तथा कार्यक्रमों के विकास के लिए सरकार को सलाह एवं सहायता देती है। “वृद्धजनों के लिए संभावित कार्यक्रम” के अंतर्गत गैर सरकारी संगठनों की परियोजना लागत की 90 प्रतिशत वित्तीय सहायता की जाती है। “अन्नपूर्ण योजना” में निर्धनता रेखा के नीचे के वरिष्ठ नागरिकों को प्रतिशत 10 किलोग्राम अनाज नि:शुल्क दिए जाने का प्रावधान है। 22 फरवरी 2007 को संतान के दायित्व सम्बन्धी “द मेंटेनेंस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटीजन्स बिल” को वित्तीय मदद हेतु केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य बुढ़ापे की समुचित देखभाल, बच्चों से गुजारा भत्ते की प्राप्ति एवं वृद्धों की लम्बी एवं महंगी कानूनी लड़ाई से बचाव है। इसीक्रम में हिमांचल प्रदेश बुजुर्गों को कानूनी संरक्षण देने वाला देश का पहला राज्य बन गया है।
अब प्रश्न यह है कि उपरोक्त सैद्धान्तिक एवं कानूनी उपचार क्या वृद्धों की समस्याओं के समाधान में सक्षम होंगे, तो कह सकते हैं, पूर्णतः नहीं। हमारे वृद्ध हमारी नींव हैं, जब तक यह हर एक संतान न समझेगी, तो कोई कानून उसे उसके दायित्व बोध से परिचित नहीं करा सकता। क्या कानून द्वारा संतानों से पाये अधिकारों से वृद्ध उस मानवीय संवेदना को पा सकेंगें, जिसकी असहाय एवं एकांकी बुढ़ापे में सबसे अधिक आवश्यकता होती है। इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी वृद्धावस्था से पहले अपने बच्चों में ऐसे संस्कार डाले कि वे हमें याद रखें। यदि हमने स्टेटस, अतिशय धन लोलुयपता एवं भौतिक संवेदना के विचार उनमें डाले तो, वे आगे चलकर उन्ही वस्तुओं को महत्वपूर्ण समझते हुए हमें भी भूलने में गुरेज नहीं करेंगे और आज यही हो रहा है।
मूल्यपरक सांसारिक शिक्षा, धर्म केंद्रित जीवन एवं सादा जीवन उच्च विचार हमें बुजुर्गों के महत्व से परिचित करा सकते हैं।उपभोक्ता भौतिकवादी, तीव्र गतिमान इस युग में हमारे देश की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक जड़ें महान फलदायी सिद्ध हो सकती हैं। बेहतर होगा यदि हम पश्चिम के अंधानुकरण के बजाय संतोष एवं सद्चरित्रता को महत्व देंऔर अपनी जड़ों की मूल्यपरकता को समझें। अब हमें समझना भी चाहिए और समझना ही होगा वस्तुत: यही वृद्धजनों की समस्त समस्याओं का सबसे सफल मंत्र भी है।
लेखक
डा० असफिया मज़हर
प्रा० वि० कोंडरपुर, भिटौरा
जनपद- फतेहपुर, उत्तर प्रदेश
Last Updated on November 10, 2020 by navneetkshukla013
- डा० असफिया मज़हर
- प्रधानाध्यापक
- प्राथमिक विद्यालय कोंडरपुर, भिटौरा
- [email protected]
- जनपद- फतेहपुर