न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

6 मैपलटन वे, टारनेट, विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from 6 Mapleton Way, Tarneit, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

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काव्य धारा
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काव्य धारा -12

राम तो जीवन मूल्यों का नामराम धर्म धैर्य का मान।।राम विशुद्ध सात्विक संस्कारराम राम से प्रणाम।।राम राम राम अभिशाप राम नाम ही आदि राम नामही अंत हर ह्रदय में राम

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काव्य धारा
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काव्य धारा -11

चलो आज हम राम को खोजे कहाँ हम आ गए खुदको खोजते भटकतेनगर की हर डगर पर तेरा नाम लिखा हैंतेरी अवनि का कण कण एक दर्पण के जैसा हैं।तेरी

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काव्य धारा
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काव्य संगत-10

चलो राम बताएं– चलो आज हम राम बताएंराम मर्यादा अपनाएँ।। राम रिश्ता मानवता कीअलख जगाएं।। प्रभु राम का समाज बनाएंमात पिता की आज्ञा सेवा स्वयं सिद्ध का राम बनाएं।। भाई

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काव्य धारा
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काव्य धारा -9

राम स्वयं को भक्त राम काकहते बड़ा मुश्किल हैभक्त राम का बन पाना।। राम तो मर्यादा पुरुषोत्तमकठिन है जिंदगी में मर्यादानिभा पाना।। पिता की आज्ञा से स्वीकाराराम ने वन में

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काव्य धारा
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काव्य सागर -8

——जग जननी माँ—– 10-जग जननी दुःख हरणी ,मंगल करनी तू तारणहारी तू सकल जगत संसार माँ।।दुष्ट विनासक, भय भव भंजकपल, प्रहर अविरल युग प्रवाह माँ।।जग जननी तू सकल जगत संसार

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काव्य धारा
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काव्य सागर-7

माँ आओ मेरे द्वार माईया पधारों घर द्वारेभक्तों का है इंतज़ारघर घर तेरा मंडप सजा हैमाईया के स्वागत का दिन रात।। माईया तेरे रूपों का संसारमाईया तू ही अवनि की

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काव्य धारा
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काव्य फहरा-7

भय भव भंजक कष्ट निवारिणी पाप नाशिनी माँजय जय जय दुर्गे सकल मनोरथदायनी माँ।। दुर्लभ ,सुगम शुभ मंगल करतीअंधकार की ज्योति माँ।जय जय जय दुर्गे सकल मनोरथ दायनी माँ।। आगम

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काव्य धारा
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काव्य सागर -6

जगत माँ जग जननी दुःख हरणी ,मंगल करनी तू तारणहारी तू सकल जगत संसार माँ।।दुष्ट विनासक, भय भव भंजकपल, प्रहर अविरल युग प्रवाह माँ।।जग जननी तू सकल जगत संसार माँ।।पाप

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काव्य धारा
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काव्य सागर-5

जय माँ जगदम्बा माँ जिसे बुलाती जाता माँ दरबार ,माँ कीज्योति जली है ,जग में है उजियार बोलोजय मात दी ।। बोले जाओ कदम कदम से बढ़ते जाओ माता ने

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काव्य धारा
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काव्य सागर-4

5– माँ तेरे चरणों मे जग तेरे चरणाें आया मेरी माँ जग तेरे शरणाें में आया मेरी माँ!! तेरे आँखो का दुलार माँ तेरी संतान, तेरे आँचल का प्यार माँ

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काव्य धारा
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काव्य धारा -3

जै जै जग जननी माँ— जग जननी ,सकल जगत संसार माँदुःख हरणी ,मंगल करनी ,तू तारणहार माँ जग जननी, सकल जगत संसार माँ।। दुष्ट विनासक, भय भव भंजकपल, प्रहर अविरल

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काव्य धारा
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काव्य सागर -2

जै मां काली जै जगदंबै जै माँ काली, जै जगदंबै जै माँ काली ,वीर भूमि भी आंचल तेरा तूं जग जननी जग रखवाली!! जै जगदंबै जै माँ काली, जै जगदंबै

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