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महिला दिवस काव्य प्रतियोगिता हेतु कविता – एक युद्ध स्‍त्री को लेकर

द्रुत गति से

बहती सरिता की 

कलकल है

या विस्मय के

होठों पर ठहरा

पल है

काश.. कभी 

आगे भी इसके

जान सकूँ

अभी तो..

नारी मेरे लिए

कुतूहल है

***

जीवन नौका को

तिरछी धारों पर

चलना है

कठिन मोड़ है

दोनों पतवारों पर

बढ़ना है

याद रखो तुम

आज समय का

समादेश यह है

एक युद्ध स्‍त्री को लेकर

खुद से लड़ना है

 




देश्भक्ति काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु रणयोद्धा मेरे भारत के”

रणयौद्धा मेरे भारत के

 

ये रणयौद्धा मेरे भारत के
मेरे देश के सच्चे रखवाले
सीना तान खड़े सीमा पर
मेरे भारत के वीर मतवाले
अटल शिखर हिमालय की आन बान बढ़ाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

कभी ऊंची शिखर हिमचोटी पर
कभी नीचे दर्राओं में डटे रहते
कभी मैदान में रणकौशल करते
कभी शत्रु से लोहा लेते सीमा पर
वतन की मिट्टी का हर कण-कण चमकाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

प्रहरी डटे मेरे वतन के वीर
शीत लहर बर्फीले तूफानों में
कोई नहीं पराजित कर सकता
लोहा लेते रोज दुर्गम चट्टानों से
रणक्षेत्र में स्वयं, वीर रणकौशल बन जाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

कभी रेगिस्तान की तपती धूल पर
ऊंटों पर सवार हो शौर्य दिखाते हैं
कभी जल मार्ग पर नाविक बनकर
देश की सीमाओं को सुरक्षित बनाते हैं
दशों दिशाओं सच्चे वीर प्रहरी बन जाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

आपातकाल जब विपदा आती
तब सैन्यबल जीवनदाता बनजाते
हर विपदा में देश की रक्षा कर
जन धन, देश का मान बढ़ाते
विपत्ति में ये रणयोद्धा प्राणदाता बन जाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

भारतीय सेना स्वाभिमान हमारा
भारत के गौरव का अभिन्न अंग
जल थल नभ, दशों दिशाओं में
भारतीय सैन्य वीरता के रंग
यही वीरता के रंग खुशियां दिलाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

मुँह तोड़ शत्रु को देते जवाब
अपराजित रण वीर कहलाते हैं
सीना तान डटे हुए, सीमा पर
शत्रुओं को नाकों चने चबाते हैं
भारत के रणवीर, शत्रु के काल कहलाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

त्याग कर अपने अरमानों को
देशहित बलि- बलि जाते हैं
निस्वार्थ कर बलिदान, रणवीर
ओढ़ तिरंगा अंतिम विदाई पाते हैं
ऐसी शहादत का मोल,हम कभी न चुका पाते हैं
ये वीर योद्धा भारत का स्वाभिमान कहलाते हैं

 

हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ”
शिक्षा – MA हिन्दी, B. ED., NET 8 बार JRF सहित
सम्प्रति-हिन्दी शिक्षक, सर्वोदय बाल विद्यालय पूठकलां, शिक्षा निदेशालय राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली
9829960782 [email protected]
माता-पिता – श्रीमती गौरां देवी, श्री कालूराम भार्गव
प्रकाशित रचनाएं –
जलियांवाला बाग दीर्घ कविता-खण्डकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
मैं हिन्दी हूँ – राष्ट्रभाषा को समर्पित महाकाव्य-महाकाव्य (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ)
आकाशवाणी वार्ता – सिटी कॉटन चेनल सूरतगढ राजस्थान भारत
कविता संग्रह शीघ्र प्रकाश्य –
वीर पंजाब की धरती (लेखक द्वय हिन्दी जुड़वाँ – महाकाव्य )
उद्देश्य- हिंदी को प्रशासनिक कार्यालयों में लोकप्रिय व प्राथमिक संचार की भाषा बनाना।
साहित्य सम्मान
स्वास्तिक सम्मान 2019 – कायाकल्प साहित्य फाउंडेशन नोएडा, उत्तर प्रदेश l
साहित्य श्री सम्मान 2020– साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्थान, मुंबई महाराष्ट्र l

ज्ञानोदय प्रतिभा सम्मान 2020– ज्ञानोदय साहित्य संस्था कर्नाटक l
सृजन श्री सम्मान 2020 – सृजनांश प्रकाशन, दुमका झारखंड।
कला शिरोमणी साहित्य सम्मान 2020– ब्रजलोक साहित्य शोध संस्थान, आगरा उत्तर प्रदेश l




