ऐ मेरे वतन ——||
मैं आजाद हूँ,
मगर आज भी,
वक्त की तलहटी पर,
नजरें टिकाए बैठा हूँ
ऐ वतन तुझको मैं,
अपनी दुनिया बनाएं बैठा हूँ
अब दुश्मन न ताक सकेंगे
तेरी ओर कभी
जाने कबसे मैं उसकी तरफ,
अपनी नजरें गड़ाए बैठा हूँ
जानता हूँ अनगिनत,
शहीदों ने अपने लहू से
खेली होली है ऐ वतन,
उन्हीं के वास्ते तेरी खातिर
कफन, अपना अपने
हाथों से सजाए बैठा हूँ,
अब दूर से आवाज,
किसी की नहीं आती
धधकते शोलों से खौफ के,
उस गदर के मंजर में
ऐ मेरे वतन—-
तेरे रास्ते के शूल को मैं
अपनी फौलादी छाती पर फूल उगाए बैठा हूँ
मैं आजाद हूँ, मगर आज भी
वक्त की तलहटी पर,
आज भी नजरें टिकाए बैठा हूँ
सींच कर लहू से अपनी इस माटी को
गुलशन -गुलशन बनाए बैठा हूँ
मैं आजाद हूँ, मगर आज भी
वक्त की तलहटी पर,
आज भी नजरें टिकाए बैठा हूँ
मैं आजाद हूँ, मगर आज भी
डॉ कविता यादव
Last Updated on January 12, 2021 by drkavitayadav42
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