शुभा शुक्ला निशा की कविता – ‘नारी’
अंग्रेजो के समय भी देखिए
नारी शक्ति का फैला परचम था
लक्ष्मी बाई , सरोजिनी नायडू
कस्तूरबा गांधी , विजया लक्ष्मी में कितना दम था
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया
अंग्रेजो के समय भी देखिए
नारी शक्ति का फैला परचम था
लक्ष्मी बाई , सरोजिनी नायडू
कस्तूरबा गांधी , विजया लक्ष्मी में कितना दम था
जिस आँगन उठनी थी डोली
उस आँगन उठ न पाई अर्थी भी।
क्या अपराध था मेरा?
बस लड़की होना !
अर्थी भी न सजी इस आँगन !
कैसे सजाते? कैसे सजाते?
बटोरा होगा मेरा अंग अंग धरती से !
कफ़न में समेटा होगा मेरी आबरू को !
स्त्री जब खुश होती है बर्तन माजते माजते कपड़े धोते-धोतेरोटी बेलते बेलते सब्जी में छोका लगाते लगातेभी गुनगुनाती