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तिलका छंद “युद्ध”

तिलका छंद “युद्ध”

गज अश्व सजे।
रण-भेरि बजे।।
रथ गर्ज हिले।
सब वीर खिले।।

ध्वज को फहरा।
रथ रौंद धरा।।
बढ़ते जब ही।
सिमटे सब ही।।

बरछे गरजे।
सब ही लरजे।।
जब बाण चले।
धरणी दहले।।

नभ नाद छुवा।
रण घोर हुवा।
रज खूब उड़े।
घन ज्यों उमड़े।।

तलवार चली।
धरती बदली।।
लहु धार बही।
भइ लाल मही।।

कट मुंड गए।
सब त्रस्त भए।।
धड़ नाच रहे।
अब हाथ गहे।।

शिव तांडव सा।
खलु दानव सा।।
यह युद्ध चला।
सब ही बदला।।

जब शाम ढ़ली।
चँडिका हँस ली।।
यह युद्ध रुका।
सब जाय चुका।।
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तिलका छंद विधान –

“सस” वर्ण धरे।
‘तिलका’ उभरे।।

“सस” = सगण सगण
(112 112),
दो-दो चरण तुकांत (6वर्ण प्रति चरण )
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया




*युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद जी की पुण्य तिथि पर एक कविता*

*युवाओं के प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद*
(स्वामी विवेकानंद जी के पुण्यतिथि पर समर्पित)
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रचयिता :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*

 

12जनवरी1863 कोलकाता धरती महान।
जन्मे जहाँ श्री स्वामी विवेकानंद जी महान।

कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार ईश्वर प्रदत्त।
इनका नाम है वास्तविक श्री नरेन्द्र नाथ दत्त।

स्वामी जी गुरु राम कृष्ण देव के प्यारे शिष्य।
सनातनधर्म संस्कृति आध्यात्म पूर्ण हैं शिष्य।

वेद वेदांतो का ज्ञानी पंडित प्रकाण्ड विद्वान।
30वर्ष के आयु में युवासाधु को बड़ा है ज्ञान।

11सितंबर1893 शिकागो अमेरिका प्रस्थान।
विश्व धर्म महासभा में सनातन धर्म को स्थान।

‘मेरे अमेरिकी प्रिय भाई व बहनों’ से संबोधन।
शांति एवं एकाग्र हुए विदेशी सुन ये संबोधन।

प्रतिनिधित्व कर भारत का दिए धर्म का ज्ञान।
भाषा शैली चरित्र उत्कृष्ट भाषण से पाये मान।

महासभा में वेदधर्म भाषण सुने तालियाँ गूँजी।
स्वामी जी ऐसे थे ज्ञानी भारत की जो हैं पूँजी।

स्वामी का आध्यात्मिकता से पूर्ण वेदांत दर्शन।
योरोप के हर देश में बना आजभी है आकर्षण।

श्री रामकृष्ण मिशन ये स्थापित किये हैं स्वामी।
युवाओं के हैं प्रेरणा स्रोत ये विवेकानन्द स्वामी।

उठो, जागो, स्वयं जाग कर औरों को जगाओ।
कहते थे अपने मनुष्य जन्म को सफल बनाओ।

तब तक नहीं रुको चाहे जितनी भी बाधा आये।
जब तक जीवन में पूर्ण लक्ष्य प्राप्त ना हो जाये।

स्वामीजी के ओजस्वी व्याख्यान हैं विश्व प्रसिद्ध।
ज्ञानवर्धक सारगर्भित वेद वेदांत दर्शन है प्रसिद्ध।

ध्यान योग में करने में भी ये स्वामी जी रहे समर्थ।
ध्यानावस्था में अपने ब्रह्मरंध्र को भेदने में समर्थ।

महासमाधि को प्राप्त कर लिया एवं सिधारे स्वर्ग।
4जुलाई1902 को 39वर्ष के अल्प आयु में स्वर्ग।

शत शत नमन एवं वन्दन है स्वामी जी श्रद्धांजलि।
कोटि कोटि नमन आप को समर्पित है पुष्पांजलि।

 

रचियता :
*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
संपर्क : 9415350596




*वैश्विक आध्यात्मिक गुरु-स्वामी विवेकानंद जी की पुण्य तिथि पर एक लेख*

*वैश्विक आध्यात्मिक गुरु-स्वामी विवेकानन्द*
(पुण्यात्मा स्वामी विवेकानंद जी की पुण्य तिथि पर एक लेख)
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लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

वेद वेदांतों के प्रकाण्ड विद्वान और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु विश्व प्रसिद्ध स्वामी विवेकानन्द जी का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता के एक कुलीन बंगाली कायस्थ परिवार में हुआ था। स्वामी विवेकानंद जी का वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था।उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में 11 सितंबर 1893 में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था। भारत के धर्म संस्कृति, आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और योरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद जी के उत्कृष्ट सम्मोहनीय भाषण के द्वारा ही पहुँचा। उन्होंने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना किया था,जो आज भी अपना काम कर रहा है। उनके गुरु राम कृष्ण देव थे। वे अपने गुरु से बहुत प्रभावित थे। स्वामी जी अपने गुरु के एक विद्वान, सुयोग्य,सदाचारी,परमप्रिय व महान शिष्य थे। स्वामी जी ने अपने गुरु से यह भी सीखा कि सारे जीवों में स्वयं परमात्मा का वाश होता है,उसी का
अस्तित्व है। इस लिए मानव के रूप में जन्मे हुए जो मनुष्य दूसरे जरुरतमंदों की मदद या सेवा करते है तो इसके द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है।

