“देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता –देश की मिट्टी
देश की मिट्टी
अपने देश की मिट्टी की,
बात ही कुछ और हैं|
खेत खलिहानों में दमकते,
सरसों की फूलगियों पर
लहलहाते मदमाती बसंती,
बहारों का शोर कुछ और है|
सर्द हवाओं के संग–संग,
मचलते ये फूलों की डालियाँ
घेर लेती है अक्सर मुझे,
मेरे गाँव की अनगिनत पगडंडियाँ
दूर कहीं क्षितिज के अधरों पर,
मुसकाती, खिलखिलाती कलरव करती,
रह –रह कर, इतराती, बलखाती
मेरे देश की नदियों के
लहरों का शोर कुछ और है|
अपने देश की मिट्टी की,
बात ही कुछ और हैं|
धर्म संस्कृति और सभ्यता का
अनुपम पहचान लिए,
सोंधी-सोंधी खुशबू में सिमटी
नार-नवेली देश का अभिमान लिए,
उड़ते पक्षी कलरव करते
खुले गगन के छाँव तले,
वीरों की इस धरती पर
फिर आई नयी भोर है|
अपने देश की मिट्टी की,
बात ही कुछ और हैं|
अपने देश की मिट्टी की,
बात ही कुछ और हैं|
डॉ कविता यादव
Last Updated on January 12, 2021 by drkavitayadav42
- डॉ कविता यादव
- Yadav
- Teacher
- [email protected]
- 104/D Nandanvan Society, Near Abhilasha Chowkdi New sama Road Baroda Gujarat