न्यू मीडिया में हिन्दी भाषा, साहित्य एवं शोध को समर्पित अव्यावसायिक अकादमिक अभिक्रम

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

A Multidisciplinary Peer Reviewed International E-Journal Published from, Victoria, Australia

डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला

सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

Category: काव्य धारा

Categories

जैसे हबूब गया

  नवगीत-जैसे हबूब गया   सूरज निकला सुबह-सुबह शाम को डूब गया।   किरणों ने  दुनिया में धूप

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यातायात

  यातायात-नवगीत   यातायात मन में दु:ख-विषाद का चल रहा है।   जगह-जगह हो रही दुर्घटना है। हो

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हाईकु
rnbanyala

हाइकु

माँ हो कर ही जाना जा सकता है माँ का होना भी ।   काँधे पे पेट सिर

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कस्तूरी

कस्तूरी मेरी ‘कस्तूरी’ मुझे देती रही भटकन ……… उम्रभर जो मरा तो जाना कि मारा भी गया इसी

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नई कविता
sohalgurdeepsingh

मंदिर मस्जिद का बनना

मंदिर मस्जिद का बनना। दुनियां में सरेआम हुआ।। आदमी बन न सका बंदा। रब्ब यूं ही बदनाम हुआ।।

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तोटक छंद “विरह”

तोटक छंद “विरह” सब ओर छटा मनभावन है।अति मौसम आज सुहावन है।।चहुँ ओर नये सब रंग सजे।दृग देख

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तिलका छंद “युद्ध”

तिलका छंद “युद्ध” गज अश्व सजे।रण-भेरि बजे।।रथ गर्ज हिले।सब वीर खिले।। ध्वज को फहरा।रथ रौंद धरा।।बढ़ते जब ही।सिमटे

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नई कविता
shubhaagya

रश्मिरथी

जा रे जा,जिया घबराए ऐ लंबी काली यामिनी आ भी जा,देर भई रश्मिरथी मृदुल उषा कामिनी काली घटा

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