http://परिचय : वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी के इस आधुनिक समय मे हमने भले ही कितनी तरक्की कर ली हो तथा व्यक्ति के पास भले ही जीवन यापन की सभी भौतिक सुख सुविधाएं उपलब्ध हो, लेकिन आज हर आदमी के सामने एक यक्ष प्रश्न भी है कि हम स्वस्थ कैसे रहें ? आज हर व्यक्ति बीमारी या अवसाद से ग्रस्त है। मशीनीकरण के इस युग में एक.दूसरे से आगे निकलने की होड़ में चारों तरफ आपाधापी मची हुई है। व्यक्ति के पास खुद के लिए समय ही नहीं है,जिसके चलते हमारा स्वास्थ्य दिन.प्रतिदिन गिरता जा रहा है। यदि समय रहते हमने इस ओर ध्यान नहीं दिया तो अनेक लुप्त.प्राय जीवों की तरह मानव जाति का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा। यदि हम सैंकड़ो वर्ष पूर्व के हमारे ऋषि.मुनियों व पूर्वजों के उत्तम स्वास्थ्य, लम्बी आयु, संतोषजनक जीवनशैली, ज्ञान व बल कौशल के बारें में अध्ययन करके आज की पीढी के साथ उसकी तुलना करेगें तो पायेंगे कि हमने आपाधापी की इस जीवनशैली में बहुत कुछ खो दिया है तथा वैज्ञानिक उन्नति के बावजूद हम अपने पूर्वजों से बहुत पीछे हैं। आज चारां तरफ फैली विश्वव्यापी कोराना रूपी महामारी में तो स्वास्थ्य का महत्व और भी बढ़ गया है। इस बीमारी से बचाव का एकमात्र उपाय शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता है। शरीर में रोग.प्रतिरोधक क्षमता शारीरिक अभ्यास ,यौगिक क्रियाओं तथा नियमित दिनचर्या के द्वारा अच्छे स्वास्थ्य से ही पाई जा सकती है। स्वास्थ्य क्या है घ् सबसे पहले हमें इस बात की जानकारी जरूर होनी चाहिए कि स्वास्थ्य क्या है ? यह जानने के लिए स्वास्थ्य की निम्नलिखित परिभाषाएं हैं। 1. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार , “शरीरिक, मानसिक और सामाजिक दृष्टि से पूर्णतया संतुलित होना ही स्वास्थ्य है ,केवल रोग या विकृति से मुक्त रहना ही स्वास्थ्य नहीं है। 2. जे.एफ विलियम के अनुसार, “स्वास्थ्य जीवन का वह गुण है जिसमें व्यक्ति दीर्घायु होकर उत्तम सेवाएं प्रदान करता है।“ आमतौर पर शरीर में किसी भी प्रकार की बीमारी का न होना ही पूर्ण स्वास्थ्य मान लिया जाता है,जो सही नहीं है। स्वास्थ्य के प्रकार : शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य , स्वास्थ्य के ये दो पहलू सबसे चर्चित प्रकार हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त सामाजिक, आध्यात्मिक व बौ़द्धक स्वास्थ्य भी स्वास्थ्य के ही तत्व हैं । स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले मुख्य रूप से तीन प्रकार के कारक होते हैं। 1. जैविक कारक 2. वातावरण से सम्बधित कारक : अ. आंतरिक वातावरण व बाहय वातावरण। 3. व्यक्तिगत कारक : शारीरिक व्यायाम, संतुलित आहार , आराम व नींद, व्यक्तिगत स्वच्छता , स्वास्थ्य के प्रति दृष्टिकोण, दबाव व तनाव, स्वास्थ्यप्रद आदतें। स्वास्थ्य से सम्बधित महत्वपूर्ण युक्तियां 1. स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ दिमाग निवास करता है। 2. पहला धन निरोगी काया। 3. इलाज से परेहज बेहतर है। 4. स्व.