कृष्ण की लगन

                               कृष्ण की लगन

मैं जबसे हुई तेरी भक्ति में मगन,
संसार के सुखों में रमे ना मेरा मन,
जैसे राधा को लगी हो कृष्ण की लगन,
वैसे ही तेरे नाम पर थिरकता है मेरा तन।
********
काश मैं बन जाती तेरी बांसुरी की तान,
या फिर मैं बन जाती सुरों का गान,
अपने को न्योछावर कर रख लेती भक्ति का मान,
तेरे चरणों में अर्पित करती मेरे मन का दान।
********
हे ईश्वर मेरे हृदय की वेदना को सुनना,
भूल होने पर मुझसे मुख कभी ना मोड़ना,
दुख के क्षणों में मेरा साथ कभी ना छोड़ना,
मुझ दीन से अपना नाता कभी ना तोड़ना।

*********
मैं जबसे हुई तेरी भक्ति में मगन,
संसार के सुखों में रमें ना मेरा मन,

जैसे राधा को लगी हो कृष्ण की लगन,

वैसे ही तेरे नाम पर थिरकता है मेरा मन l




देश निराला सब से अपना

http://कविता(देशभक्ति प्रतियोगिता हेतु ) है देश निराला सबसे अपना है देश निराला सबसेअपना सबके दिल में ये बस्ता है, जो देश को ना समझे अपना, वो मृत जीव से भी सस्ता है। इसकी माटी में हम जन्मे, माटी में ही मिल जाएंगे। इसकी शान की खातिर हम रक्त भी अपना बहा देंगे, है वीरों की ये धरती अपनी, कायरता का पाठ मिटा देंगे, मेहनत के पसीने से हम, फूलों के बाग सजा देंगे, आपस के झगडे को भुला, प्रेम की नदीया बहाएंगे, सुख शांति और समृद्धि कि पताका को फहराएंगे, हम को ना समझे कोई निर्बल और कमजोर भूल गए क्या झांसी की रानी, खुदी राम और बोस, बलिदानों से मिली आजादी यूं मुफ्त में ना गवाएंगे हर दम इसके सम्मान को हम अपना धर्म बनाएंगे। जीना अगर शान से हो, तो देश प्रेम सीने में हो, यूं बातों से ना हम बहलाएंगे अपने कर्मों से ही हम देश का मान बढ़ाएंगे। कण कण मेरी माटी का सोने से नहीं सस्ता है, है देश निराला सबसे अपना सब के दिल में ये बस्ता है देश निराला सबसे अपना सब के दिल में ये बस्ता। जय हिन्द जय भारत स्व रचित मनीषी मित्तल टीजीटी हिंदी कैटेगरी दृष्टिहीन चंडीगढ़ है देश निराला सबसेअपना सबके दिल में ये बस्ता है, जो देश को ना समझे अपना, वो मृत जीव से भी सस्ता है। इसकी माटी में हम जन्मे, माटी में ही मिल जाएंगे। इसकी शान की खातिर हम रक्त भी अपना बहा देंगे, है वीरों की ये धरती अपनी, कायरता का पाठ मिटा देंगे, मेहनत के पसीने से हम, फूलों के बाग सजा देंगे, आपस के झगडे को भुला, प्रेम की नदीया बहाएंगे, सुख शांति और समृद्धि कि पताका को फहराएंगे, हम को ना समझे कोई निर्बल और कमजोर भूल गए क्या झांसी की रानी, खुदी राम और बोस, बलिदानों से मिली आजादी यूं मुफ्त में ना गवाएंगे हर दम इसके सम्मान को हम अपना धर्म बनाएंगे। जीना अगर शान से हो, तो देश प्रेम सीने में हो, यूं बातों से ना हम बहलाएंगे अपने कर्मों से ही हम देश का मान बढ़ाएंगे। कण कण मेरी माटी का सोने से नहीं सस्ता है, है देश निराला सबसे अपना सब के दिल में ये बस्ता है देश निराला सबसे अपना सब के दिल में ये बस्ता। जय हिन्द जय भारत स्व रचित मनीषी मित्तल टीजीटी हिंदी कैटेगरी दृष्टिहीन चंडीगढ़