अपने गुरु रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने बड़े पैमाने पर भारतीय उपमहाद्वीप का सघनतम दौरा किया और ब्रिटिश भारत में मौजूदा विभिन्न स्थितियों-परिस्थितियों का प्रत्यक्ष पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया। इसके बाद 30 वर्ष की आयु में विश्व धर्म संसद 1893 में भारत के हिन्दू धर्म-सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व करने संयुक्त राज्य अमेरिका के शहर शिकागो के लिए प्रस्थान किया।

शिकागो के विश्व धर्म सम्मलेन में बोलने के लिए विवेकानन्द जी को आयोजकों द्वारा मात्र 2 मिनट का ही समय दिया गया था। स्वामी जी ने सनातन धर्म पर अपने भाषण की शुरुआत करते इसके पहले महासभा में उपस्थित विद्वानों और जन समूह को अपने संबोधन में “मेरे अमेरिकी प्रिय भाई एवं बहनों” कह कर सस्नेह, सहृदयतापूर्ण, आदरपूर्वक संबोधन किया। स्वामी जी के इस प्रथम वाक्य ने ही वहाँ उपस्थित सभी लोगों का दिल जीत लिया था। अपने भाषण के द्वारा हिन्दू और सनातन धर्म को विश्व में सार्वभौमिक पहचान दिलवायी। स्वामी विवेकानंद जी ने संयुक्त राज्य अमेरिका,इंग्लैण्ड और यूरोप में हिन्दू दर्शन के सिद्धांतों का वृहद् प्रचार प्रसार किया और कई निजी तथा सार्वजनिक व्याख्यानों का आयोजन किया।
भारत में विवेकानंद जी को एक देश भक्त युवा सन्यासी के रूप में माना जाना जाता है और उनके जन्म दिवस 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यहाँ तक कि राष्ट्रीय युवा दिवस से एक सप्ताह तक 12 जनवरी से 18 जनवरी तक राष्ट्रीय युवा सप्ताह के रूप में बड़े हर्ष व उल्लास के साथ मनाया जाता है,जिसका समापन 19 जनवरी को किया जाता है।

*गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर ने एक बार कहा था कि* “यदि आप भारत को जानना चाहते हैं,तो स्वामी विवेकानंद जी को पढ़िए। उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पाएंगे,नकारात्मक कुछ भी नहीं।

*रोमां रोलां ने स्वामी जी के बारे में कहा था,उनके द्वितीय होने की कल्पना करना भी असंभव है।*वे जहाँ भी गए वहाँ सर्वप्रथम ही रहे।अद्वितीय ही रहे।*हर कोई उनमें अपने नेता का दिग्दर्शन करता था।स्वामी जी ईश्वर का एक प्रतिनिधि रूप थे। सब पर अपना प्रभुत्व प्राप्त कर लेना ही उनकी अपनी विशिष्टता थी।*

*हिमालय प्रदेश में एक बार एक अनजान यात्री स्वामी जी को देख ठिठक कर रुक गया,और आश्चर्यपूर्वक चिल्ला उठा ! “शिव”। यह तो कुछ ऐसा हुआ मानो उस व्यक्ति के आराध्य देव ने अपना स्वयं का नाम उसके माथे पर लिख दिया हो।*

स्वामी विवेकानंद जी केवल एक वेदांत और सनातन धर्मी सन्त ही नहीं,वह एक अग्रणी महान देशभक्त,प्रखर वक्ता,उत्कृष्ट लेखक,प्रेरक व्यक्ति,
उच्च विचारक के साथ ही साथ एक मानव प्रेमी भी थे।अमेरिका से लौट कर उन्होंने देश वासियों का आह्वान करते हुए कहा था”नया भारत निकल
पड़े मोची की दुकान से,भड़भूजें की भाड़ से,हाट से,बाजार से,कारखाने से,निकल पड़े झाड़ियों, जंगलों,पर्वतों,पहाड़ों से” और इस जनमानस पर स्वामी जी के पुकार का असर पड़ा उसने उत्तर दिया। जनता गर्व के साथ निकल पड़ी। महात्मा गांधी को आजादी की लड़ाई में जो जन समर्थन मिला वह वास्तव में देखा जाये तो विवेका नन्द के आह्वान का ही फल था। इस प्रकार देखा जाये तो स्वामी विवेकानंद जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के भी एक प्रमुख प्रेरणा के स्रोत बने। उनका विश्वास था भारतवर्ष धर्म एवं दर्शन की पुण्य भूमि है। यहीं
बड़े बड़े ऋषियों मुनियों व महात्माओं का जन्म हुआ। यही सन्यास एवं त्याग की भूमि है तथा यहीं
केवल यहीं आदि काल से लेकर आज तक मनुष्य के लिए जीवन के सर्वोच्च आदर्श एवं मुक्ति का द्वार खुला हुआ है। स्वामी विवेकानन्द के कथन-

*”उठो,जागो,स्वयं जाग कर औरों को जगाओ। अपने मनुष्य जन्म को सफल करो और तब तक नहीं रुको,जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये”*

