महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता – एक युद्ध स्त्री को लेकर
द्रुत गति से बहती सरिता की कलकल है या विस्मय के होठों पर ठहरा पल है काश.. कभी आगे भी इसके जान सकूँ अभी तो.. नारी मेरे लिए कुतूहल है …
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