देशभक्ति काव्य पाठ प्रतियोगिता हेतु

जनम जनम का रिश्ता 

………………………

यह रिश्ता प्यारा जनम जनम का,

मैं किस तरह, इसे इजहार  करूँ ,

संकट से भरा यह भाजन हमारा, 

सुख से कैसे तुम्हारा आभार करूँ ।1।

कंटकों भरी मेरी जीवन की बगिया,

इस चुभन से कैसे अब आकार गढूँ,

इस काटों से यूँ हमने फूल चुन लिये,

किस भाव से, मैं अब कुरबान करूँ ।2।

बन जाओ, हमारे मन मंदिर की देवी,

तन समर्पण कर मैं तेरा अनुराग बनूॅ,

अक्षत,रोली से पूजा थाली सजाकर,

सुबह शाम मैं अर्पण को आगाज करूँ ।3।

 




हिंदुस्तान हमारा है

“वन्देमातरम” से लेकर “जन – गन – मन” तक जो दिल में बसता है यह हिंदुस्तान हमारा है,

“खेतों की हरियाली” से “तकनीकी उद्योगों” तक जो निरंतर चलता है यह हिंदुस्तान हमारा है l  

सहस्त्र बलिदानों से इस सरजमीं को खिंचा है,

सैकड़ों ने अपने रक्तों से इस मातृभूमि को सींचा है,

“सैनिकों” से लेकर “किसानों” के धमनियों में रक्त की तरह बहता है यह हिंदुस्तान हमारा है l

“जन – जन की सुरक्षा” से लेकर “अन्नपूर्णा के पूजन” तक यह हिंदुस्तान हमारा है l

मोल क्या चुका पाएँगे हम उन मातृभूमि के रक्षकों का ?

मोल क्या चुका पाएँगे हम उन अन्नदाताओं से श्रमिकों का ?

जीवन अतुल्य धन है जिसका मापदंड अमूल्य है,

सम्मान करो उनका जिनका जीवन ईश्वर भक्ति तुल्य है l

“कश्मीर” से लेकर “कन्याकुमारी” तक जो जन – तरंग उमड़ता है यह हिंदुस्तान हमारा है l

“हिन्दू,मुस्लिम,सिख,इसाई” से लेकर “मनुष्यता के प्राणों” को अपनत्व के रंग से रंगता है यह हिंदुस्तान हमारा है l




देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु कविता , “3 देश भक्ति कविता”

*1-कारगिल युद्ध गाथा*

कारगिल में गूँज उठी थी,शूरवीरों की ललकार
पाकर सह शैतानों का जब घुस आए थे आतंकी हज़ार
देश की तब सरकार जगी,सुनकर शैतानों की फुँफकार
लेकर राय देश से सारा भेजी शूरवीर हज़ार

ख़ाकर आज्ञा राजधर्म का,सैनिक हुए जाने को तत्पर
मन मे लिए आक्रोश वतन का,करेंगे उनका सामना डटकर

कोई शेर सोया था अपनी बूढ़ी माँ के आँचल में
कोई होश खोया था अपनी नई नवेली दुल्हन में
किसी के घर पर गूँज रही थी अभी अभी शहनाई हैं
किसी की बहना ओढ़ चुनरियाँ,अभी हुई पराई हैं

कोई आया था घर अपने,टूटी भवन बनाने को
कोई आया था घर अपने छप्पर छाजन छवाने को
किसी की आँखे सूज रही थी पिता के ग़म की सिसकारी में
किसी की आँगन गूँज रही थी बच्चे की किलकारी से

पर अब जाना होगा इनको, सन्देश सीमा से आई हैं
छोड़ के अम्मा बाबा बच्चा सबका प्रीत पराई हैं

बर्फ़ीली वादी गूँजी थी इन बीरों की ललकार से
कोई तोड़ नही पाकी का,निश्चित अपनी हार से
कायरता से कोई युद्ध क्या जीता कभी भी पाक हैं
अपनी धोखा में ही पड़कर होता अब ये साफ़ हैं

तोड़ दो पैर कमर अब उसकी अपनी बुद्धि चाल से
कांप उठे सोचकर भारत से,किसी युद्ध के ख़याल से
आग लगा दो घर उसके,तभी नही ऊपर होगा
आग बुझायेगा घर का वो,कभी नही हम पर होगा

ख़बर शहीदों के ख़ून की,सारा भारत रोया था
उनके आने की आहट में सारी रात ना सोया था

दरवाज़े पर पड़ी लाल की माथा चुम अम्मा रोई
प्यार सज़ा जिसकी आहट से,गाथा सोच दुल्हन रोई
काजल वाली आँखे खुलकर,रोई घर के कोने में
आज उमड़ फिर आयी ममता,बूढ़ी माँ के सीने में

