सबसे बड़ी भूल
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जिस कलम से मुझे इंकलाब लिखना था
उसी कलम से मैंने इश्क़ लिखा
जिस रात मुझे हक़ की ज़रूरी लड़ाई लड़नीं थी
उसी रात मैंने प्रेम में कई समझौते किये
उस शाम जब मुझे धरने पर होना चाहिए था
मैंने महबूब के कांधो पर सिर धर दिया
आज जब मुझसे रोटी, समय और ज़िल्लत काटे से भी नहीं कट रही
मेरे कानों में हर पल गूंज रहे हैं पूरब और प्रेमचंद
हँसिया और हथौड़ा
मिट्टी और मुल्क़ जैसे शब्द
ठीक उसी वक़्त मैंने तोड़ दी है इश्क़ वाली कलमें
फाड़ दी हैं मुहब्बत की नज़्मे सुपुर्द ए खाक़ कर दिया महबूब की याद को
मैं माफ़ी चाहती हूं
मेरे मुल्क मेरी मिट्टी से
मैं तुम्हारे हक़ में कुछ ना लिख सकी
हिंद की बेटी हिंदी में हिंदुस्तान के साथ खड़ी ना हो सकी !!
Last Updated on January 20, 2021 by upadhyaygati8418
- गति उपाध्याय
- लेखिका
- स्वतंत्र लेखन
- [email protected]
- लालडिग्गी, गैलेक्सी होटल के पीछे, मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश, 231001
3 thoughts on “महिला दिवस पर आयोजित काव्य प्रतियोगिता हेतु”
भावपूर्ण
शानदार अभिव्यक्ति
गति की कविताएं हृदय तक को भेदती है..शुभकामनाएं