अशांत मन…!!
अशांत मन… मन का युद्ध स्वयं के मन से,जीत भला कैसे होगी…!विमुख हुए अपने वादों से.,प्रीत भला कैसे होगी…! मौन शब्द का अर्थ…अगर ना समझो तुम…हृदय मध्य का मर्म…अगर ना …
अशांत मन… मन का युद्ध स्वयं के मन से,जीत भला कैसे होगी…!विमुख हुए अपने वादों से.,प्रीत भला कैसे होगी…! मौन शब्द का अर्थ…अगर ना समझो तुम…हृदय मध्य का मर्म…अगर ना …
रचना शीर्षक : “तब गांव हमें अपनाता है…!!!”__________________________________ ग्रामीण भाव की धारा में,जब शहर कोई बह जाता है,शहरी होने का दंभ हृदय से,मिट्टी सा बन रह जाता है, तब गांव …
निंदित कर्मों के बीच फंसे,सत्कर्मों के अभिराम बनो,तुम राम नहीं बन सकते तो,कण के इक भाग सा राम बनो। पर निंदा की तुम धारा में,बहते ही बहते जाओगे,कलुषित मन के …
प्रीत की रीत कहूं तुमसे,दिल उनसे आज ये जुड़ बैठा,प्रीत की परछाई लेकर,मन उनको आज ले उड़ बैठा। फिर साथ मिला तेरा मुझको,जीवन में तुम मेरे आए,फेरों से वचन पिरोया …
वो तुच्छ समझता था जिसको…उसने ही उसका साथ दिया…वक़्त ज़रा बदला उसका…देखो कैसे अभिशाप दिया… जो ना दे कुछ वो दाता तो…अपमान भला यूं क्यूं करना…दुष्ट निकम्मों मक्कारों का…सम्मान भला …
सच्ची हितैषी हूँ तुम्हारी—————————-जानती हूँ मैं,और भीतर ही भीतर मानते हो तुम भी,कि सच्ची हितैषी हूँ तुम्हारी।पर व्यक्त करने का तरीका तुम्हारा, शायद अलग है । मैं पुरुष नहीं, बदल …