शायद दाग़ लगा अब देखों नई नवेली दुल्हन को
देख रही हैं बूढ़ी अम्मा अपनी सुनी आँचल को
दूध लिए मुँह में बच्चा,जोर जोर फुँफकार रहा
शायद पिता की कुर्बानी का,जोर जोर जयकार रहा

उछल कुंद करता बालक भी सोये पिता से बोल रहा
क्या मीडिया क्या जनता देखो सबका सब्र अब डोल रहा
वीर शहिदों की कुर्बानी बस चंद दिनों की चर्चा हैं
फिर नही मिलेगा क़िस्सा कोई,कितना पुराना पर्चा हैं

शहिदों का ख़ून भी पानी,हो जाता दिल्ली की करतूतों से
जीता समर हरा देता जब अनर्गल अनोढ़ सी बातों से
जिस दिन लाश आएगी सीमा से,बेटा गर किसी नेता की
बात नही तब बम फूटेगा,मुँह से सारे नेता की ।।

***********************

*2-कश्मीर समस्या*
काश्मीर में सभी बग़ावत करने वाला शातिर है
डाल फुट का मज़ा उठाने वाला कोई माहिर है
जो सोच रहा है ये चिंगारी जला ही देगी जन्नत को
मैं कहता हूं ये सोचने वाला सबसे बड़ा जाहिल है

काश्मीर जो भभक रहा है चंद मज़हबी उन्मादों से
काश्मीर जो धधक रहा है सियासत के दामादों से
काश्मीर जो बिगड़ रही है चंद इस्लामिक जज्बातों से
काश्मीर क्यो निखर रही ना दिल्ली की वैधानिक बातों से

कभी ना बिगड़ी है कश्मीरियत नफरत फैलाने वालों से
बिगड़ के भी खामोश हुई शराफत फैलाने वालों से
कोई ना चाहता अमन चैन काश्मीर में जिंदा हो
सबका तख़्त बना बैठा है काश्मीर में हिंसा हो

अपने तख़्त ताज़ की खातिर काश्मीर को फूंक रहे है
लेकर नाम काश्मीर का जग में सारा घूम रहे है
करो बेपर्दा इन सब को जो मासूमों को बहका रहे है
चंद रुपये खातिर हाथों में इनके पत्थर कोई पकड़ा रहे है

इन के बच्चे भी क्या क़भी पत्थर हाथ मे पकड़े है
काश्मीर की लाल चौक पर नारों के संग निकले है
इनका काम ही धंधा बस काश्मीर को सुलगाना है
रहेगा जीवन इनका सुरक्षित जब काश्मीर को बहकाना है

काश्मीर के सभी अवामो आँख से पट्टी खोलकर फेंको
समझो इनके दिल का खेला रद्दी समझकर इनको फेंको
केशर की घाटी में अपने खातिर जिसने बम फेंका
घाटी से अब उस सबकों निकालकर बाहर तुम फेंकों ।।

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*3-आज़ादी*
आज़ाद वतन की माटी अब इतनी खामोश क्यु हैं ?
आज़ादी में रहने की क्या हमको आदत ही नही हैं
आज़ाद चमन है आज़ाद गगन है पवन भी है आज़ाद अब
डर दिल में भय मन में और सच कहने की आदत ही नही ,

आज़ादी का पावन पर्व क्यों सुना सुना लगता है
अपनी शाशन में रहना और जीना दूभर लगता है
ऐसा ही होना था तो क्यों वतन आज़ाद लिया हमने
आज़ादी लेने की खातिर हर दिन मरा जिया हमने ,

बंदिश में गर रहना है तो आज़ादी का मतलब क्या ?
बात बात पर रंजिश हैं तो आज़ादी का मतलब क्या ?
बोलने पर पाबंदी हो तो आज़ादी को फेल ही समझो
हर बातों पर गर्दिश हैं तो आज़ादी का मतलब क्या ?

आज़ादी के नारों से अब भय सा लगने लगता है
इन नारो के साये में कोई हमको ठगने लगता है
छीन लिया आज़ादी सबकी आज़ादी के नारों से
गाकर गीत आज़ादी का घर अपना भरने लगता है ।।

**********************

द्वारा -बिमल तिवारी “आत्मबोध”
S/O -स्व दयाशंकर तिवारी
ग्राम+डाक-नोनापार
जनपद-देवरिया उत्तर प्रदेश भारत 274701
फ्रेंच भाषा में स्नातक, बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी वाराणसी
पर्यटन प्रशासन में स्नातकोत्तर, डॉ राम मनोहर लोहिया यूनिवर्सिटी फैज़ाबाद
पर्यटन प्रोफेशनल के साथ साथ यात्रा विवरण,कविता,किस्सा-कहानी-लघुकथा,डायरी,मेमोरीज़
लिखने का शौकीन ।

