कितने भौतिकवादी हो गए हैं हम : प्राज

साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय। मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय।।   कबीर जी के इस दोहे, से सभी परिचित है और मुझे नहीं लगता इस …

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