अनुशासन जीवन का मूल मंत्र। 5. जैसा खाये अन्न, वैसा होये मन। 6. रात को जल्दी सोयें व सूर्योदय से पहले उठो। खुशहाल जीवन के सिद्वांत 1. नियमित शारीरिक व्यायाम व यौगिक अभ्यास करें। 2. सदा खुश रहो , सकारात्मक सोचो। 3. दूसरों की जय से पहले अपनी जय कहें। 4. माता.पिता व बड़ां का आदर करें तथा बच्चों के प्रति दयाभाव रखें। 5. बेसहारा, जरूरतमंदों व गरीबों की मदद करके उनकी दुआ लें। 6. स्वस्थ रहने के लिए बच्चों की तरह खिलखिलाकर हंसिए । 7. विश्वास पात्र दोस्त बनांए जिसके कंधे पर सिर रखकर अपने दिल का बोझ हलका कर सकें। 8. अष्टांग योग की जीवन शैली अपनाएं।। हम उपर्युक्त युक्तियों व जीवन के सिद्धांतों को भली.भॉंति जानते हुए भी उनका पालन नही कर रहे जिसके कारण आज हम ना केवल शारीरिक बल्कि अनेक मानसिक व सामाजिक बीमारियों से ग्रस्त होते जा रहे हैं। यदि हम स्वस्थ व खुशहाल जीवन जीना चाहते है तो सबसे पहले सन्तुलित दिनचर्या बनानी होगी तथा पूरे स्व.अनुशासन से उसका पालन करना होगा,ताकि मानव जाति के अस्तित्व को बचाया जा सके। स्वस्थ रहने के लिए दिनचर्या का प्रारूप 1. प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व बिस्तर छोड. देना चाहिए ,यानी प्रातः नींद से जागने का समय निर्धारित होना चाहिए। 2. अपनी क्षमता व समय के अनुसार सुबह व शाम को एक से दो घंटे का शारीरिक अभ्यास का प्रारूप बनाएं। 3. भोजन का समय ;नाश्ता,लंच व डिनरद्ध एवं मात्रा निर्धारित कर लें तथा निर्धारित समय के अनुसार ही भोजन ग्रहण करने की आदत डालें। बीच में बार.बार भोजन न करें। 4. भोजन में हरी पतेदार सब्जियां, सलाद ,रेशेदार फल शामिल करें। 5. रात्री का भोजन रात 7 से 8 बजे के बीच कर लें । 6. रात को सोने का समय भी निर्धारित करें तथा कम से कम 6 से आठ घंटे की नींद लें। इस प्रकार रूपरेखा तैयार करके नियमित रूप से उसकी अनुपालना करें। स्वस्थ नागरिक ही किसी देश की असली धरोहर होते हैं। अस्वस्थ व बीमार व्यक्ति परिवार, समाज व देश पर बोझ होते हैं। इसलिए स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर अपने परिवार , समाज व देश के समृद्वि व विकास में हिस्सेदार बनें। शारीरिक अभ्यास की रूपरेखा प्रातःकाल में सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य कार्यो से निवृत हो जाएं। इसके बाद दो से तीन कि.मी. तक सैर करें। शारीरिक अभ्यास के लिए शांत वातावरण,खुले व समतल स्थान का चयन करें । खुले व आरामदायक कपडे़ पहनने चाहिए। 1 सबसे पहले सूक्ष्म व्यायामों के द्वारा शरीर को गर्म करें। 2 व्यायाम करते समय सभी अंगों को आगे पीछे, बाए तथा दाएं दोनों ओर घुमाए । 3 सूर्य नमस्कार सर्वोतम शारीरिक व्यायाम होता है। इसमें शरीर के सभी अंगों का व्यायाम हो जाता है। 4 सूक्ष्म व्यायामों व सूर्य नमस्कार से शरीर गर्म हो जाता है तथा यौगिक क्रियाओं के लिए पूरी तरह तैयार होता है। इसमें हम योगासन व प्राणायाम की क्रियाएं करते हैं। 