उन्नीसवीं शताब्दी के आखिरी वर्षों में विवेकानन्द जी लगभग सशस्त्र या हिंसक क्रांति के जरिये भी देश को आजाद कराना चाह रहे थे,किन्तु उनको जल्द ही यह विश्वास भी हो गया था कि वर्तमान परिस्थितियाँ अभी उन इरादों के लिए परिपक्व नहीं हैं। इसके बाद ही स्वामी विवेकानन्द जी ने “एकला चलो” की नीति का पालन करते हुए एक
परिव्राजक के रूप में भारत और पूरी दुनिया को खंगाल डाला। उन्होंने कहा था मुझे बहुत से युवा सन्यासी चाहिए जो भारत के ग्रामों में फ़ैल कर देशवासियों की सेवा में खप जायें। यद्यपि कि उनका यह सपना पूरा नहीं हुआ। विवेकानन्द जी
पुरोहितवाद,धार्मिक आडम्बरों,कठमुल्लापन और
रूढ़िवादी विचारों के सख्त खिलाफ थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य के केन्द्र में रखकर ही आध्यात्मिक
चिंतन किया था। उनका हिन्दू धर्म अटपटा और लिजलिजा तथा वायवीय नहीं था। उन्होंने यह विद्रोही बयान दिया था कि इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे,दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी देवताओं की तरह मंदिरों में स्थापित कर दिया जाये और मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियां को हटा दिया जाये।
स्वामी विवेकानन्द जी का यह कालजयी आह्वान इक्कीसवीं सदी के पहले दशक के अन्त में एक बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा करता है। उनके इस आह्वान को सुनकर पूरे पुरोहित वर्ग की घिघ्घी बंध गयी थी। आज कोई दूसरा साधू तो क्या सरकारी मशीनरी भी किसी अवैध मंदिर की मूर्ति को हटाने का जोखिम नहीं उठा सकती। स्वामी जी के जीवन की अन्तर्लेय यही थी कि वे इस बात से आश्वस्त थे कि धरती की गोद में यदि ऐसा कोई देश है जिसने मनुष्य की हर तरह की बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिशें की है तो वह वास्तव में भारत ही है।
उन्होंने पुरोहितवाद,ब्राह्मणवाद,धार्मिक कर्मकांड और रूढ़ियों की खिल्ली भी उड़ाई और लगभग आक्रमणकारी भाषा में ऐसी विभिन्न विसंगतियों के खिलाफ युद्ध भी किया। उनकी दृष्टि में हिन्दू धर्म के सर्वश्रेष्ठ चिन्तकों के विचारों का निचोड़ पूरी दुनिया के लिए अब भी ईर्ष्या का विषय है।
स्वामी जी ने संकेत दिया था कि विदेशों में भौतिक समृद्धि तो है और उसकी भारत को जरुरत भी है लेकिन हमें कभी भी याचक नहीं बनना चाहिए। हमारे पास उससे ज्यादा बहुत कुछ
है जिसको हम पश्चिम को दे सकते हैं और वास्तव में पाश्चात्य देशों को उसकी नितान्त आवश्यकता भी है।
यह बात कहना स्वामी जी का अपने देश की धरोहर के लिए उनका बड़बोलापन या दम्भ नहीं था। यह एक वेदान्ती साधु की भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तटस्थ,वस्तुपूरक,आवश्यक और मूल्यगत आलोचना थी। बीसवीं सदी के इतिहास ने बाद में स्वामी जी की उसी बात पर अपनी मुहर लगाई। स्वामी जी के ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि सम्पूर्ण विश्व में है। जीवन के अंतिम दिन उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा “एक और विवेकानन्द चाहिए,यह समझने के लिए कि इस विवेकानन्द ने अब तक क्या किया है।” उनके शिष्यों के अनुसार जीवन के अंतिम दिन 4 जुलाई 1902 को भी उन्होंने अपनी ध्यान करने की दिनचर्या को नहीं बदला और प्रातः नित्य की भांति ही 2-3 घण्टे ध्यान योग किया और ध्यानावस्था में ही अपने ब्रह्मरंध्र को भेदकर महासमाधि ले ली। बेलूर में गंगा नदी के तट पर चन्दन की चिता पर उनकी अंत्येष्टि की गयी। इसी गंगा तट के दूसरी ओर उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस का सोलह वर्ष पूर्व अंतिम संस्कार हुआ था। उनके शिष्यों और अनुयायियों ने स्वामी जी की स्मृति में वहाँ एक मंदिर बनवाया और समूचे विश्व में विवेकानन्द जी व उनके गुरु रामकृष्ण परमहंस जी के विचारों और संदेशों को प्रचारित प्रसारित करने के लिए 130 से अधिक केन्द्रों की स्थापना किया,जो आज भी चल रहे हैं।
स्वामी जी के बारे में जितना भी लिखा जाय वह कम है। उनके अनेकों और भी दृष्टान्त और विचार हैं जो उनके दर्शन के बारे में हमें गहरी जानकारी देते हैं,किन्तु सभी संदेशों,वृतांतों का एक छोटे से लेख में वर्णन कर समाहित करना संभव नहीं हैं।
विवेकानन्द जी ऐसे महान व्यक्तित्व के पूज्यनीय स्वामी थे। आदर्श युवा साधु थे,वेदांत के प्रकाण्ड विद्वान,प्रखर वक्ता थे। ओजस्वी विचारक, धर्म व दर्शन के ज्ञाता एवं भारतवर्ष के गौरव थे।

स्वामी विवेकानंद जी की जीवनी यह बताती है कि स्वामी जी मात्र 39 वर्ष की ही अल्पायु में जो कार्य कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक हमारी आने वाली पीढ़ियों का भी मार्गदर्शन करती रहेंगी,तथा सदैव अनुकरणीय रहेगी।

स्वामी विवेकानन्द जी के पुण्य तिथि दिवस 4 जुलाई की इस पावन बेला पर मैं अपने हृदय के अनंत श्रद्धा पुष्प उन्हें सादर समर्पित कर शत शत नमन करता हूँ और उनके दिखाये मार्ग और दर्शन पर चलने का संकल्प लेता हूँ।

 

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
इंटरनेशनल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-नार्थ इंडिया
2020-21,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*मुँह नाक में टोपी व वैक्सीन ही है दवाई*

*मुँह नाक में टोपी व वैक्सीन ही है दवाई*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

