संदीप सिंधवाल की कविता – ‘मेरा मैं’
ये जो माटी ढेर है, ‘मैं’ माया का दास। माया गई तो मैं भी, खाक बचा अब पास।। मैं श्रेष्ठ हूं तो सिद्घ कर, मैं अच्छी नहीं बात। सबका मालिक …
ये जो माटी ढेर है, ‘मैं’ माया का दास। माया गई तो मैं भी, खाक बचा अब पास।। मैं श्रेष्ठ हूं तो सिद्घ कर, मैं अच्छी नहीं बात। सबका मालिक …
अभिमान जीवन में अभिमान तुम, कभी न करना भाय। अभिमानी इस जगत में, चैन कभी ना पाय। मानव का अभिमान ही, बहुत बड़ा है दोष। अभिमानी मानव सदा, दे दूजे …
जागा लाखों करवटें, भीगा अश्क हज़ार तब जा कर मैंने किए, काग़ज काले चार। छोटा हूँ तो क्या हुआ, जैसे आँसू एक सागर जैसा स्वाद है, तू चखकर तो देख। …