मकर संक्रांति आई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें हैं जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं,
मन में नई मस्ती आई हैं
तन में भी चुस्ती आई हैं
गुलज़ार सभी अब बस्ती हैं
समान सभी तो हस्ती हैं
कोई ऊंच नीच दुनियाँ में
यह बात बताने आई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें हैं जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं ,
हर चेहरा हैं हँसता हँसता
फूल कली भी खिलता खिलता
तितली बाँगो में आई हैं
मचलती लेती अंगड़ाई हैं
भौरों को नहीं सुहाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं
निकलेंगे घरों से हम
तोड़ बंधनों को सब
जकड़ें हैं जिसमें सर्दी से
बर्फ़ शीत की गर्दी से
हटा तन से रजाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं ,
गुड़ तिल औऱ मूंगफली
दान पुण्य और मिला मिली
रंगे बिरंगे पतंगों का डोर
भरा आकाश का ओर छोर
बढतें रहना सबसें आगें
छोड़कर हर मुश्किल पाछें
कटें ना काँटे किसी के धागे
छोड़ भँवर में क़भी ना भागें
यह बात सबकों बतलाई हैं
मकर संक्रांति आई हैं
एक नई क्रांति लाई हैं ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश
Last Updated on January 14, 2021 by bmltwr
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