लगाये रखनाअपने मुँह नाक की टोपी।
कहें जिसे मास्क भी लाइफ तब होगी।

कैसा दौर है आया कुछ समझ न आये।
नया वैरियंट गया नहीं है दूजा आ जाये।

गजब कोरोना ये आई मुश्किल बीमारी।
प्राकृतिक बिलकुल ये लगे नहीं बीमारी।

इंसान त्रस्त हो गया ऐसी है ये महामारी।
पढ़ाई लिखाई रोजगार जा रही है मारी।

प्रथम द्वितीय लहरों का खतरा है झेला।
तीसरी लहर की पुनः आरही अब बेला।

चाइना ने ऐसी की है जग से नाइंसाफी।
दुनिया में कहीं पाने लायक ना है माफ़ी।

कोरोना संक्रमण ने करोड़ों जानें ले लीं।
अर्थव्यवस्था लोगों से नौकरियाँ ले लीं।

कभी ब्लैक व्हाइट फंगसों से हैं परेशान।
कभी येलो ग्रीन फंगस कर रहा परेशान।

लगता नहीं साल दो साल अभी जायेगा।
बच्चों बूढों जवानों सबपर कहर ढायेगा।

वैक्सीन तो लगवा लो ही सब कोई भाई।
मुँह नाक में टोपी व वैक्सीन ही है दवाई।

लापरवाही छोड़ें भैया पड़ जायेगी भारी।
आफत में पड़ जायें गें जां पे होगी भारी।

कोरोना अभी गया नहीं अभी नहीं दवाई।
सतर्क रहें व सुरक्षित रहें किये रहें कड़ाई।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*स्वर लहरियों का सरगम ही संगीत*

*स्वर लहरियों का सरगम ही संगीत*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

मन की खिन्नता को ये प्रसन्न करे संगीत।
निराशा को आशा में बदलता है संगीत।

गीत सुन नृत्य करने को मन कहे संगीत।
बज रहा हो कहीं भी ध्यान खींचे संगीत।

सात सुरों के संगम से बनता कोई संगीत।
जीवन में बड़ा महत्व रखता मधुर संगीत।

शिवजी डमरू से निकालते सुन्दर संगीत।
माँ शारदा वीणा से निकालीं मधुर संगीत।

सरस्वती जिस कण्ठ विराजें गाता है गीत।
विद्यामाँ जिस कलम विराजें रचता है गीत।

स्वर लहरियों,वाद्य यंत्रों का मेल है संगीत।
अवसाद मिटा देता है ये सुनिये तो संगीत।

कल कल अविरल बहती सरिता में संगीत।
झर झर बहते झरना से निकले प्रिय संगीत।

कृष्ण के मुरली से निकले बड़ा मधुर संगीत।
शंख ध्वनि से निकलता सुमधुर प्रिय संगीत।

पक्षी के कलरव में वसा है कर्ण प्रिय संगीत।
जल तरंगों से है निकलता मनमोहक संगीत।

कोयल की कूक प्यारी कैसे निकाले संगीत।
पपीहे की टेर प्यारी क्या गजब होये संगीत।

गीत और संगीत का उत्सव घर घर होता है।
ढोल मंजीरा ढपली से लेडी संगीत होता है।

ख़ुशी का हर पर्व अधूरा यदि न बजे संगीत।
जीवन के सुख दुःख से जुड़ा रहा ये संगीत।

आपके अधरों से जो स्वर निकले वो संगीत।
हिन्दू के सोलह संस्कारों में रचा बसा संगीत।

संगीत के महारथियों के हर धुन में ये संगीत।
फिल्में ड्रामें नौटंकी राम-कृष्ण लीला संगीत।

झूलें थिरकें गायें बाथरूम सिंगर प्रिय संगीत।
मानव जीवन का पर्याय बन गया है ये संगीत।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*संस्कार बिना हर शिक्षा बेकार*

*संस्कार बिना हर शिक्षा बेकार*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

संस्कार एक कला है साथमें व्यक्ति का गहना।
जिसमें होता संस्कार भरा उसका क्या कहना।

जीवन में होता है सभी के पूरा सोलह संस्कार।
व्यक्तित्व वही निखरता जिस रग में है संस्कार।

मिलता नहीं दुकानों पर ना ही ये हाट बाजार।
माता-पिता परिवार से मिलता अच्छा संस्कार।

संस्कार ग्रहण करना चाहें तभी ये हैं आ सकते।
स्कूलों में भी गुरुजन-सहपाठी से भी पा सकते।

दया प्रेम स्नेह मदद अग्रज सम्मान करे संस्कार।
क्षमा विनम्रता अनुज प्यार आचरण है संस्कार।

ज्ञान और संस्कार ही हमें शीर्ष तक ले जाता है।
प्रतिभा सज्जनता सहनशीलता से सब पाता है।

खोयें कभी ना जीवन में ये निज गुण हैं संस्कार।
सफल व्यक्ति का आभूषण है यही एक संस्कार।

सुख-दुःख चाहे कोई भी हो याद रहे ये संस्कार।
चरित्र बनाता है अच्छा ये पाता लोगों का प्यार।

महिला का सम्मान करे उन्हें माँ बहन जैसे माने।
उच्च संस्कार का नेक प्रदर्शन है ये दुनिया जाने।

बच्चों में संस्कार ले आयें शिक्षा से भी जरुरी है।
शिक्षा-संस्कार से बढ़ कर कुछ भी ना जरुरी है।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*सर्वश्रेष्ठ हूँ मैं केवल शेष सभी बेकाम*

*सर्वश्रेष्ठ हूँ मैं केवल शेष सभी बेकाम*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

ये कहना कोई श्रेष्ठ नहीं है,मैं ही हूँ केवल सर्वश्रेष्ठ।
बिलकुल गलत धारणा है ये,बिलकुल नहीं यथेष्ट।

एक से एक ज्ञानी हैं जहाँ में,जिनके आगे हो फेल।
ये केवल है घमंड आप का,पटरी बिना चले न रेल।

