न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

Category: काव्य धारा

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नई कविता
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किस रंग खेलू होली

दिल दुनियां के रंग अनेकोंकिस रंग खेलूं होलीमईया ओढे चुनरी रंग लालकेशरिया बैराग किस रंग खेलूं होली।।रंग हरा

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होलिका दहन

*होलिका दहन* हर साल मुझकों जलाने का अर्थ क्या हुआ ? सोच से अपनें मेरें जैसे सामर्थ सा

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होली

बस रंगों का त्योहार हैं होली और ढंगों का त्योहार हैं होली मिलजुल जाए आपस में सारे ऐसा

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अन्य काव्य विधाएं
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मौक्तिका (रोती मानवता)

मौक्तिका (रोती मानवता)2*14 (मात्रिक बहर)(पदांत ‘मानवता’, समांत ‘ओती’) खून बहानेवालों को पड़ जाता खून दिखाई,जो उनके हृदयों में

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ग़ज़ल
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चाहत का इश्क

लव है पैमाना ,नज़रे है मैख़ाना तेरी चाहत दुनियां कि तकदीर दीदार बीन पिए वहक जाना।। सावन की

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ग़ज़ल
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शराब कहते है

हलक को जलाती ,उतरती हलक में शराब कहते है।।लाख काँटों की खुशबू गुलाब कहते है।।छुपा हो चाँद जिसके

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ग़ज़ल
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अल्फ़ाज़

  जुबां तोल, मोल , बेमोल,अनमोल, बहारों के फूलों कि बारिश अल्फ़ाज़। तनहा इंसान का अफसोस हुजूम के

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काव्य धारा
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पानी

  मर जाता आँख का पानीइंशा शर्म से पानी पानी।आँखों से बहता नीर नज़र काआँसू पानी ही पानी।।

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नई कविता
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बलिदान दिवस और आज का युवा

युवा आम सभी होतेकुछ कर गुजरने की अभिलाषावाले विरले ही होते।।राष्ट्र समाज की चेतना जागरणपर मर मिटते वाले

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