
भक्ति सागर
शिवोहं शिवोहं शिवोहं चिता भस्म भूषित श्मसाना बसे हंम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।। अशुभ देवता मृत्यु उत्सव हमारा शुभोंह शुभोंह शुभोंह शुभोंह शिवोहं शिवोहं शिवोहं ।। भूत पिचास स्वान सृगाल
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
शिवोहं शिवोहं शिवोहं चिता भस्म भूषित श्मसाना बसे हंम शिवोहं शिवोहं शिवोहं।। अशुभ देवता मृत्यु उत्सव हमारा शुभोंह शुभोंह शुभोंह शुभोंह शिवोहं शिवोहं शिवोहं ।। भूत पिचास स्वान सृगाल
तपोवन शौर्य प्रखर निखर सूरज पूर्णिमा चन्द्र हलाहल विष भरा जहां मधुर मिठास अमृत जैसा।। ऊंचाई गौरी शंकर पर्वत गहराई समुद्र अंतर मन प्रशांत प्रतिदिन मंथन सागर जैसा।। राष्ट्र समाज
अनुष्ठान अनुष्ठान जीवन का चलता रहेशौम्य शांत संचारित संस्कारकरता रहे।। भ्रम अनिश्चय का अँधेरा हटेराष्ट्र समाज गौरव मान प्रकाशितहोता रहे।। जीवन कि तपस्या का पुण्य प्रतापप्रसाद युग युवा पीढ़ी का
जीवन का मौलिक मूल्य राष्ट्र जीवन यात्रा का एक अहम पड़ाव अविरल निर्मल निश्छल निरपेक्ष निर्विकार समाज राष्ट्र हित अनुष्ठान।। त्याग तपस्या सोच कर्म धर्म दायित्व बोध प्रखर निखर परिणाम।पल
जीवन का मौलिक मूल्य राष्ट्र जीवन यात्रा का एक अहम पड़ाव अविरल निर्मल निश्छल निरपेक्ष निर्विकार समाज राष्ट्र हित अनुष्ठान।। त्याग तपस्या सोच कर्म धर्म दायित्व बोध प्रखर निखर परिणाम।पल
साहित्य और समय समय प्रबाह परिस्थिति परिवेश वर्त्तमान की दृष्टि दिशा मार्ग है।। साहित्य भाव झरना झील नदियांसिंधु समागम नित्य निरंतता अक्षुण अक्षय उजियार है।। शब्द ओजस्वी ओज जन जनमन
हिन्दू नव वर्ष मनाए– चलो हिन्दू नव वर्ष मनाएआशाओं, विश्वास का उत्साह उमंग चाह प्रसंग केनए सुबह का अलख जगाएचलो हिन्दू नव वर्ष मनाए।। उत्कर्ष,हर्ष दुःख दर्द के बीते पलकि
आदि शक्ति अम्बे जगदम्बे आराधना खंड हे देवी माँ तू भय भव भंजक जगत कल्याणी दुष्टो की दुर्गा काली भक्तो की रखवाली शक्ति दे मुझे अपनी भक्ति का भाव भाग्य
हे माँ तू अवनि अवतारी पर्वत की बाला दुःख हरने वालीजग कल्याणी जय अम्बे जय जगदम्बे !! तू सीता सावित्री पार्वती विघ्नेश्वरी भुनेश्वरी बाघम्बरी चंडी चंडिका मनसा महिमा मनोकामना!! तू
अटूट विश्वास मंजिल को ढूंढ़ने सभी घर के तारे निकल पड़े आंखों मे जो इक ख्वाब है उसे पाने निकल चले गम की अँधेरी रातों में जलना होगा तुझे कांटो
वर्तमान समय मे नैतिक शिक्षा की अनिवार्यता क्यूँ जरुरी है ? हमारा देश अपनी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के कारण आज पूरे विश्व मे सिरमोैर बना हुआ है, किंतु कुछ
तुम क्या कहोगे मुझे? पहचान के लिए एक अदना सा शब्द तो दे ना सके और दे भी क्या सकते हो तुम मैं क्यों मांगू नाम थोड़े ही मांगा