रावण से ज्ञानी पंडित ना,कोई पृथ्वी पर आया है।
लेकिन अपने दुष्कर्मों का,वो भी फल तो पाया है।

मिल कर रहना प्रेम भाव से,ये सब से है अनमोल।
दुनिया याद सदा रखती है,सब के खट्टे मीठे बोल।

काम नहीं रुकता है किसी का,सब हो ही जाता है।
इस दुनिया में कुछ न मुश्किल,सब तो हो जाता है।

रब ने जब सांसें दी हैं तो,जीवन भी तो वही देगा।
उसने ही दी है यह सांसें,जब भी चाहे वो ले लेगा।

यहाँ कोई ऊँचा ना नीचा,नहीं कोई है अधिकारी।
सब का मालिक 1है केवल,बाकी सभी भिखारी।

कृष्णा ने भी तो दिया सदा है,बलदाऊ को मान।
तब क्यों लोग नहीं करते हैं,बड़ों का वो सम्मान।

किस घमण्ड में जीते हैं वो,किसका है अभिमान।
जहाँ पे हों सब ही ज्ञानी,ना बड़ा किसी का ज्ञान।

दर्द सभी का जो पहचाने,और उसका करे निदान।
इस दुनिया में वही बड़ा है,छोटे भी हो सकें महान।

छोड़ अहं को गले लगाता,मिल कर करता काम।
बनता भी हर काम उसी का,उसी का होता नाम।

यही रीति है इस दुनिया की,ऐसे ही होता है काम।
फिर क्यों खुद को श्रेष्ठ समझते,बाकी को बेकाम।

 

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायंस क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*हिमालयन अपडेट कानपुर-काव्य समीक्षा*

*हिमालयन अपडेट कानपुर-काव्य समीक्षा*
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समीक्षक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

कलमकार कोई भी हो वह तो अपनी लेखनी का सदैव ही धनी होता है। कवि कवियित्रियाँ और साहित्यकार अपने नित सुन्दर साहित्य सृजन से समाज को प्राचीनकाल से ही दर्पण दिखाने का काम करते चले आरहे हैं। साहित्य का समाज के विकास में बहुत बड़ा योगदान माना जाता रहा है।
हिन्दी साहित्य के योगदान की तो बात ही निराली रही है। हिन्दी साहित्य का भारतीय समाज में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। आज विदेशों में भी हिन्दी साहित्य संवृद्धि और विकास के लिए अनेकों संस्थायें कार्यरत हैं।

हमारे सम्मानित साहित्य मनीषियों ने अपने अपने उत्कृष्ट कविताओं और लेखों के सबल माध्यम से समय समय पर विभिन्न महत्वपूर्ण राष्ट्रीय, प्रान्तीय,स्थानीय विषयों के साथ ही साथ हमेशा महापुरुरुषों,त्योहारों,पर्वो,सामाजिक,सांस्कृतिक,और समसामयिक विषयों पर भी अपनी सशक्त कलम से अपने मनोभावों के शब्दों से पिरोते हुए
न सिर्फ समाज को एक आईना दिखाया है बल्कि
बहुत से लेख और कविताओं को इतिहास के पन्नों
में स्वर्णाक्षरों में अंकित कराते हुए उन्हें कालजयी भी बनाया है।

आज मेरे मन में विचार आया कि क्यों अपने इस काव्य ग्रुप *हिमालयन अपडेट-कानपुर* में प्रेषित विभिन्न सुधी,गुणी एवं निरंतर साहित्य सेवा में लगे हुए कवि/कवियित्रियों की प्रस्तुत रचनाओं की *समीक्षा* की जाये।

उसी क्रम में 24 जून 2021 को प्रेषित रचनाओं में जहाँ आदरणीय श्री सुधीर कुमार श्रीवास्तव-गोण्डा,उ.प्र. जी द्वारा प्रेषित ‘कसम’ शीर्षक से उनकी रचना में आज की वर्तमान कसम की स्थितियों का,जिसमे लोग कसम तो एक नहीं सौ सौ खाते रहते हैं किन्तु उसका मान नहीं रखते हैं। उसे तोड़ने पर ही आमादा रहते हैं,गिरगिट की तरह रंग बदलते रहते हैं। बहुत सुन्दर और कटु भावार्थ के साथ रचना को पंक्तिवद्ध किया गया है,वहीं आदरणीय श्री ओम प्रकाश श्रीवास्तव ‘ओम’ जी द्वारा माँ शारदा को ‘नमन’ करते हुए उनकी ही कृपा से साहित्य सृजन की बात अपनी सूक्ष्म रचना में बताते हुए अपनी किसी भी भूल के लिये सरस्वती माता से क्षमा की प्रार्थना का भाव प्रस्तुत किया है। यह पूर्णतः सच है कि हममें से कोई भी बिना विद्या वर दायिनी माँ की कृपा के कुछ भी करने-लिखने में समर्थ नहीं हो सकता है। माँ वीणा धरणी सरस्वती शारदा को शत शत नमन।

आदरणीया सुनीता मुखर्जी,गाजियाबाद-उ.प्र जी द्वारा प्रेषित रचना ‘आस्था’ के माध्यम से जीवन में सिर्फ अच्छे कर्म,दुर्गुणों से बचने,पर सेवा का भाव,
असहायों पर प्रभु कृपा,जीवन पथ से भटकने पर राह दिखाने की कामना के साथ स्वजनों की भ्रम की दीवार गिरा कर चारो ओर ख़ुशियाँ बिखेरने की प्रभु से ज्ञान और वरदान प्राप्त करने की प्रबल इच्छा का समावेश किया गया है,वहीं ‘ढलती शाम’
शीर्षक से लिखी कविता के माध्यम से जीवन की एक और शाम ढल जाने,चाहते हुए भी रवि के तेज में सुकून से और अधिक न रह पाने और रात के आगोश में जाने,कुछ पल का विश्राम पाने,नींद के साथ चाँद तारों में खो जाने एवं अपनी मंजिल पर पहुँच जाने की तृप्ति के साथ आदरणीया नंदिनी लहेजा,रायपुर(छत्तीसगढ़) ने अपना काव्य भाव प्रस्तुत किया है।

