महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु प्रस्तुति-
नन्हीं का प्रश्न।
मैं तेरी नन्हीं सी गुड़िया
मैं झप्पी जादू की पुड़िया
कोख तिहारे मैं आई हूँ
लाखों सपने बन आयी हूँ।
चंदा सी शीतलता मुझमें
औ प्रभात की आभा मुझमें
तारों की छाँवों से चलकर
तेरी बनकर आयी हूँ।
तुमने मुझको शरण दिया है
कोख में अपने वरण किया है
रक्त कणों से सींचा है जब
खुशियां बन कर छाई हूँ।
अपने आने की खुशियां
जीवन में तेरे देखी है
मैंने सपनों की दुनिया
माँ नैनों में तेरे देखी है।
पर जाने क्यूँ मन डरता है
जब जग की बातें सुनती हूँ
कुछ शंकाएं मन में मेरे
माँ तुझसे मैं अब कहती हूँ।
कहते तो सब लोग यहां हैं
बेटा-बेटी एक यहां हैं
पर कुछ आंखों में मैंने
शंका के डोरे देखे हैं।
कुछ ऐसी खबरें हैं जिनको
सुनसुन कर मैं डरती हूँ
क्या दुनिया में आ पाऊंगी
यही सोच में रहती हूँ।
माँ तुम पापा से कहना
उनकी खुशियाँ बन जाऊंगी
जो भी बेटों से मिलता है
ज्यादा सम्मान दिलाऊंगी।
जीने का अधिकार मुझे है
मुझसे इसको मत छीनो
कुछ लोगों की बातों में पड़
मेरा जीवन मत छीनो।
माँ तेरे घर के कोने में
मैं कोयल बनकर कुहकुंगी
उपवन की खुशबू बनकर के
मैं कोने कोने महकुंगी।
वेद पुराण सभी ग्रन्थों ने
जब बेटी को सम्मान दिया
फिर कैसे इस दुनिया ने
ग्रन्थों का अपमान किया।
दुनिया में आने दो मुझको
इक बार जहाँ मैं देखूंगी
बेटी का कुसूर क्या आखिर
मैं सारे जग से पूछूँगी।
✍️©️अजय कुमार पाण्डेय
हैदराबाद
Last Updated on January 13, 2021 by ajaykpandey197494
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