1 योगासनों को हम चार भागों में बांटते है। ;समय लगभग 25 से 30 मिनट समय व सुविधा के अनुसार हम प्रत्येक अवस्था के दो दो आसनों का चयन करेगें। क खडे़ होकर किए जाने वाले आसन 1. ताड़ासन 2. वृक्षासन ख. बैठकर किए जाने वाले आसन 1 पश्चिमोतानासन 2. गोमुखासन ग. पेट के बल लेटकर किए जाने वाले आसन 1. भुजंगासन 2. नौकायानासन घ. पीठ के बल लेटकर किए जाने वाले आसन. 1. हलासन 2. पवनमुक्तासन 2. प्राणायाम क्रियाएं ;समय लगभग 20 से 25 मिनट मानसिक विकास व शांति के लिए प्राणायाम की क्रियाओं का अभ्यास करना अति आवश्यक होता है। क. लम्बे गहरे सांस लेना व छोडना ;2मिनट ख. कपालभाती क्रिया ;3 से 5 मिनट ग. अनुलोप विलोम क्रिया ;3 से 5 मिनट घ. भ्रामरी क्रिया ;3 से 5 मिनट ड. ओंकार ध्वनी व गायत्री मंत्र का जाप ; 3 से 5 मिनट अंत में दोनो हाथों से तालियां बजाते हुए जोरदार ठहाके मारकर हंसे तथा दोनो हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए आंॅखों व मॅुंह पर मालिश करते हुए आंखें खोलें। ओम का उच्चारण करते हुए अभ्यास को पूर्ण करें। इस प्रकार यदि हम प्रतिदिन एक से दो घंटे शारीरिक अभ्यास व यौगिक क्रियाएं करके स्वयं को स्वस्थ व खुशहाल रख सकते हैं। अष्टांग योग की जीवन शैली को आत्मसात् करें। यम,नियम,आसन प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा,ध्यान तथा समाधि योग के आठ अंग होते हैं। 1. यम : जो नियम हमारे शरीर के द्वारा धारण करने योग्य हो उसे ही यम कहा जाता है। यम के पांच भाग होते हैं क. अहिंसा ख. सत्य ग. अस्तेय, घ. अपरिग्रह ड. ब्रहृमचर्य 2. नियम : . नियम के पॉंच तत्व होते है। क. शौच ख.,संतोष ग तप घ. स्वाध्याय ड. ईश्वर.प्रणिधान 3. आसन : . किसी एक आरामदायक अवस्था में बैठने की शरीर की स्थिति को ही आसन कहते हैं। आसन तभी सम्भव है जब हमारा चित स्थिर होगा। अस्थिर अवस्था में हमारे मन मे चंचलता होती रहती है इसलिए चित की स्थिरता द्वारा ही आसन सम्भव है। 4. प्राणायाम : . प्राणायाम दो शब्दों से बना है प्राण + आयाम । प्राण का अर्थ है शक्ति उर्जा या सांस तथा आयाम का अर्थ है रोकना। अर्थात प्राण वायु या अपने सांॅसों पर नियंत्रण को प्राणायाम कहते है। इससे हमारे चित को एकाग्र करने में सहायता मिलती है। 5. प्रत्याहार : . सांसारिक विपय वस्तुओं से इन्द्रियों को हटाना ही प्रत्याहार कहलाता है। प्रत्याहार द्वारा हमारा मन एक स्थान पर केंद्रित होता है। 6. धारणा : . किसी एक ही विपय वस्तु या स्थान पर अपने मन को केंद्रित करना धारणा कहलाता है। यह बिंदु बाहरी व आंतरिक दोनो हो सकते हैं। क. बाहय ख. आतरिक 7. ध्यान :. धारणा की निरंतरता बने रहना ही ध्यान कहलाता है। इसमें किसी प्रकार का बिध्न नहीं होना चाहिए 7. समाधि : यह साधक की अंतिम अवस्था है। जब साधक अपने निजी स्वरूप को भूलकर केवल अपने लक्ष्य पर ही केंद्रित रहता है तो उस अवस्था को समाधि अवस्था कहते है। इसमे साधक अपना भाव भूल जाता है। ध्यान की निरंतरता ही समाधि कहलाती है। एक सामान्य गृहस्थी या साधक अप्टांग योग के माध्यम से स्वस्थ व सुखी जीवन जी सकता है। एक व्यक्ति का न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक ,सामाजिक व आध्यात्मिक पक्षों का विकास होना भी जरूरी है। अप्टांग योग से व्यक्ति का मानसिक , सामाजिक व आध्यात्मिक सभी पहलुओं का विकास होता है, इसलिए सर्वागीण विकास के लिए अप्टांग योग की जीवन शैली को आत्मसात् करनी चाहिए। निष्कर्ष पहला धन निरोगी काया तथा स्वस्थ शरीर मे ही स्वस्थ दिमाग निवास करता है ये कहावतें बहुत प्राचीन व प्रचलित होने के बावजूद आज भी शत प्रतिशत सही हैं। स्वास्थ्य सभी के लिए अनिवार्य होता है। एक स्वस्थ व्यक्ति ही किसी भी प्रकार के कार्य को कुशलतापूर्व कर सकता है। सुखी जिवन व्यतीत करने के लिए स्वस्थ होने की आवश्यकता होती है। स्वस्थ होने पर हम पर शारीरिक , मानसिक तथा सामाजिक रूप से अपनी क्षमताओं का अधिकाधिक उपयोग कर सकते हैं। राजा हो रंक, नेता हो या प्रजा, अमीर हो या गरीब, कर्मचारी हो या व्यापारी, बूढा हो या जवान सभी के लिए स्वास्थ्य सबसे जरूरी आयाम है। व्यक्ति भले ही कितनी उन्नति कर ले, जीवन में शिखर पर जाने का एकमात्र रास्ता उसका अच्छा स्वास्थ्य ही होता है। शरीर भगवान् का दिया हुआ एक अनूठा उपहार है लेकिन अच्छा स्वास्थ्य बनाये रखना हमारे स्वयं के उपर निर्भर करता है। हमें भगवान के दिए इस उपहार को संभालकर रखना चाहिए। यदि उक्त कार्यक्रम के अनुसार रूपरेखा तैयार करके नियमित रूप से उसकी अनुपालना करें तो हर व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होगा। शारीरिक अभ्यास व यौगिक क्रियाओं से जहांॅ शरीर के अंगों का विकास होता है,शरीर के सभी संस्थान कुशलता पूर्वक काम करते है,वहीं अष्टाग योग को आत्मसात् करने से व्यक्ति का आध्यात्मिक,बौद्धिक, नैतिक व सामाजिक विकास होता है जिसे सर्वांगीण विकास कहते हैं। हर व्यक्ति की सम्पूर्णता उसके सर्वांगींण विकास में है। स्वस्थ नागरीक ही किसी देश की असली धरोहर होते है। अस्वस्थ व बीमार व्यक्ति परिवार, समाज व देश पर बोझ होते है। इसलिए स्वस्थ जीवन शैली अपनाकर अपने परिवार , समाज व देश के समृद्वि व विकास में हिस्सेदार बनें। आज चारां तरफ फैली विश्व व्यापी कोराना रूपी महामारी में तो स्वास्थ्य का महत्व और भी बढ गया है। इस बीमारी से बचाव का एकमात्र उपाय शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का होना है,जो अच्छे स्वास्थ्य से ही पाई जा सकती है। अच्छा स्वास्थ्य बाजार में खरीदकर नही लाया जा सकता है। अच्छा स्वास्थ्य केवल शारीरिक अभ्यास , यौगिक क्रियाएं एवमं संयमित दिनचर्या से ही प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए ये कहना गलत नही होगा कि शारीरिक अभ्यास ,यौगिक क्रियाओं एवं संयमित दिनचर्या ही स्वस्थ जीवन का आघार होते हैं, जो वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अति आवश्यक हैं। “डा. सुखबीर सिंह ,सहायक प्रोफेसर शारीरिक शिक्षा विभाग , राजकिय स्नातकोत्तर ,महाविद्यालय हिसार।“
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Last Updated on January 23, 2021 by sukhbirduhantosham
रचनाकार का नाम:
Dr. Sukhbir Singh Duahn
पदनाम:
सहायक प्रोफेसर ,
संगठन:
SRIJAN AUSTRALIA
ईमेल पता:
[email protected]
पूरा डाक पता:
राजकीय स्नातोकोत्तर महावि़द्यालय,हिसार ,हरियाणा (India)