आदरणीय कवि विवेक अज्ञानी,गोण्डा,उ.प्र.ने भी
जहाँ अपनी रचना ‘कंप्यूटर के ज़माने’ में कोई किसी का न रहा का भाव प्रदर्शित किया है। सभी इस चमत्कारी मशीन में लोग इतना ज्यादा व्यस्त हो गए हैं कि किसी रिश्ते की कोई फ़िक्र ही नहीं रह गई है। माँ हो या बेटा या बेटे की भूख,माँ का ध्यान केवल कंप्यूटर पर है।बच्चा भी बड़ा होने पर माँ पर ध्यान नहीं देता। श्री कृष्ण और माँ यशोदा के प्यार जैसा क्यों समय नहीं आता। आज इस मोबाइल और कंप्यूटर ने प्रेम के सभी रिश्तों को अकेला कर दिया है,वहीं कविवर ओम प्रकाश द्वारा पुनः प्रेषित ‘एक मुक्तक’ के माध्यम से माया और काया के चक्कर तथा सांसारिक
चकाचौंध में दुनिया से संस्कार एवं आचरण का ह्रास हो रहा है,वह धूल खा रहा है मैं तो कहूँगा कि उसका नाश हो रहा है का बड़ा सुन्दर भाव प्रस्तुत किया है।

वरिष्ठ कवि एवं लेखक डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव,पी बी कालेज,प्रतापगढ़,उ.प्र. द्वारा प्रस्तुत रचना शीर्षक “निर्गुण ब्रह्म उपासक संत कबीर दास” के माध्यम से कबीर दास जी के जन्म,कर्म,सोच,अनपढ़ होते हुए भी दोहों के गा कर समाज की कड़ुई सच्चाई,रूढ़िवादी विचार धारा,जात-पांत,ऊँच-नीच और मुल्ला-पंडित के विचारों को उनके दोहों के अर्थ को काव्य रूप में पिरोते हुए कबीर के संयम,धर्म,साहस,संतोष धन पर अपनी रचना में भावों को बखूबी समावेशित किया है,वहीं आदरणीय कविवर अभिषेक मिश्रा, बहराइच,उ.प्र.द्वारा प्रेषित एक ग़ज़ल शीर्षक ‘एक प्रयास’ के माध्यम से फ़ना हो गए होते,इश्क में समझौता मगर नहीं आता,बिछड़ जाते कारवां से अच्छा है रास्ते में तेरा शहर नहीं आता। आज दो भाइयों के बीच की दरारें ऐसी गहरी हो गई हैं कि कोई एक दूसरे को देखना पसंद नहीं करता।
जिसके वादों पे एतबार किया बीमार का हाल भी पूछने नहीं आता,बरगदों के पेड़ क्या कटे अब तो दोपहर भी गांव में नहीं आता जैसे सुन्दर मनोभाव अपनी ग़ज़ल में पिरो कर प्रस्तुत किया है।

आदरणीया कवियित्री डॉ.निधि मिश्रा जी ने अपने कविता शीर्षक ‘घड़ी विपति की है घहराई’ के द्वारा जहाँ महामारी कोरोना के कारण उपजी विभिन्न समस्याओं,काम काज की बंदी,बेकारी, बेरोजगारी,रोग प्रसार और बच्चे,जवान तथा बूढों की जान पर बन आई आफत से दुःख में डूबे हुए सभी प्राणियों की रक्षा करने की दीननबंधु कृपानिधान से गुहार लगाते हुए उनके जीवन को बचाने का सुन्दर भाव प्रस्तुत किया गया है, वहीं
आदरणीय कविवर श्री सुधीर श्रीवास्तव द्वारा पुनः प्रेषित रचना शीर्षक ‘संत कबीर’ के माध्यम से कबीर को एक विचार धारा के रूप में बताया गया है। अन्धविश्वास,भेदभाव,छुआछूत के विरोधी, उनकी मनोभावना में निश्छलता,हिन्दू मुसलमान सब का उनके निशाने पर रहना,हर किसी को केवल ईश्वर की संतान मानना और अपने धुन का पक्का होना बताया है। कबीर को हिन्दू मुस्लिम सभी धर्मों के लोग उतना ही सम्मान देते हैं। आज वास्तव में कबीर अब कबीर नहीं बल्कि एक विचार धारा के रूप में स्थापित हो चुके हैं,आज उसी विचार धारा को जीवन में सभी को अपनाने की आवश्यकता है।

प्रस्तुत समीक्षा के लिए मैं आदरणीया प्रिय अर्चना शर्मा जी का हृदय से धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ एवं अपना आभार भी व्यक्त करता हूँ,जिन्होंने मुझे इस योग्य समझते हुए मुझसे अपना निवेदन करते हुए मुझे हिमालयन अपडेट कानपुर ग्रुप में प्रेषित दैनिक रचनाओं की समीक्षा करने का एक सुअवसर प्रदान किया।

इस प्रकार आज के कवियों,रचनाकारों एवं सभी साहित्यकारों की प्रस्तुत रचनाओं से हमें बहुत कुछ सदैव की भांति ही सीखने और समझने को मिला। सभी नवोदित रचनाकारों/सुधी मनीषियों को उनकी उत्कृष्ट रचनाओं और सुन्दर सृजन के लिए मेरी बहुत बहुत हार्दिक बधाई एवं मंगल शुभकामनाएं।