Whatsapp No. – 8418997646
Calling No. -6394718628

शपथ—
मैं बिमल तिवारी “आत्मबोध” शपथ पूर्वक कहता हूँ कि अपनी रचना जो आपकी पत्रिका/संकलन में प्रकाशन के लिए दिया हूँ।उसे मैं अब तक कहीं भी किसी को प्रकाशित करने के लिए नही दिया हूँ।
और यह भी की मेरी उक्त रचना आजतक कहीं भी प्रकाशित नहीं हुईं है।
यह भी की उक्त रचना मेरी अपनी रचना हैं।
किसी भी तरह के विवाद के लिए प्रकाशक नही,अपितु मैं ख़ुद ही जिम्मेदार होऊँगा।
बिमल तिवारी “आत्मबोध”




देशभक्ति-काव्य लेखन प्रतियोगिता” हेतु कविता – राष्ट्र वंदना

मुक्त चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र की वन्दना हम करें
शुद्ध चित् प्राण मन से, अहो
अभ्यर्थना हम करें
राष्ट्र ही शक्ति है
राष्ट्र ही भक्ति है
राष्ट्र में ही हमारी भी
अभिव्यक्ति है
मुक्त चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र की वन्दना हम करें
शुद्ध चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र अभ्यर्थना हम करें
राष्ट्र ही आन है
राष्ट्र ही बान है
राष्ट्र से ही हमारी
खिली शान है
मुक्त चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र की वन्दना हम करें
शुद्ध चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र अभ्यर्थना हम करें
राष्ट्र सर्वस्व‍ है
राष्ट्र संरक्ष्य है
राष्ट्रहित में हमारा भी
भवितव्य है
मुक्त्त चित प्राण मन से, अहो
राष्ट्र की वन्दना हम करें
शुद्ध चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र अभ्यर्थना हम करें
राष्ट्र ही सत्व है
राष्ट्र ही तत्व है
राष्ट्र गतिमान है
राष्ट्र गंतव्य है
मुक्त चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र की वन्दना हम करें
शुद्ध चित् प्राण मन से, अहो
राष्ट्र अभ्यर्थना हम करें




मैं

*।।मैं।।*
मैं चिर नवीन मैं अति प्राचीन
मैं खुशमिज़ाज मैं ग़मशीन

मुझमें यह संसार समाया हैं
मुझसें मोह मोक्ष माया हैं

मैं अस्तित्व हुँ , मैं व्यक्तित्व हुँ
मैं लघुत्व और मैं प्रभुत्व हुँ

मैं नवनीत हुँ, मैं अवधूत हुँ
मैं वर्तमान भविष्य औऱ भूत हुँ

मैं आशा हुँ, मैं ही निराशा हुँ
मैं ही दिशा, दशा, इच्छा हुँ

मैं निःशब्द हुँ , मैं वाचाल हुँ
मैं ही देव् हुँ , दैत्य वैताल हुँ

मैं सत्य सनातन शिव धर्म हुँ
मैं ही कर्म ,मर्म और शर्म हुँ

मैं प्रारब्ध हूँ , मैं करबद्ध हुँ
मैं दुर्लभ और मैं उपलब्ध हुँ

मैं लंठ हुँ और मै ही संत हुँ
मैं आग़ाज़ और मैं ही अंत हुँ

मैं ही लय हुँ, मैं ही भय हुँ
मैं ही क्षय हुँ औऱ मैं शय हुँ

रहूँगा जब तक सृष्टि रहेगी
क्योंकि मैं तो आख़िर “मैं” हुँ ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
   देवरिया उत्तर प्रदेश




प्रेम काव्य लेखन प्रतियोगिता हेतु

वारिस की पहली फुहार में 

……………………………

जब से तुम परदेशी हो गये,

खूब आते सुनहले सपने में,

सजना,तुम अब होते दीदार,

बस हमारे पलक झपकने में ।1।

        हरसिंगार ले के पहला प्यार, 

        यूँ महकता हमारी तन्हाई में, 

        बारिश की पहली फुहार पर,

        सिहरती हूँ,तब मैं अंगडाई में ।2।

जब ये सारा उपवन सोता है,

सारी रात गंध बन जागती मैं,

मेरे प्यार को तुम क्या जानोगे, 

चंदन बन अंग अंग दमकती मैं।3।

       रात कहती, तुम सो जाओ अब,

       इस घुमड रहे मदमस्ती झोंके में,

      रोना और तडपन देख लिया सब,

      जमीं पर और इन सजे परकोटे में ।4।