Category: काव्य धारा
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रोला छंद “शाम’
(रोला छंद) रवि को छिपता देख, शाम ने ली अँगड़ाई।रक्ताम्बर को धार, गगन में सजधज आई।।नृत्य करे उन्मुक्त,
May 27, 2021
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काव्य धारा
प्रिय मैं तुमसे भिन्न हूँ कहाँ
प्रिय मैं तुमसे भिन्न हूँ कहाँ (प्रत्येक प्रियतमा अपने प्रियतम की छवि होती है, अपने प्रियतम में सागर
May 25, 2021
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