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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

सृजन ऑस्ट्रेलिया | SRIJAN AUSTRALIA

विक्टोरिया, ऑस्ट्रेलिया से प्रकाशित, विशेषज्ञों द्वारा समीक्षित, बहुविषयक अंतर्राष्ट्रीय ई-पत्रिका

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डॉ. शैलेश शुक्ला

सुप्रसिद्ध कवि, न्यू मीडिया विशेषज्ञ एवं
प्रधान संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

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सुप्रसिद्ध चित्रकार, समाजसेवी एवं
मुख्य संपादक, सृजन ऑस्ट्रेलिया

डा अशोक पण्ड्या के गीत

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जिन्दगी एक गीत है

गीत जिस पर लिखे गए अनेकों गीत हैं
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है ।
गुनगुनाते अनेकों अधर
अपने प्रणय की गीति को
आलाप करते प्रफुल्ल मन
आप उपजी प्रीति को,
हंसते हुए बीतजाय यह जिंदगी
यों गीत गाती आरही यह बंदगी
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एकदम गीत है ।
पंछियों के कलरव को भी
कहते हम यह एक गीत है
कलकल बहते जल प्रवाह से
भी सुनते हम संगीत हैं ,
प्रकृति का नाम मानो
दूसरा यह गीत है।
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है।
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं,
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिंदगी एक गीत है।
नहीं कह रहा मैं आपसे
आनन्द ही बस गीत है,
दुखियों की दर्द भरी आह में भी
मिल जाता हमें गीत है ।
आनन्द के उत्संग में ही
पलना नहीं गीत है,
कण्टकों के जाल में
रोना भी तो एक गीत है ।
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं,
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है ।
सुख की हो या दुःख की
कल्पना मात्र एक गीत है
चेतन की तरह जब में भी
विद्यमान यह गीत है ।
अनन्त आनन्द पा कर भी
गाया जाता यह गीत है,
लेकिन वेदना का श्रृंगार
भी तो यह गीत है ।
गीत जिसपर लिखे गए
अनेकों गीत हैं,
जी रहे हैं हम जिसे
वह जिन्दगी एक गीत है ।।
– डा अशोक पण्ड्या

“‘प्रियतम प्यारे” 

प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है
रसवंती रंभा अमराई
फूलों की पैबंद है,
प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है ।
श्वेत सुहागन बसंत सुंदरी
ओढ़े श्वेत परिधान
लाल लाल रक्तिम आभा
संग लिये रश्मि सखियन
नवपल्लव औऺ पुष्प कलियन
सुहागिन का सिंगार है,
प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है ।
शिखिनृत्य,कोयल की कूक
चिड़ियों की चहचहाट है
कलि खिलती, पुष्प महकता
सर्वत्र आनन्दबहार है
पुष्पपल्लवी बनी नर्त्तकी
बसंत का संगीत है,
प्रियतम प्यारे करीब आओ
प्यार की पुकार है ।।

“सुख का सागर लहराऊं”

मैं करूं कल्पना ऐसी
सुख का सागर लहराऊं
विश्वोदय की ज्वाला में जलूं
जल कर भी मन में मुस्कराऊं
मैं करूं कल्पना ऐसी ।

अन्त ने हो इस जीवन का मेरे
मैं यह बाधा लेता हूं
सबकी भूख मिट कर रहे
सबसे मैं यह कहता हूं ,
मैं करूं कल्पना ऐसी
सुख का सागर लहराऊं ।
दुःख की ज्वालाएं जलाएं
जी भर मुझको,
तो जलाएं
लेकिन भाव न डूबेंं-छूटें
विश्वोदय की ज्योत जलाएं ।
मैं करूं कल्पना ऐसी
सुख का सागर लहराऊं ।।

Last Updated on November 30, 2020 by srijanaustralia

  • डा अशोक पण्ड्या
  • कवि एवं गीतकार
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