समीक्षक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*बढ़ती उम्र के साथ सुखी रहने को आदतों में बदलाव जरुरी*

*बढ़ती उम्र के साथ सुखी रहने को आदतों में बदलाव जरुरी*
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आलेख :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

प्रकृति का यह शाश्वत सत्य नियम है यदि ईश्वर कृपा बनी रहती है तो जो जन्म लिया है,वह वृद्धि करेगा,बढेगा,जवान होगा,अधेड़ होगा और अंत में एक दिन बूढा भी होगा। अपने को बढ़ती उम्र के साथ स्वीकारने और अपनी युवा उम्र की आदतों में आशातीत बदलाव लाने से यह हमें तनावमुक्त जीवन और ख़ुशियाँ प्रदान कर सकता है।

जीवन में हर उम्र एक अलग तरह की खूबसूरती और अपार ऊर्जा भरी उमंग लेकर आती है। आप भी उसका आनंद लीजिये। आप को बाल रंगने हैं तो रंगिये, वज़न कम करना है तो अवश्य करिये। मनचाहे कपड़े पहनने हैं तो वह भी आप पहनिये। संतुलित और सात्विक भोजन कीजिये किन्तु ये भी जरुरी है अब बच्चों की तरह खिलखिलाइये,
अच्छा सोचिये,अच्छा माहौल रखिये। प्रतिदिन
शीशे में दिखते हुए अपने वर्तमान अस्तित्व को भी जरूर स्वीकारिये।

संसार की कोई भी क्रीम आपको कभी गोरा नही बना सकती। कोई भी शैम्पू कभी बाल झड़ने से पूरी तरह नहीं रोक सकता, कोई भी तेल कभी पूरी तरह से प्राकृतिक बाल नहीं उगा सकता है।
कोई साबुन भी आपको बढ़ती उम्र में बच्चों जैसी स्किन कभी नही दे सकता है। चाहे वो लाइफ बॉय,पियर्स,डोव, या प्रॉक्टर गैम्बल ही क्यों न हो या फिर पतंजलि प्रॉडक्ट का हो सब अपने अपने सामान बेचने के लिए केवल आकर्षक विज्ञापन देते हैं और पब्लिक को कैसे भ्रमित कर अपना व्यवसाय बढ़ा सकते हैं,इस लिए ऐसा कुछ बड़े बड़े विज्ञापनों और प्रचार में बोलते हैं।

सौंदर्य तो एक प्रकृति प्रदत्त ईश्वर का दिया हुआ अनुपम उपहार है। ये सब कुदरती होता है। हमारी
उम्र बढ़ने पर त्वचा से लेकर बॉलों तक,आँखों से लेकर दाँतों तक मे बहुत बड़ा बदलाव आता है।
हम पुरानी मशीन को चुस्त दुरुस्त रख करके उसे बढ़िया चलाते तो रह सकते हैं,परन्तु उसे कभी भी नई मशीन जैसे नहीं कर सकते हैं। बढ़ती उम्र में निश्चित ही ऊर्जा और स्फूर्ति में तो कमी आनी ही आनी है। हम बुढ़ापे की ओर बढ़ रहे हैं,इसे सच को स्वीकार करना ही पड़ेगा।

सच तो ये है कि किसी टूथपेस्ट में ना तो नमक होता है और ना ही किसी मे नीम। किसी क्रीम में केसर भी नहीं होती,क्योंकि यदि 1-2 ग्राम असली केसर भी लेने जाइये तो उसका दाम सैकड़ों से लेकर हजारों रुपए तक में होता है,तब कहाँ से भला केसर साबुन में मिला कर बेजा जा सकता है। कोई बात नहीं अगर आपकी नाक मोटी है तो,
कोई बात नहीं अगर आपकी आँखें छोटी हैं तो,
कोई बात नहीं यदि आपके होंठों की संरचना टेढ़ा है या परफेक्ट शेप साइज में नही हैं। आप गोरे हैं या सांवले इसका भी कभी दुःख न करें। यह शरीर प्रभु का वरदान है। आप केवल यह सोचें कि फिर भी हम सुन्दर हैं। असली सुंदरता टी आप के इस वास्तविक व्यक्तित्व में छिपी है। आप का मन व दिल सुन्दर होना चाहिए। आप का व्यवहार सुन्दर है।अपनी सुंदरता को पहचानिये, उस पर ही गर्व कीजिये। दूसरों से कमेंट या वाह वाही लूटने के लिए सुंदर दिखने से ज्यादा ज़रूरी है,अपनी निज सुंदरता को महसूस करना।

आप जानते हैं कि हर बच्चा सुंदर क्यों दिखता है? क्योंकि वो छल कपट से कोसों दूर और निश्छल तथा मासूम होता है। उम्र के साथ बड़े होने पर जब हम छल व कपट से लिप्त जीवन जीने लगते हैं तो हम बचपन की हमारी पूरी मासूमियत खोते जाते हैं,और उस सुंदरता को पुनः पाने के लिए ही पैसे खर्च करके खरीदने का प्रयास करते हैं।

हमें अपने मन की सुंदरता और खूबसूरती पर ही ध्यान देना चाहिए। शारीरिक सुंदरता पर नहीं। बढ़ती उम्र के साथ हमारा पेट भी निकल गया है तो कोई बात नहीं उसके लिए हमें शर्माना ज़रूरी नहीं है। हम सभी का शरीर हमारी उम्र के साथ ये बदलता रहता है तो यह वज़न भी उसी हिसाब से घटता बढ़ता है उसे समझिये। इसके लिए चिंतित
होने की जरुरत नहीं है। आज सारा इंटरनेट और सोशल मीडिया तरह तरह के उपदेशों से भरा पड़ा रहता है। कोई कहता लिखता है यह खाओ,वह तो बिलकुल मत खाओ। ठंडा खाओ, गर्म पिओ,
कपाल भाती करो,सवेरे गर्म पानी में नींबू पिओ व
रात को सोते समय गर्म दूध पिओ।ज़ोर ज़ोर से सांस लो, लंबी सांस लो,दाहिने से सोइये बाएं से
उठिए। हरी साग सब्जी खाओ, दाल में प्रोटीन है,
दाल से क्रिएटिनिन बढ़ जायेगा।

