सुशील सरना कृत ‘दोहा त्रयी’ – ‘वृद्ध’

चुटकी भर सम्मान को, तरस गए हैं वृद्ध । धन-दौलत को लालची, नोचें बन कर गिद्ध । । लकड़ी की लाठी बनी, वृद्धों की सन्तान । धू-धू कर सब जल …

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