मत बन तू अंजान, मना!
बड़े नाम के पीछे की तू खुद सच्चाई जान, मना! परदे के पीछे है क्या तू खुद ही पहचान, मना! उठती लहरों की भी उल्टी हवाओं से सीना जोरी है, …
बड़े नाम के पीछे की तू खुद सच्चाई जान, मना! परदे के पीछे है क्या तू खुद ही पहचान, मना! उठती लहरों की भी उल्टी हवाओं से सीना जोरी है, …
सामयिक व्यंग्य : नफा-नुकसान – सुशील कुमार ‘नवीन’ सुबह-सुबह घर के आगे बैठ अखबार की सुर्खियां पढ़ रहा था। इसी दौरान हमारे एक पड़ोसी धनीराम जी का आना हो गया। …
ऐसे तो महंगा पड़ जाएगा ‘फ्री’ का हरी मिर्च और धनिया Read More »
डॉ.उर्वशी भट्ट की यह कविता कोरोना के इस संकट के समय में ‘ मनुष्यता ‘ के विमर्श को अहम मानती हुई, मनुष्यता के वरण को ही मनुष्य का एकमात्र सरोकार …
जागा लाखों करवटें, भीगा अश्क हज़ार तब जा कर मैंने किए, काग़ज काले चार। छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक सागर जैसा स्वाद है, तू चखकर तो देख। …
1 एक एहसान तुम अगर करदो सारे इल्ज़ाम मेरे सर कर दो। जानवर आ गए हैं बस्ती में मेरा जंगल में, कोई घर कर दो। बीज सी हूँ, जड़ें जमा …