हम अगर पूरे एक दिन के सारे उपदेशों को पढ़ने और पालन करने लगें तो पता चलेगा कि हमारी ज़िन्दगी ही बेकार है,न कुछ खाने को बचेगा और ना कुछ पीने को यहाँ तक कि जीने को भी कुछ नहीं बचेगा। आप डिप्रेस्ड हो जायेंगे। ये सारा ऑर्गेनिक फूड,एलोवेरा,करेला,मेथी,लौकी,हल्दी,
आँवला, हम विभिन्न कंपनियों के विज्ञापनों और टीवी तथा सोशल मीडिया पर आकर उपदेश देने वालों के चक्कर में फँसकर अपने दिमाग का दही कर लेते हैं। स्वस्थ होना रहना तो दूर हम स्वयं ही स्ट्रेस का शिकार हो जाते हैं।

अरे! भाई हर इंसान मरने के लिये ही तो जन्म भी लेता है। कभी ना कभी तो सभी को मरना ही है। अभी तक तो बाज़ार में अमृत बिकना शुरू ही नहीं हुआ है कि कोई खरीदे और उसे पीकर अमर
हो जाये। हर चीज़ आप सही व संतुलित मात्रा में खाइये। हर वो चीज़ थोड़ी थोड़ी जरूर खाइये जो आपको बहुतअच्छी लगती है। भोजन का संबंध मन से होता है और मन अच्छे भोजन से ही खुश रहता है। मन को मारकर कभी खुश नही रहा जा सकता। खुश नहीं रहेंगे तो शरीर भी स्वस्थ नहीं रह सकता। तनाव और अवसाद में रह सकते हैं।
इस लिए थोड़ा बहुत शारीरिक कार्य करते रहिए।
सुबह शाम में समय निकाल टहलने जरूर जाइये,
हल्की फुल्की कुछ कसरत भी करिये। अपने को किसी मन पसंद स्वस्थ कार्य में व्यस्त रहिये। खुश और मस्त रहिये। शरीर से ज्यादा अपने मन को पूरी तरह सुन्दर रखिये। अपने अचार विचार को भी सुन्दर रखिये। प्रकृति की अनुपम सुंदरता को निहारिये,उसका आनंद लीजिये। हमारा आपका यह शरीर और जीवन,माता-पिता और ईश्वर द्वारा दिया गया एक अनुपम उपहार है। हमें अपने उम्र के साथ प्राकृतिक जीवन जीने की जरुरत है। हमें बढ़ती उम्र के साथ अपनी आदतों में बदलाव लाने की जरुरत है,जिससे हम सभी स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकें। अपने जीवन का सम्पूर्ण आनंद बुढ़ापे में भी ले सकें।

 

लेखक :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
(शिक्षक,कवि,लेखक,समीक्षक एवं समाजसेवी)
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर
2021-22,एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596




*ईश्वर सब कुछ देख रहा है इसका भी ध्यान रखें*

*ईश्वर सब कुछ देख रहा है इसका भी ज्ञान रखें*
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रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.

 

ईश्वर ही की इस जग में सब से बड़ी सत्ता है,
उसके मर्जी बिना कभी हिलता नहीं पत्ता है।

मानव अबतक प्रकृति से बहुत है खेला खेल,
अब मानव रो रहा जब घर ही बन गया जेल।

इतनी विपदा एक साथ न और कभी थी आई,
भीषण गर्मी बर्फ बाढ़ तूफान कोरोना है छाई।

यह साल है ऐसा इसमें लास की नहीं भर पाई,
2020 में बच जायें यही है सबसे बड़ी कमाई।

दुनिया में धरती पर जब भी पाप बढ़ जाता है,
ऐसा ही कुछ ना कुछ फिर ईश्वर कर जाता है।

राम राम करते रहो और हाथों से सुन्दर काम,
नेकी ही केवल जायेगी साथ तुम्हारे उस धाम।

लदे हुये फल के पेड़ों से सीखो कैसे झुकना है,
अहम् काम न आयेगा तो काहे को अकड़ना है।

बहती नदियां क्या वे खुद अपना पानी पीती हैं,
प्यासों की प्यास बुझाने को वो जीवन जीती हैं।

परमारथ के वास्ते ही साधू ने धरी शरीर सदा,
सच्चे साधू ने धरती पर किये हैं उपकार सदा।

मानव जन्म मिला हमें कुछ दया धर्म तो करते,
दीन दुःखी के सेवा करते मानवता में ही रहते।

सब कुछ छोड़ सभी को परमधाम ही जाना है,
तब काहे की रार करें जब वापस नहीं आना है।

रहें प्यार से जीवन में औरों का भी ध्यान रखें,
ईश्वर सब कुछ देख रहाहै इसका भी ज्ञान रखें।

रचयिता :

*डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
वरिष्ठ प्रवक्ता-पी बी कालेज,प्रतापगढ़ सिटी,उ.प्र.
जिलाध्यक्ष
अखिल भारतीय कायस्थ महासभा,प्रतापगढ़,यूपी
इंटरनेशनल चीफ एग्जीक्यूटिव कोऑर्डिनेटर022
एलायन्स क्लब्स इंटरनेशनल,कोलकाता,प.बंगाल
संपर्क : 9415350596