निजाम फतेहपुरी की गज़लें
1. ग़ज़ल- 122 122 122 122 अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन ग़ज़ल नक्ल हो अच्छी आदत नहीं है। कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।। है आसान इतना …
1. ग़ज़ल- 122 122 122 122 अरकान- फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन ग़ज़ल नक्ल हो अच्छी आदत नहीं है। कहे खुद की सब में ये ताकत नहीं है।। है आसान इतना …
मोहन राकेश ने नाटकों में ‘रंगमंच संप्रेषण’ का पूरा ध्यान रखा है। नाट्य लेखन में राकेश ने नए-नए प्रयोग किए है। जैसे- दृश्यबंध, अभिनेयता, ध्वनियोजना, प्रकाश योजना, गीत योजना, रंग-निर्देश के साथ-साथ भाषा के स्तर पर परिवर्तन के कारण नाटक को सजीव रूप मिला है। इसी कारण नाटकों में अभिनेयता अधिक रूप में फली फुली है। राकेश ने उपन्यास, कहानी संग्रह, नाटक, निबंध, एकांकी आदि विधाओं में कलम चलाई है। लेकिन नाट्य साहित्य में जो प्रसिद्धि मिली शायद किसी नाटककारों को मिली होगी। इसमें ‘आषाढ़ का एक दिन’ (1958), ‘लहरों के राजहंस’ (1963) और ‘आधे अधूरे’ (1969) में अभिनेयता को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
सुशील कुमार ‘नवीन’ कोरोना ने फिलहाल देश के हालात खराब करके रख दिए हैं। समाज का हर वर्ग पटरी पर है। व्यापार-कारोबार सब प्रभावित। अस्पतालों में न वेंटीलेटर मिल पा …
हालात क्यों बिगड़े ये न पूछें, ये बताएं कि हमने इसके लिए क्या किया… Read More »
आत्मबल (जब जीवन में और निराशा घेर लेती है तब हमारे अपने भी हम से विमुख हो जाते हैं परंतु किसी भी स्थिति में मनुष्य को अपना …
कोरोना संकट में भारतीय संस्कृति का पुनरोदय हेतराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ” कोरोना आज वैश्विक बड़ी महामारी है। इस संदर्भ में विश्व स्तर पर इस महामारी को रोकने …
कोरोना संकट में कार्यरत योद्ध़ाओं का संघर्ष हरिराम भार्गव “हिन्दी जुड़वाँ” कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के कारण आज हम अपने- अपने घरों में बंद हैं …
माँ (माँ, स्वयं विधाता का प्रतिरूप है और इस संसार में नारी शक्ति – माँ पर दुनियाभर में अनंत काव्य सृजन किए गए हैं, किए जा रहे हैं। उन्हीं …
सम्पूर्ण विश्व में पृथ्वी ही एकमात्र गृह है, जिस पर जीवन जीने के लिए सभी महत्वपूर्ण और आवश्यक परिस्थितियां उपयुक्त अवस्था में पाई जाती हैं | यही कारण है कि …
पृथ्वी दिवस विशेष – प्रकृति को “अनर्थ” से बचाने का संकल्प है “अर्थ डे” Read More »
हिन्दू कालेज में हमारे समय की कविता पर व्याख्यान दिल्ली। कविता का सच दरअसल अधूरा सच होता है। कोई भी कविता पूरी तब होती है अपने अर्थ में जब पढ़ने …
कविता का काम स्मृतियों को बचाना भी है – अशोक वाजपेयी Read More »
मैं स्त्री हूं मैं स्त्री हूं, मैं संसार से नहीं संसार मुझसे है, जीवन का सार मुझसे है मनुष्य का आधार मुझसे है …