नवनीत शुक्ल की कविता – ‘पुस्तक बोली’
बच्चों से इक पुस्तक बोली जितना मुझे पढ़ जाओगे उतने ही गूढ़ रहस्य मेरे बच्चों तुम समझ पाओगे। मुझमें छिपे रहस्य हजारों सारे भेद समझ जाओगे दुनियाँ के तौर-तरीकों से …
बच्चों से इक पुस्तक बोली जितना मुझे पढ़ जाओगे उतने ही गूढ़ रहस्य मेरे बच्चों तुम समझ पाओगे। मुझमें छिपे रहस्य हजारों सारे भेद समझ जाओगे दुनियाँ के तौर-तरीकों से …